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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरणम्] बालमनोरमा / 297 'आ स्वदः सकर्मकात्' (ग सू 201) / स्वदिमभिव्याप्य सम्भवत्कर्मभ्य एव णिच् / प्रस 1750 ग्रहणे / ग्रासयति फलम् / पुष 1751 धारणे पोषयत्याभरणम् / दल 1752 विदारणे / दालयति / पट 1753 पुट 1754 लुट 1755 तुजि 1756 मिजि 1757 पिजि 1758 लुजि 1759 भजि 1760 लघि 1761 त्रसि 1762 पिसि 1763 कुसि 1764 दशि 1765 कुशि 1766 घट 1767 घटि 1768 बृहि 1769 बर्ह 1770 बल्ह 1771 गुप 1772 धूप 1773 विच्छ 1774 चीव 1775 पुथ 1776 लोक 1777 लोच 1778 णद 1779 कुप 1780 तर्क 1781 वृतु 1782 वृधु 1783 भाषार्थाः / पाटयति / पोटयति / लोटयति / तुजयति / तुजति / एवं परेषाम् / घाटयति / घण्टयति / 2572 / नाग्लोपिशास्वृदिताम् / (7-4-2) णिच्यग्लोपिनः शास्ते: ऋदितां चोपधाया ह्रस्वो न स्याञ्चङ्परे णौ / अलुलोकत् / अलुलोचत् / वर्तयति / वर्धयति / उदित्त्वात् वर्तति / वर्धति / रुट 1784 लजि 1785 अजि 1786 दसि 1787 भृशि 1788 रुशि 1789 शीक 1790 रुसि 1791 नट 1792 पुटि 1793 जि 1794 चि 1795 रघि 1796 लघि 1797 अहि 1798 रहि 1799 महि 1800 च / लडि 1801 तड 1802 नल 1803 च / पूरी 1804 आप्यायने / ईदित्त्वं निष्ठायामिनिषेधाय / अत एव णिज्वा / पूरयति-पूरति / णिच् स्यादित्यर्थः / कल्पयतीति // 'कृपो रो लः' इति लत्वम् / कृपेश्चति पाठान्तरम् / आस्वदस्सकर्मकादिति // आङभिविधौ / तदाह / स्वदिमभिव्याप्येति // तत्र 'प्वद आस्वादने' इत्यस्य अकर्मकत्वादाह / सम्भवत्कर्मभ्यः इति // इत आरभ्य आस्वदीयास्सकर्मकाः / स्वदिस्त्वकर्मकः / पट पुटेति // एकत्रिंशत् धातवः / आद्यास्त्र. यष्टान्ताः / आद्यद्वितीयौ पवर्गप्रथमादी। चतुर्थाद्या एकादश इदितः / त्रिसिपिसी इदुपधौ / अदुपधौ इत्येके / षोडशसप्तदशाविदितौ / अलुलोकत्-अलुलोचत्, इत्यत्र उपधाहस्वे प्राप्ते / नाग्लोपि // ‘णौ चट्युपधायाः' इत्यनुवर्तते / णावित्यावर्तते / एकमग्लोपिन इत्यत्रान्वेति / द्वितीयन्तु निषेधे परनिमित्तम्। तदाह / णिच्यग्लोपिनः इत्यादि // ऋदित्वान्नाग्लोपीति निषेधेन उपधाहस्वाभावे सति लघुपरकत्वाभावान्नाभ्यासदीर्घ इति भावः / उदित्त्वादिति // 'वृतु वृधु' इत्युदित्त्वं 'उदितो वा' इत्यण्यन्तात् त्वायामिविकल्पार्थम् / ण्यन्तात्तु णिचा व्यवधानात् नेडिकल्पप्रसक्तिः / अतो णिज्विकल्पो विज्ञायते इति भावः / पूरी आप्यायने / इनिषे For Private And Personal Use Only
SR No.020099
Book TitleBalmanorama
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages803
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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