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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवकन्दकः अश्वगंधा(धिका) में जो जो अनुपान कहा है, उसी के साथ इसको अश्वकर्णम् ashva-karnam-10 क्ली० देना चाहिए। यो० त० ज्वरचि०। काण्डभग्न ( बीच से अस्थिभंग) नामक अस्थि(२ ) हरिताल ( रसमाणिक्य ), पारा, . भंग विशेष । जो टूटो अस्थि घोड़े के कान की गन्धक, वच, त्रिकुटा, बहेड़े की छाल, सोहागा, भाँति ऊँची हो जाए उसे "अश्वकर्ण" कहते हैं। संखिया, गोखरू, बच्छनाग, जमालगोटा, हींग, सु०नि०१५ ०। देखो-भग्नम् । कुष्ठ कड़वी, नकछिकनी, गजपीपल, हड़ की छाल | अश्वकात(थ) रा,-रिहा ashra-kita ) प्रत्येक समान भागको पृथक् पृथक् चूर्ण कर कपड़ (tha lá,-riká. छन करके भांगरे के रस में ४ दिन खरल करके अश्वकाथरिवा ashvan.katharivi मंग प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। यह पृथक् पृथक् सं० स्त्री० हयकातरा । घोड़ा काथरा-हिं०, अनुपान से रोग मात्र को तथा अंजन से फूले को बं० । घोड़े काथर-मह० । और लेप से श्वित्रको नष्ट करती है। रस. यो. गुण-तिक्र, वातनाशनी तथा दीपनी है। सा.। (काथराहय पर्यायः काथरा वै प्रकीर्तिता) रा० निक। अरक्कन्द :: a hvakanda kah-सं० प.. अश्वगंधा, असगंध । (Withania somni अश्वकात्रि ashva.katri-मह० बाशिंग, तान्दर वाशिंग । कडिक पान,कडिक-पन-बम्ब०। fera.) रत्ना० । पाली पोडिअम् कर्सिफोलिअम् ( Polypod. प्रवकन्दिका ashra-kandika-सं. स्त्री (१) एक वनस्पति विशेष । (२) अश्वगंधा, ium quereifolium, Spr. )-खे । प्रसंगंध । ( Withania somnifera.) फा००३ भा० । देखो-बाशिंग। र०मा०। अश्वखुरः ashva-khurah-सं०५(1)नखी प्रश्वकर्णः, कः,-णिका ashvakarnab,--kah नामक गन्ध द्रव्य (See--nakhi.)रस्ना० । (२) घोटक खुर, घोडेका खुर, सम । ( A - rniki-सं० पु., स्त्री. (१) शाल boof.) रा०नि० । वृत । ( Shorea robusta,) शाल गाछ बं० । सु० सू० ३८ ० । च. सू० ४ ०।। अश्वखुरा,रा ashvaKhura,ri-i० स्त्रा. (२) सर्ज रस भेद, एक प्रकारका शाल-वृक्ष । श्वेतापराजिता, विष्णुकान्ता । रा०नि००३ । सर्जशास्त्र विशेष । ग० नि० व. २३ शास। (.Olitorea ternatea.) देखी--अपसंस्कृत पर्याय-जरणद्रुमः, तार्य, प्रसवः, । राजिता। शस्यसम्बरणः, धन्दः, दीर्घपर्णः, कुशिकः, | अश्वगन्द-बिची ashva.ganda-bichi-बं० कौशिकः । भा० म०४ भा. रेवती-चि० । 'धवा- | पुनीर के बीज, हिन्दी काक्नज के बीज-हिं०, २० श्वक ककुभः।' Withania ( Puneeria.) Coag. ulans, Dunal. (Seeds of-)। स० . गुण-कटु, तिक स्निग्ध, रक पित्तघ्न, उरो | रोग, विस्फोट और कण्डू (खाज ) नाशक है। फा. ई० । देखो--अश्वगंधा । रा०नि०प० । कषेला, बण, पसीना, कफ अश्वगंधा (धिका) ashvagandha,-ndतथा कृमिनाशक और विद्रधि, बधिरता, योनि hika-सं० (हिं.) स्त्री० एक सीधी मादी जो बकई रोग नाशक है। भा०१०१ भा० बटादि गर्म प्रदेशों में होती है और जिसमें मको की तरह घ.। मात्रा-२ मासा । छोटे छोटे गोल फल लगते हैं । बाराही गेठी, असगंध, पुनीर-हिं० । (३) पलाश भेद । स० सू० ३६ प्र. शरीर (४) लताशास्त्र | शियादिलता-बं०।। संस्कृत पर्याय-जिस संस्कृत शब्द के अन्त प० मु०। में "गंधा" और आदि में वाजि वाचक शब्द For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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