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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्य ७८१ एक ऐसी निरापद वस्तु है जिसके छोटे बच्चों और गर्भवती जी को भी अन्दाज़ से स्त्रिला सकते हैं। अश्वत्थ बीज बीज को शीतल तथा रसायन बतलाते हैं। (ऐन्रूली ) पीपल के बीजों को मधु के साथ चटाने से रुधिर शुद्ध होता है। इसके बीजों को पीस कर पीने से अन्तर्दाह मिटती है। पीपल की दाढ़ी (गंश) पीपल की दादी ४ मा०, गर्जर बीज ६ मा०, और नवंग ३ मा०, इनको ॥ श्राध सेर पानी में क्वचित करें। तीन छटॉक पानी शेष रहने पर मल छान कर मिश्री २ तो० मिलाकर पिएँ। प्रार्तव प्रवर्तनार्थ ३-४ बार पान करें और निम्न पोटली योनि में रक्खें : चोक की लकड़ी १ तो०, बाकुची १ तो०, पवक्षार १ तो०, वरसनाभ १ तो०, जंगली तोरई १ तो०, कटुकी ६ मा०, कालादाना १ तो. इनको बारीक पीस वर्ति बना योनि में रखने से मासिक धर्म बिना कष्ट के जारी हो जाएगा। यह प्रार्तव प्रवन्तक है। पीपल की दादी २० तो० को कूटकर वस्त्रपूत करें और इसमें समान भाग मिश्री योजित कर ले । मासिक-धर्म प्रारम्भ होने के दिवस से प्रति दिन २-२ तो० स्त्री-पुरुष दोनों गोदुग्ध के साथ सेवन करें और मैथुन से बचे रहैं। इसके ११ वें दिन स्त्री-संग करने से स्त्री गुचिणी होगी। पीपल की दादी को जौकुट करके चिलम पर रखकर तम्बाकू की तरह पिलाने से वृक्कशूल नष्ट होता है । जिस स्त्री को गर्भधारण न होता हो उसको ऋतु-स्नान के पश्चात् २॥ तो० पीपल की दाढ़ी का क्वाथ कर उसमें प्रावश्यकतानुसार खाँड मिलाकर पिलाने से गर्भधारण होता है। पीपल की दाढ़ी ४ तो०, बुरादा हाथी दाँत २ तो० इनका बारीक पूर्ण कर रखें । ऋतुस्नान के बाद इसमें से ६ मा० चूण हर रात को दूध के साथ खाने से पक्ष के भीतर ही स्त्री अवश्य ही गर्भवती होती है। पीपल की दाढ़ी २॥ तो०, तुलसी के फूल ६ मा० इनको बारीक करके ६-६ मा०की पुड़ियों बनाएँ। श्राउ तोले गरम पानी में सवा बोले रोग़न बादाम मिलाकर पहिले पुड़िया खिलाएँ फिर ऊपर से पानी पिलादें। इससे तत्क्षण वृकशूल नष्ट होगा। पीपल की दादी को बारीक पीसकर ऋतु स्नानान्तर इसे प्रति दिन १ तो० की मात्रा में गरम दूध के साथ स्त्री को खिलाएँ । प्रति मास केवल सप्ताह पर्यन्त इसके उपयोग से ३ से ६ मास के भीतर बन्यत्व दूर हो जाता है। नोट-पीपल के सेबन के दिनों में सीको काफी धी दूध खिलाना चाहिए। अन्यथा परिणाम स्वरूप वह तपेदिक से आक्रान्त होकर काल कवलित हो जाएगी। पीपल का दूध तथा निर्यास इसके गोंद से विशेष विधि द्वारा चड़ियाँ बनाई जाती हैं जिसे शुद्रा स्त्रियाँ पहिनती हैं। इसलामी शरीअत में इसकी रचना इसको अपवित्र कर देती है जिससे मुसलमान स्त्रियों को पहिनना नाजायज़ है। परन्तु हिन्दू शास्त्रों में अश्वत्थ की बड़ी महिमा है और यह वैज्ञानिक नियमों पर आधारित है, जिसका स्थल स्थल पर निर्देश किया गया है। वस्त्र के सफेद टुकड़े को सर्व प्रथम मधु में भली प्रकार भिगोएँ। तदनन्तर इसको दुग्ध में कदित कर शुष्क करलें और जलाकर राख सुरक्षित रखें । श्वित्र को प्रथम उष्ण जल से धोकर राख को सिरका में सिक कर गरम कर उस स्थल पर लगाएँ । यह वर्ण को शरीर के वर्ण की तरह कर देता है। यदि दुग्ध को दद्र, पर लगाएं तो स्वचा को संकुचित कर खुड्डी उत्पन्न कर देता है। उक्त सुट्टी के पृथक् हो जाने पर स्वच्म स्वच्छ हो जाती है और दद्र के कोई चिह्न शेष नहीं रह जाते । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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