SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 713
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्दित और वह किसी चीज को मुँह से खींचने वा मिलाकर फिर अग्नि पर रक्खे । दूध के भली चूसने के अयोग्य होता है। प्रकार मिलजाने पर उतार कर शीतल . होने पर असाध्यता मथकर घी प्रस्तुत करें। फिर इसको तथा मधुर जो मनुष्य अत्यन्त क्षीण होगया हो जो स्पष्ट | औषध यथा काकोल्यादि और सहा अर्थात् माष. रूप से नहीं बोल सके, जिसकी आँखों के पलक पर्णी ( कोई कोई इनके स्थान में पूर्वोक क्वाथ्य न लगें और रोग को उत्पन्न हए तीन वर्ष व्यतीत द्रव्यों के चतुर्थांश कल्क का प्रक्षेप देते हैं ) के कल्क को चतुगुण 'दुग्ध में पकाकर तैले प्रस्तुत हो गए हों अथवा जिसकी नासिका, मुख तथा नेत्र से जल स्राव होता हो एवं काँपता हो वह अर्दित . करें। इस क्षीरतैल को अर्दित रोगी के 'पिलाने ' एवं अभ्यंग अादि में प्रयुक्र करें। बैल रहित रोगी असाध्य है। यथा-- सिद्ध कर प्रयुक करने से यह अक्षि तर्पक है। क्षणस्यानिमिषातस्य प्रसक्ताव्यक्तभाषिणः ।। । सु० चि०। म सिध्यत्यदितं गाढ़ ( बाढ़--सु०) त्रिवर्ष डॉक्टरी घेपनस्य च ॥ मा० नि० । चूँ कि यह रोग प्रायः कठिन शीत के कारण चिकित्सा से ही हो जाया करता है। प्रस्तु, विकृतपार्श्व (श्रायुर्वेदीय) के कान के पीछे ब्लिस्टर लगाएँ या चन्द जोंके अर्दित रोग में नस्य देना, शिर में तेल लगाना | लगवाएँ और फिर एक लोटे या पतेली में तथा कान और आँख का तर्पण करना हित है। खौलता हुधा पानी डाल कर उसकी टोंटी विकृत यदि अर्दित शोथ युक्र हो तो वमन करामा कर्ण के छिद्र में प्रविष्ट करदे अथवा इसके बहुत तथा दाह और राग से युक्त होने पर फस्द खोलना समीप रखे जिसमें उष्ण जलवाष्प से कान के चाहिए । यथा भीतर गर्मी पहुँचे । दस मिनट तक इस प्रकार अदिते नाथन मूर्ति तैलं श्रोत्राक्षि तर्पणम् । करें फिर गरम रुई से कान को सेकें, पश्चात् वही सशोफे वमनं दाहरागयुले सिरा व्यधः ॥ गरम रूई कान पर बाँध दें। ५ ग्रेन कैलोमेल (वा० चि० २१ अ० ) और एक ड्राम कम्पाउंड पाउडर श्रॉफ जैलप सुताचार्य के मत से अर्दित रोगी की वात- मिलाकर खिल्ला दें जिसमें दो तीन दस्त व्याधि विधानोक चिकित्सा करें और श्राजाएँ । मस्तिष्क एवं शिर की बस्ति, नस्य, धूमपान, आहार--शोरबा या यरहनी ( मांस रस) स्नेहन, स्वेदन तथा नाडी स्वेद इतना विशेष करें प्रभृति दे। इस हेतु निम्न लिखित औषध प्रयोग में लाएँ यदि रोगी निर्बल हो तो ईस्टन सिरप या सतृण (कुश, काश, नल, दर्भ और इनुकांड), श्राधे से १ ड्राम फेलोज़ सिरप को किञ्चित् जल में महापश्चमूल (वित्व, अग्निमन्थ, श्ररलु, गाम्भारी मिलाकर दिन में दो बार भोजनोपरांत दे। और और सुद्राग्निमन्थ), काकोल्यादि श्रष्ट वर्ग की यदि रोग उपदंश के कारण हो तो पोटासी आयोप्रोपधिया, विदारिगन्धा श्रादि, प्रौदकांस अर्थात् जलीय जीवों का मांस यथा कर्कट, शिशुमार, डाइड का प्रयोग करें यदि कान में क्षत प्रभृति हो " तो उसका उचित उपाय करें और यदि कोई प्रभृति, अनूपदेशीय जीवों का मांस यथा वराह दाँत बोसीदा होगया हो तो उसको निकलवा आदि और कशेरु, सिंघाड़ा प्रभृति प्रौदक कन्द | इनको समान भाग लेकर १ द्रोण ( ३२ सेर ). · दुग्ध और २ द्रोण (६४ सेर)जलमें क्वाथ करें। नोट-यदि यह रोग शीत, निर्बलता या चौथाई अथवा दग्ध मात्र अवशेष रहने पर उतार | ... उपदश क कारण हो ता उचित उपचार से एक से कर छान ले । इसमें १ प्रस्थ (३र पल) तैल . अढ़ाई मासमें अच्छा हो जाया करता है और यदि For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy