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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्लपित्त अम्लपनसः ५३६ व० ४ । (२) चांगेरी, चूका । ( Rumex Scutatus ) रा० नि० व० ५। (३) शुद्रालिका-सं०। खुदे णुनी-बं० । अम्लपनसः amla-panasah--सं० पु. लिकुच वृत, बड़हर । डेलो, मान्दार गाछ-६० । श्रोटीचे झाड़-म० । वै. निघः । (Artocal pus Lakoocha.) अम्ल पर्णिका amla-parnikā -सं० अम्लपamlaparni. स्त्रो० वृत विशेष । सुरपर्णी । भा० । गुणअम्लपर्णी वात, कफ तथा शूल विनाशिनी है । ao fatto i See-Sura parní. अम्ल पादपः anla-pada pah-सं० पु. वृक्षाम्ल, अमली । तेतुल गाछ-बं० । कोवंवी -म० | व. निघ०। अम्लपित्तम् amla-pittam-सं० क्ली० । अम्लपित्त amla-pitta--हिं० संज्ञा पु. (Ilyper-acidity), सावर बाइल (Sourbile ).-३० । हुम् गत--१० । रोग विशेष। इसमें जो कुछ भोजन किया जाता है, सब पित्त के दोष से खट्टा हो जाता है। निदान पूर्व सञ्चित पित्त, पित्तकर श्राहार विहार से जलकर अम्लपित्त रोग पैदाकरता है। पित्त विवग्ध होने पर भोजन अच्छी तरह पचता नही हैं, जो । पचता है वह भी अम्लरस में परिणत हो जाता है. इसी से अम्ल प्रास्वाद होता है और खट्टी डकार श्रादि उपद्व उपस्थित होते हैं। अजीर्ण होने पर भोजन, गुरु पदार्थ घऔर देरसे पचने वाली वस्तुओं का भोजन, अधिक खट्टे और भुने द्रव्यों का खाना इत्यादि कारणों से अम्लपित्त रोग उत्पन्न होता है । कहा भी है विरुद्ध दुष्टाम्ल विदाहि पित्तप्रकोपि पानान्नभुजो विदग्धम् । पित्तं स्वहेतूपचितं पुरा यत्तदम्लपित्तं प्रवदन्ति सन्तः ॥ (मा०नि०) अर्थ-विरुद्ध (क्षीर, मत्स्यादि), दुष्ट(बासीअन्न), खट्टा विदाहि तथा पित्त को प्रकुपित करने वाले अन्नपान ( तक्रसुरादि ) के सेवन से विदग्ध (अम्लपाक) हुआ और पहिले बर्षाऋतुमें जल तथा औषधों में स्थित विदाह आदि कारणों से जो पित्त सञ्चित हुअा है, उसके दूषित होने को अम्लपित्त कहते हैं। लक्षण श्राहार का न पचना, क्रांति (थकावट वा अमित होना), वमन याना या जी मिचलाना, तिक तथा खट्टी डकार आना, देह भारी रहना, हृदय और कंठ में दाह होना और अरुचि आदि लक्षण अम्लपित्त के वैद्यों ने कहे हैं । ऊद्ध तथा अधः भेद से यह दो प्रकार का कहा गया है। ऊर्द्धगत अम्लपित्त के लक्षण उद्धगत अम्लपित्त में हरे, पीले, नीले काले, किंचित् लाल, अतिपिच्छिल, निर्मल, अत्यंतखट्टे, मांस के धोवन के जल के समान कफयुक्त लवण, कटु, तिक्र इत्यादि अनेक रसयुक्त पित्त वमन के द्वारा गिरते हैं। कभी भोजन के विदग्ध होनेपर अथवा भोजन के न करने पर निम्ब के समान कश्रा वमन होता है और ऐसी ही डकार आती है, गला हृदय तथा कोख में दाह और मस्तक में पीड़ा होती है। कफ पित्त से उत्पन्न अम्लपित्त में हाथ पैरों में दाह होता है शरीर में उष्णता अन्न में अरुचि, ज्वर, खुजली और देह में चकत्तों तथा सैकड़ों फुन्सियाँ और अन्न न पचने आदि अनेक रोगों के समूह से युक्र होता है। अधोगत अम्लपित्त के लक्षण प्यास, दाह मुर्छा भ्रम, मोह (विपरीत ज्ञान) इन्द्रियों कामोह)इनको करनेवाला पित्त कभी नाना प्रकार का होके गुदा के द्वारा निकलता है और हृल्लास (जी का मचलाना), कोठ होना, अग्नि का मन्द होना, हर्ष,स्वेद अंग का पीत वर्ण होना श्रादि लक्षणों से जो युक्त होता है उसको अधोगत अम्लपित्त कहते हैं। दोष संसर्ग से अम्लपित्त के लक्षण __ वात युक, वात कफ युक्र और कफ युक्र ये दोषानुसार, अम्लपित्त के लक्षण बुद्धिमान वैद्यों ने कहे हैं। कारण यह है कि उद्धगत में वमन For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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