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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगोटा अोटा यह फफ दी सीकेली सिरिएली ( Secale Cereale) नामक धान्य में जिसको आँग्ल भाषा में कॉमन राई ( Common Rye ) और अरबी में शैलम या जवेदार कहते हैं, लग जाती है ( अर्थात् उक्र फफूंदी छत्रकीय जीवाण या वानस्पतिक कीट राई के दाने के भीतर प्रविष्ट होकर उसकी रचना में परिवर्तन उपस्थित कर देते हैं।) तब उक्र विकृत राई को जो वास्तव में उक फर्फ दी से पूर्ण होती है, अर्गट वा अर्गट अॉफ राई कहते हैं। वर्णन-इसके किसी भाँति नोकीले त्रिकोणाकार साधारणतः वक्र दाने होते हैं जिनकी नोक पतली होती है। ये से वा एक इंच लम्बे और इंच चौड़े होते हैं। इनके दोनों पृष्ठ विशेष कर नतोदर पृष्ठ तीन परिखायुक्र होते हैं और दाने स्फुटित ( चिड़चिड़ाए या चटखे ) होते हैं । बाहर से ये नील लोहित । वनफशई स्याह ) और भीतर से प्याजी श्वेत वण के और भंगुर होते हैं अर्थात् इनको जहाँ से तोड़े वहीं से टूट जाते हैं । गंध विशेष प्रकार की अग्राह्य और स्वाद खराब ( कुस्वाद) तथा हृल्लासकारक होता है। रासायनिक संगठन-रासायनिक विधि अनुसार अर्गट का विश्लेषण करने पर इसमें अनेक पदार्थ पाए जाते हैं | उनमें से इसके केवल प्रभावात्मक सत्वों का ही यहाँ रल्लेख किया जाता है । वे निम्न हैं (१) स्केसालिनिक एसिड (Sphacelinic acid.) - (जिसका प्रभाव स्फेसीलोटॉक्सीन के कारण होता है ) गर्भाशयिक मांस पेशियों के संकोचनके अतिरिक्र यह रक्रवाहिनियों को भी श्राकुचित करता है । यह जल में अविलेय पर ऐलकोहल (मद्यसार ) में विलेय होता है। (२) कॉन्युटीन (Cornutine.)-यह एक ऐल्कलाइड (क्षारोद) है जिसका मुख्य कार्य जरायु सम्बन्धी मांसपेशियों का संकोचन है। यह जल में अविलेय होता है। (३) अग टिनिक एसिड (Ergotinic acid.) एक ग्लूकोसाइड । (४) अर्गेटॉक्सीन ( Ergotoxine. )-एक गैंग्रीनोत्पादक सत्व जो प्रयोग करने पर व्यर्थ सिद्ध होता है। कहते हैं कि यह इसका प्रभावात्मक अंश है । अगोंटीनीन इसका अन्हाइड्राइड है। (५) अमीन ( Ergamine. ) तथा (६) टायरमीन ( Tyramine.)। (७) एक स्थिर तैल ३०%, (८) ट्राइमीथल अमाइन जो इसकी गंध का मूल है और (1) टैनोन तथा रक्षक पदार्थ प्रभृति अवयव इसमें विद्यमान होते हैं। संयोग-विरुद्ध ( Incompatibles. )ग्राही ( Astringent.) औषध और मेटैलिक साल्ट्स (धातुज लवण )। . __ प्रतिनिधि-कार्पास मूलत्वक | नोट-स्त्री रोगों की चिकित्सा में कार्पास अर्गट से श्रेष्ठतर एवं निरापद है । देखो-कास । सूचना-अर्गट के समूचे दानों को सुरक्षिततया शुष्क करके ( अग्नि पर नहीं, प्रत्युत प्रशांत चूर्ण के उत्ताप पर शुष्क करें) सर्वथा शुष्क एयर टाइट अर्थात् वायुरोधक शीशी में डालकर और उसमें किंचित् कपूर डालकर रखें जिसमें वह विकृत न हो एवं उसमें कीड़े न लग जाएँ। इस श्रोषधि का चूर्ण बहुत शीघ्र विकृत हो जाता है। ___ संयुक्र राज्य अमेरिका की फार्माकोपिया में लिखा है कि एक वर्ष पश्चात् यह अप्रयोजनीय हो जाता है। __ प्रभाव--प्रार्त्तवप्रवर्तक, गर्भशातक और साांगीय रकस्थापक । औषध-निर्माण तथा मात्रा-- - चूर्णित अर्गट, १० से २० ग्रेन, प्रसव हेतु, ३० से ६० ग्रेन । तरल रसक्रिया (सार), १० से ६० मिनिम । घन सत्व ( रसक्रिया), १ से ग्रेन। फाण्ट (४० में १), १ से २ ल.. अाउंस। तैल, १० से २० वा ३० मिनिम प्रसवार्थ । टिंक्चर वा आसव (१ से ४ प्रूफ स्पिरिट), १० से ६० मिनिम । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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