SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 641
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir অবাৰা रात के पश्चात् लेखक (Sir. W. whitla) एवं दद्रु प्रभृति त्वगरोगों में शीघ्र एवं निश्चय को इस बात से सन्तुष्टि हुई, कि यदि उक्र प्रलेप प्रभावकारी जो औषध मुझे मालूम हुई है वह को केवल रोग स्थल तक ही सीमित रक्खा गोपा पाउडर तथा नीबू स्वरस घा सिरका है। जाए एवं स्वस्थ त्वचा को उसका सर्श न होने इनको दिन में २ या ३ बार निरन्तर लगाने से दिया जाए तो इसको आवश्यकता हीन हो। आपको पूर्ण लाभ होता है। प्रलेप-विधि-थोड़ी सो विश्वास है कि यह छोटी सी बात इसकी चिकि- दवा को सिरका वा नीबू के रस में घोलकर • त्सा की सफलता का गुढ़ तत्व है। जब वह मलाई की भाँति होजाए तब उसे डॉक्टर फॉक्स ने क्राइसारोबीन को जल के विस्फोटक पर कुछ दूर तक प्रलेपित कर दें। साथ पीस कर इसका कल्क प्रस्तुत कर इसे धब्बों (डाइमांक) पर लगा ऊपर कोलोडिअन से प्रावरित करने की अन्तःप्रयोग-क्राइसारोबीन के अन्तःप्रयोग सम्मति दी है। (Tramaticine ) अर्थात् से विचचिका (Psoriasis), ज्वलनशील गट्टापर्चा इससे भी श्रेष्ठतर, सिद्ध होगा । ब्रेक विस्फोटक ( Eczena) तथा यौवनपीड़िका प्रलेप वर्तिकाएँ Brookes' salve sticks अर्थात् मुंहासा प्रभृति में लाभ होता है, परंतु अति न्यून मात्रा ( ग्रेन) में भी इससे प्रायः उससे भी उत्तम होती है। परन्तु पूर्वाक सम्पूर्ण विधियों में से सर्वोत्तम विधि लेखक हिटलों की उदर में ऐंठन, रेचन व वमन होते हैं, सुधा राय में धब्बे को औषध के तीन कठिन प्रलेप वा कम हो जाती है और व्यग्रता प्रतीत होती है। अस्तु, इसका अन्तःप्रयोग न करना चाहिए। कल्क द्वारा प्रावरित कर रखना और उसके सिरे पर रबर प्रस्तर का एक बड़ा टुकड़ा स्थापित योग-निर्माण विषयक आदेश-क्राइसाकरना है। रोबीन को मुख मण्डल पर नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि इसके क्षोभ से नेग्राभिष्यन्द होने का भय विचर्चिका (IPsoriasis)रोगसे पीड़ित प्राणी रहता है । परन्तु शिर पर १५ ग्रेन प्रति पाउंस के शरीर को एक ओर के विकारी स्थल पर वाला प्रलेप लगा सकते हैं। प्रलेप के मद्देन से उसका स्थानिक प्रभाव देखा क्राईसारीबीनकी एकही समय शरीर के अधिक जा सकता है । सप्ताह अथवा दस दिवस में उन भाग पर नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इसके ओर की त्वचा के सुधार का निश्चित चिह्न दिखाई शोपित हो जाने से बुरे लक्षण उपस्थित होने का देता है । इसकी दूसरी ओर की त्वचा पर भी यह भय रहता है। अस्तु, यदि शरीर पर बहुत इससे कम स्पष्ट नहीं होता। और उक्त औषध विस्तीर्ण दद्रु हो तो उसके थोड़े थोड़े भाग पर को यथोक विधि द्वारा उपयोग करने से विकृत दवा लगाते रहें । जब एक ओर से वह अच्छा हो धब्बे लुप्तप्राय होने लगते हैं, तब उस ओर की जाए तब दूसरी ओर दवा लगाएँ। . स्वचा भी जिस ओर श्रीपध नहीं लगाई गई है। वस्त्र पर जो काइसारोबीन प्रलेप का चिख पड़ परिणामस्वरूप सुधार के चिह्न प्रगट करने जाता है वह वानस्पतिकाम्ल, पोटाश या क्लोरिनेलगती है। लेखक ने उक औषध को निरन्तर टेड लाइम के हलके घोल से दूर हो जाता है। ..उस स्थल पर लगाने से जिसपर सर्व प्रथम श्री अथवा उस पर प्रथम बेशीन लगाकर उसकी षध लगाई गई हो शरीर के सम्पूर्ण पृष्ठतल चिकनाई को दूर करें और फिर उस पर कोरीनेको रोग मुक्त होते हुए पाया। सम्भवतः ऐसा टेड लाइम का घोल लगाएँ। कभी कभी . औषध के शरीर में शोषित होजाने और विकारी किञ्चित् कास्टिक सोडा का घोल भी लगानी क्षेत्र तक पहुँचाए जाने के कारण होता है। पड़ता है। ( मे०.मे. हिला ) ........ रालः alalah--सं० पु - "विस्फोटक, विचचिका (Psoriasis) अराल arāla-हिं० संज्ञा पुं॰ ) . १ ) भूष, For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy