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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्गाटा श्रगोटा १ लिक्विड एक्सट्रक्ट प्रोफ़ अर्गट ३० मिनिम, डायल्युटेड सल्फ्युरिक एसिड १७ मिनिम, क्लोरोफ़ॉर्म वाटर १ पाउस पर्यन्त । (बी० पी० सी.) (५) भिसचूरा अटी अमोनिएटाMistura ergotæ ammoniataअमोनित अर्गट मिश्रण | मज़ीज शैलम अमोनी। लिक्विड एक्सट्रक्ट ऑफ़ अर्गट २० मिनिम, अमोनियम काबो नेट ३ ग्रेन, इमल्शन ऑफ़ क्रोरोफॉर्म १५ मिनिम, कैम्फर वाटर १ अाउस पर्यन्त । (युनिवर्सिटी हास्पिटल ). (६) मिसचूग अर्गोटी एट फेराई Mistura ergotæ et ferri-triz मिश्रण । मज़ीज शैलम व आहन । लिक्विड एक्सटैक्ट श्राफ अर्गट ३० मिनिम, सोल्युशन अफ फेरिक क्लोराइड १५ मिनिम, साइटि क एसिड ५ग्रेन, क्लोरोफॉर्म वॉटर पाउंस पर्यन्त । ( गाटज़ हॉस्पिटल लण्डन ) (७) वाइनम अर्गेटो Vinum erg. othe-अर्गट सुरा । शराब शैजम । ___ फ्लु इड एक्सट क्ट ऑफ अर्गट २० भाग, | डीटन्नेटेड शेरो ८० भाग । (बी० पी० सी०) (८) एसिडम स्क्लिरोटिकम् Acidum Scleroticum-ले० । स्लिरोटिनिक एसिड Sclerotinic acid-इं० । यह अर्गट द्वारा प्राप्त एक महान प्रभावकारी सत्व है। परीक्षाएक निर्बल अम्लीय सार जो धूसर स्फटिकीय चूर्ण रूप में पाया जाता है। यह श्राद्रताशापक और जलविलेय होता है। गुण-तथा उपयोग--1 ग्रेन स्रोिटिनिक एसिड प्रभाव में ३० ग्रेन अर्गट के बराबर होता है । यह सूक्ष्म रक्तवाहिना संकोचक है । अस्तु यह रकास्थापक रूप से तथा रक्तसंचय जनित .' शिरांशूलहर रूप से लाभदायक है। मात्रा- सं । न, त्वक स्थ अन्तःनेप द्वारा ( वा ५ से १५ मिनिम मुख तथा अन्तः हेप द्वारा-ह्वि० मे० से.)। ( ) कॉन्युटीन साइट्रेट Cornutin citia te-यह अर्गट के एक ऐलकलाइड (क्षारोद ) का बिलेय लवण है जो कोबर्ट के मतानुसार अर्गट का क्रियाशील सत्व का प्रभावात्मकांश है । यह एक धूसर वर्ण का चूर्ण है, प्रसव हेतु जिसका अधिक उपयोग होता है । अस्तु से ग्रेन की मात्रा में मुख द्वारा तथा से - ग्रेन की मात्रा में त्वक्स्थ सूचीवेध द्वारा इसका प्रयोग करते हैं। (१०) अोटीन :Ergotin)-यह अर्गट का केवल एक विशुद्ध सत्व है। अगोंटीन (Ergotine ), बोलियन्स प्रोटीन ( Bonje. an's Ergotine)-इं० । उपयोग __ इसका प्रायः उन सभी दशाओं में प्रयोग होता है, जिनमें कि अगट प्रयुक्र है । परन्तु निम्न लिखित कतिपय अन्य ऐसे विकार भी हैं जिनमें इसका उपयोग होता है। (१) नपुसकत्व (जीवता )--शिश्न पृष्ठस्थ शिराओंके फल जाने के कारण जब उचित प्रहर्षणाभावसे मैथुन शक्ति कम हो जाती है, तब अगोटीन के त्वक्स्थ अन्तःक्षेपसे प्रायः पूर्ण लाभ होता है। (३) श्रोटोन और क्वानीन-यह दोनों गर्भाशय एवं प्लीहा को संकुचित करते हैं; और विशेप कर उस अवस्था में जब विषम ज्वरों में प्लीहा कोमल हो या वह बढ़ गई हो, तब इनमेंसे प्रत्येक एक दूसरे को प्रतिनिधि हो सकता है। विपम ज्वरों में इन दोनों का मिश्रण अत्यन्त उपयोगी होता है और इस प्रकार उपयोग करने से कीनीन के अधिक परिमाण की बचत होती है। क्योंकि मिश्रित रूप में व्यवहार करने से अाधा ही कोनीन प्रयुक्त होता है। (३) यदमा जन्य गत्रि स्वेद यह यमा रोगियों के रात्रिस्वेद में हितकर है। मात्रा-२ ग्रेन तीन वा चार बार दैनिक । कमी की दशा में मात्रा घटाकर देनी चाहिए। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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