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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अर्जुन व श०, भा० । रस० र० । मूच्छित घृत ४ स्वरस १६ श० ( अथवा ४४ पल अर्जुन की छाल को ६४ श० जल में यहाँ तक पकाएँ कि १६ श० जल शेष रह जाए। बस इसको छान कर घृत में सम्मिलित करें ) और अर्जुन वल्क १ श०, इनको एकत्रित कर घृत पाक विधि से पकाएँ । च० ३० हृद्रोग-चि० । अर्जु' नत्वक् arjuna tvak - सं० स्त्री० अर्जुन वल्कल, अर्जुन की छाल | Terminalia arjuna ( Bark of - ) । च० द० भ० सा०वि० शतक्यादि । ६६५ अर्जुन त्वगादिलेप: arjuna-tvagádi-lepah सं० पु० अर्जुन की छाल, मजीठ, वृष (बाँसा) को पीस शहद में मिलाकर लगाने से झाँई और यंग का नाश होता है । वृ० मि० र० । अर्जुन नामाख्यः arjuna-námakhyahसं०पु० श्रजुन वृक्ष, काहूका पेड़ | Terminalia arjuna ( Tree of - ) भा० । जुनसुधा arjuna-sudhá - सं० स्त्री० अर्जुन कrs का चूर्ण जुनाथघृतम् arjunadya ghritam अर्जुनाच तैलम् arjunádya-tailam श्रर्जुनादः arjunádah - सं० त्रि० दर्भकाश खादक | च० वि० २ श्र० । अर्जुनादि क्षीरम् arjunádi-kshiram-सं० ली० दूध को अर्जुन की छाल डालकर पकाकर पीने से पित्त जन्य हृद्रोग दूर होता है । यो० २० । अजुनी arjuni - सं०त्री०, ( हिं० संज्ञा स्त्री. ) ( १ ) सफेद रंग की गाय । श्रथर्व० सू० ३ । का० २० । ( २ ) उषा । ( बुरादा ) । गुण- श्रर्जुनोद्भुत सुधा कफ को नाश करने श्रजुनी arjuní-सं० [स्त्री० गवि, गाय, गो | वाली है । वै० निघ० । द्रव्यगुण । ( A cow. ) मे० नत्रिक । अर्जुनाख्यः arjunákhyah - सं० पु० (, ) श्रर्जुनोपमः arjunopamah सं०पु० शाक काशतृण, कासा । ( Saccharum spont- द्रुम ( A potherb in general. )। aneum.) र० मा० १ ( २ ) अर्जुन वृक्ष, शेगुन गाछ - बं० । र० मा० । ( २ ) शालवृक्ष कहू का पेड़ | Terminalia arjuna. ( Shorea robusta . ) रत्ना० । ( 'T'ree of - ). अर्जुन arjunná-श्रव० श्राछ-नैपा० । परोकपी - श्रासा० । गणसूर मह० । भूटन- कुसम - ते० । थेत्यिङ् - बर० । क्रोटन ऑब्लॉगिफॉलिस Croton oblongifolius, Roxb.) ले० । सं० की ० अर्जुन, परवल, नीम, वच, अजवाइन, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म् रास्ना, मजीठ, भिलावाँ, अगर, मोथा, कूट, चीता, चन्दन, खस, गोखरू और सफेद कत्था । इनका काथ कर, उसमें नवीन परवल, हलदी, हरद, बहेड़ा, श्रमला, पाखान भेद, श्रजुन, अजमोद, लोध, मजीठ और अतीस इनका कल्क डालकर पकाया हुआ घी 'श्रर्जुनाद्य घृत' ' कहलाता है 1 गुण- इसे सेवन करने से पित्त सम्बन्धी प्रमेह नष्ट होते हैं । नोट - इसी क्वाथ तथा कल्क से पकाया हुश्रा तैल " श्रर्जुनाद्य तैल" कहलाता है । गुण-उन तैल को व्यवहार में लाने से कफ तथा वायु सम्बन्धी प्रमेह दूर होते हैं । भा० म० ३ भा० मेह० चिए । अर्जुनाद्य क्षीरपाकम् arjunadya- kshirapaka :: सं०ली० अर्जुन (कहुआ) की छाल लेकर गोदुग्ध में पकाकर पीने से हृदय रोग का नाश होता है। वंगसे० सं० हृदरो० चि०। ८४ गुण- इसका तैल एवं छाल औषध कार्य में श्राती है । मेमो० अर्जेण्टम् argentum ले० चाँदी, रौप्य - हिं० | फ़िज़्ज़ह - अ० (Silver. ) For Private and Personal Use Only रजत, । नुक्रूरह - फा० ।
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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