SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 775
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . भ्रवसन्ताजनक अवलनाम .. ..... thetics )-इं: । मुखहरात कुल्ली-अ० । जाए तो फिर भयानक लक्षण प्रगट होने बेहोशी पैदा करने वाली दवा-उ० । लगते हैं । अस्तु, अनैच्छिक मांस पेशियों के वातग्रस्त हो जाने से प्रायः मल. ये औषधे इस प्रकार संज्ञाशून्यता उपस्थित ..... कर देती हैं कि फिर किसी भाँति की वेदना का मूत्रका प्रवर्तन हो जाया करता है, श्वासोच्छ वास एवं हार्दिक गतियाँ अत्यन्त निर्बल और अन्ततः बोध नहीं होता अर्थात् सार्वदेहिक स्पर्शाज्ञताजनक औषधों के उपयोग से मनुष्य पर पुण अनियमित हो जाती हैं। प्रायः श्वासोच्छ्वास वा हृदय केन्द्र के वातग्रस्त हो जाने से मत्यु अचेतता व्याप्त हो जाती है। दुख एवं वेदना का उपस्थित होती है। सर्वथा लोप हो जाता है तथा परावर्तित चेष्टाएँ विनष्ट हो जाती हैं । यह औषध "विकास मूर्छा दूर होने के पश्चात् जब चैतन्यता का सिद्धांत" ( इस नियम के अनुसार वातकेन्द्रों पर उदय होने लगता है तब जिस क्रम से मनुष्य औषध का प्रभाव उनके विकास-क्रम के विरुद्ध - की शारीरिक क्रियाएँ अवसित हुई थीं, सीक होता है ) तथा पूर्वोत्तजन एवं नैर्बल्योत्तर उसके विपरीत उत्तरोत्तर वे उपस्थित होने लगती नियम" (इस नियम के अनुसार अल्प मात्रा हैं। किन्तु औषध का प्रभाव कई घंटे तक शेष में , अथवा प्रारम्भ में औषध का उत्तेजक एवं रहता है और चैतन्यता लाभ करने के पश्चात् भी , अधिक मात्रा में अथवा पश्चात् को उसका अधिक काल तक शारीरिक पेशियों भली प्रकार नैवल्य जन क प्रभाव होता है) के उत्तम उदाहरण कार्य सम्पादन करने के अयोग्य रहती है। हैं। अस्त इनके प्रामाण कराने अर्थात संघाने पूर्ण अंचैतन्यता प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष, दोनों से भावना शक्रि प्रबल हो जाती है। पुनः मस्तिष्क | कारणों से उत्पन्न की जा सकती है। प्रस्तु अप्रमस्युत्पादक केन्द्रों में गति होती है और... रोगी त्यक्ष ( Indirect) रूप से संज्ञाशून्यता चित्त वृधि की अस्थिरता एवं विभिन्न केन्द्रों की उपस्थित करने की निम्न लिखित तीन विधियाँ असाधारण तथा अनियमित गतिके कारण अनाप शनाप मूर्खतापूर्ण बातें करने लगता है और हाथ | (1) शिरोधोया.धमनी FOurobias ) पाँव. मारता है। थोड़े काल पश्चात :मास्तिष्कीय | या गर्दन कीरग को दबाकर या उन्हें बांधकर शनियों में निर्बलता के लक्षण प्रगद हो जाते हैं, : या. दोनों पार्क के वैगस-नर्वः तथा' शिरोधीया बुद्धिभ्रंश होता तथा मस्तिष्क के उच्च केन्द्रों में धमनी को दबा कर. और' इस प्रकार मस्तिष्क और अधिक गति होती है। अतएव हृदय रक्रसञ्चार को अवरूद्ध कर, जिससे वातसेलीय स्पंदित होता, श्वासोच्छू वास तीब्र हो जाता और संवर्तन क्रियाश न्य हो जाता है, पूर्णः विसंतभार बढ़ाजाता है। क्षण भर बाद. ये लक्षण भी ज्ञता उपस्थित की जा सकती है। अदृष्य हो जाते और रोगी पूर्णतः अचेत हो (..२) रन की, वेनासिटी (शिम सम्बन्धी जाता है । सम्पूर्ण शरीर की बोध शक्ति लुप्तप्राय प्रतिक्रिया ) को बढ़ाकर. और इस प्रकार, वातहो जाती, मांस पेशियाँ शिथिल हो जाती एवं सेलों की प्रोषजनीकरण क्रिया को घटा, कर भी किसी प्रकार की चेष्टा से भी ये गतिशील नहीं बेहोशी उत्पन्न की जा सकती है। होती हैं। नेत्रकनीनिका संकुचित हो जाती, नाड़ो एवं (३) मस्तिष्क से शोणित को शरीर के श्वासोच्छवासकी गति कम हो जाती है, इत्यादि। . अन्य भागों में पहुँचा कर. जैसे पृथ्वी पर उत्तान प्रायः ऐसी ही... दशा में शस्त्रकर्म सम्पादित लेटे हुए रोगी को सहसा उझाकर खड़ा कर देने होता है। से भी बेहोशी उत्पन्न की जा सकती है। .. पर यदि जेनरल. अनस्थेटिक्स ( सायंगिक अवसन्नीन avasannina-हिं० अनलजीनः संज्ञाहर ) का प्रयोग असावधानतापूर्वक किया | अवसनीन । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy