SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 822
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थ ७८० अश्वत्थ रखें और पीपल की शुष्क छाल को बारीक पीस कर सीसे पर डालकर पीपल की सूखी लकड़ी से भली प्रकार हिलाते रहें और जले हुए पीपल के छिलके को हवा देकर उड़ा दिया करें। ऐसे अवसर पर बाँसकी नली का उपयोग करना उत्तम है। दो- तीन घंटे की लगातार पाँच से सीसे की रक वर्ण की भस्म प्रस्तुत होगी । यदि कुछ चमक शेष रहे तो घंटे अाध घंटे और इसी प्रकार आँच दें। मात्रा-१ रत्ती से २ रत्ती तक २ तो० मलाई या मक्खन में प्रातः सायंकाल दोनों समय खिलाने से यह नपसक को पुसत्व शकि प्रदान करती है एवं प्रचीन से प्राचीन कुरहा और प्रमेह का मूलोच्छेदन कर देती है। राँगा की भस्म भी इसी प्रकार प्रस्तुत हो जाती है और पूर्वोक सभी रोगों में लाभदायक होती है। नोट-सीसे को काथ में डालते समय वह ज़ोर से उछलता है। अस्तु, यह कार्य अत्यंत सावधानी से करना चाहिए। (३) पीपल की सूखी छाल के २० तो. जौकुट चूर्ण में से थोड़ा चूर्ण एक बड़े उपले में गढ़ा बनाकर बिछाएँ । फिर उस पर २ तो० वंग और २ तो० पारद को रेज़ा रेज़ा करके रख कर ऊपर उसके पुनः उन अश्वत्थ त्वक् चूर्ण को और वंग को तह ब तह रख कर दूसरे उपले को ऊपर देकर हर दो उपलों की संधियों को कपड़ मिट्टी द्वारा बन्द कर एक गड्ढे में रख५ सेर उपलों की अग्नि दें। स्वांगशीतल होने पर इसको निकाल लें। उत्तम श्वेत भस्म प्रस्तुत होगी । मात्रा-१ रती। अनुशान-मक्खन में रखकर प्रात: सायंकालइसका उपयोग करें। गण-कामावसाय, शीघ्रपतन, शुक्रमेह तथा पूयमेह के लिए लाभप्रद है। अर्शके लिए इसे हरडके मुरब्बामें ४ रसी की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। यह प्रत्येक प्रकार के अर्श के लिए अमोध है । श्रान्त्रस्थ कदददाने एवं केचुए के लिए एक माषा इस भस्म को प्रतिदिन दधि में मिलाकर खिलाने से दो-तीन दिन में यह सबको मृतप्राय कर उदर से विसर्जित कर देता है। अश्वत्थ फल पीपल का फल कोष्ठमृदुकर है (अस्तु इससे कोष्ठबद्धता दूर होती है) और यह पाचनशक्रि की सहायता करता है। (ऐन्सली। इं० मे० मे०) बार्थलोमियो (Bartholomeo ) के मतानुसार (पूर्वी भारत की यात्रा में) शक फल के चूण को पक्ष भर जल के साथ सेवन करनेसे श्वास रोग नष्ट होता है और इससे स्त्रियों का बन्ध्यत्व दूर होता है। पशुओं के लिए यह अत्यंत पोषक चारा है। (इं० मे० मे०) ___ इसके फल के चूर्ण को मधु के साथ हर सुबह को खिलाने से शरीर बलिष्ट होता है। पीपल के फलों को सुखाकर बारीक पीस कपड़छन कर, १६ मा० प्रातः सायं ताजे पानी के साथ कण्ठमाला के रोगी को खिलाने से लाभ होता है। पीपल के फल को लेकर छाया में सुखा में और चूर्ण बनाकर इसमें दूनी मिश्री मिजाकर रखें ओर प्रतिदिन १ तो० इस चूर्ण को दूध तथा पानी के साथ खाया करें। प्रभाव तथा प्रयोग-स्वप्नदोष, वीर्यपात, शुक्रमेह निर्वस्वता और शिरःशूल प्रभृति के लिए लाभदायक है। पीपल के पके फल को सुखाकर सत्तू बना लें। ४ तो• इस सत्तू को गुड़ के शांत के साथ सुबह को खाने से पुरुषों का प्रमेह, स्त्रियों का सोम रोग और स्वप्नदोष १०-१२ दिन सेवन से दूर हो जाते हैं। पीपल के परिपक्क फल के गूदे को छाया में सखाकर फिर कूट कर चको में पीस कर पाटा प्रस्तुत करें। इस आटे का हलुा बनाकर खाने से शरीर बलवान हो जाता है।त्रियों के गर्भाशय संबंधी रोग एवं कटिशूल में यह अत्यंत हितकर है। मह में छाले पड़ने बंद हो जाते है । यदि हलुभा न बनाना हो तो एक तोला पाटे में १ तो० शकर मिलाकर फाँकने और ऊपर से दुग्ध पान करने से भी बहत लाभ होता है। शहद के साथ चाटने से भी यह लाभप्रद है। पह For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy