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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अदुधात्रसेवक अविभेदक शिरीष वीजापामार्गमलं नस्यं विडान्त्रितम्। (मिठाई) श्रादि सेवन न करे। क्यों कि अधिक ..स्थिसरसो वा लेपेतु प्रपुत्राटोऽम्लकल्कितः॥ मांस तथा मिठाई के सेवन से वेग की वृद्धि होती .:(वा० उ० २४ अ०) है । जिस पदार्थ के सेवन से. वेगारम्भ होने की सुधनाचार्य के मत से नस्य कर्म आदि रूप माशंका हो उसका कदापि व्यवहार न करें' और .औषध, जांगलप्राय भोजन और दुग्ध एवं अन्न | प्रत्येक प्रकार के भारी तथा प्राध्मानकारक के बने पदार्थ तथा घृन आदि केवल सूर्यावत में पाहार से परहेज करें। रोगी को चाहिए कि ही नहीं, प्रत्युत अर्धभेदक में भी प्रयोजनीय हैं । भोजन करने से पूर्व एक घंटा तक सर्वथा श्रारामसे और स्नेह, स्वेद, शिराव्यधन ( फसद खोलना ) लेटने की आदत डाले । इस बात का सर्वथा तथा अवपीड़नस्य और कर्णशूलोक दीपिकातैल ध्यान रखें कि मलावरोध न हो। पाखाना साफ़ प्रादि में से जो उपयुक्र हो उसका व्यवहार... हो जाया करे । इसलिए किसी मृदुरेचक औषध का ब्यवहार करें और कभी कभी (महीने में ... शिरीष, मूलक ( मूली) तथा मदनफल एक बार ) ५-७ दिवस पर्यन्त निभ्नयोग का इनका अवपीड नस्य देना अर्धावभेदक । व्यवहार करें। तथा सूर्यावत्त दोनों में हितकारक है । वच और मैग्नेसियाई सल्फास २० ग्रेन, पिप्पली का अवपीड़न करना इसमें लाभदायक क्वीनीनी सल्फास २० प्रेन, है।, अथवा मुलेठी का बारीक चूर्ण कर उसमें एसिड सल्क ढिलं .१ मिनिम, मधु मिल कर इसका अवपाड़ करें। मैंसिल लाइक्वार स्ट्रिक्नीनी : २ मिनिम, अथवा चन्दन के चूर्ण में शहद योजित कर इस इन्फ़्यु जम जॉरेंशियाई (ऐड) १ पाउंस । का अवपीड़न करें। (सु० उ० २६ अ०) ऐसी एक-एक मात्रा औषध दिन में ३ वार :..::. : परीक्षित नस्य ........ काश्मीरी पत्र, करकीर-पन्न, छोटी इलायची, काय जब वेदना के वेग से पूर्व आँखों के सामने फल, नकछिकनी, -जौहर नवशादर और सफेद चिनगारियाँ सी उड़ती दिखाई दें या कनपटी पर चन्दन । सबको समान भाग लेकर खूब : बारीक सुरसुराहट बोध हो या शिरोघूर्णन वा शिर के चूर्ण कर रखें । इसका, नस्य लेने से प्राधासीसी एक पार्श्व पर सूचम सी वेदना हो तब दो तीन को लाभ होता है........ दिवस पर्यन्त १० ग्रेन अमोनियम् ग्रोमाइड को डॉक्टरी चिकित्सा ... किञ्चित् जल के साथ दिन में ३ बार व्यवहार रोग के मूल कारण का पता लगाकर उसको करें। 'अथवा ३ दिन तक १५ ग्रेन *शिल्यम दूर करने का प्रयत्न करें और यदि प्रधान कारण लैक्टेट थोड़े सोडावाटर में मिलाकर ऐसी एक ज्ञात न हो सके तो निम्न लिखित उपाय काम में एक मात्रा दिन में तीन चार बार दें। रोगी को प्रादेश कर-कि बह स्वास्थ्य बेग कालीन चिकित्सा संरक्षण सम्बन्धी नियमों का पालन करे और जब शिर में दर्द होने लगे तब रोगी को एक मध्य मार्म बन कर जीवन निर्वाह करे। .स्वच्छ अँधेरे कमरे में सुखपूर्वक लिटाए रखें। वहाँ एवं खुली हुई वायु में रहे । दैनिक वायु सेवनार्थ पर किसी प्रकार का शोर व गुल न होने दें। भ्रमण किया करे। अधिक श्रम एवं वैकल्यकारक / . . सेगी को कोई प्राहार न दें। यदि 'प्रामाशय कार्थी संधी चिंता प्रादि से अपने को दूर रक्खें।।: पार से पूर्ण हो तो कोई वामक यथा - ड्राम 'यथासम्भव अपने को प्रसन्न रखने का यत्न करें। वाहनम् इपिकेक्वानी ४ श्राउंस जल में मिला. "उष्ण व उत्तेजक आहार यथा पोलाव, वर्मा, कर पिलाएँ जिसमें १-२ वमन प्राकर कोष्ठ शराब वा कबाब, चाय तथा कहवां और मिष्ठा शुद्धि हो जाए और यदि प्रामाशय रिक हो तथ EPISOपाकर For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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