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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्रकम् ४५१ अभ्रकम् (१) अभूक को तपा तपा कर कॉजी या गोमूत्र या त्रिफला के क्वाथ में विशेष कर गोदुग्ध में सात सात बार अथवा तीन तीन वार बुझानेसे अभूक शुद्ध होता है। अभूक पत्रों को लेकर गाय के धारोष्ण दुग्ध में मलें और सुखाकर फिर मलकर सुखाएँ । तीन बार ऐसा करने से अभूक नवनीत के समान कोमल हो जाएगा। (२) अभक को तपातपा कर २१ कार काँजी में डुबाने से अभूक शुद्ध होता है। (३) अभूक के पृथक् पृथक् पत्र कर और तपा तपा कर कॉजी में वुझाएँ। बाद उन पत्रो सहित काँजी को तेज धूप में धर दें। १५-२० दिन या एक मांस बाद कॉजी को फेंक दूसरे शुद्ध जल से धो लें । अभूक शुद्ध हो जायगा । (४) अभूक को तपा तपा कर सात बार सम्भालू के रस में बुझाएँ तो अभूक के गिरि दोष की शांति हो। (५) अभक को तपा तपा कर बारंबार बेर के काढ़े में वुझाएँ । पीछे सुखाकर हाथों से मर्दन करें तो धान्याभूक से भी उत्तम हो । ___ इस प्रकार शुद्धि क्रिया के पश्चात् इसके सुक्ष्म चूर्ण बनाने के लिए धान्याभूक क्रिया करें। धान्याभ्रक की निरुक्ति चूर्णाभू शालि संयुक्रं बस्य बद्धं हि कांजिके | निर्यात मईनाद्यत्तद्धान्याभूमिति कथ्यते ॥ अर्थ-चूर्ण किए हुए अभूक के साथ धानो को कपड़े में बांधकर कांजी में रख दें और उसे मर्दन करें। इससे जो रेत सा अभूक चूण निकले उसे धान्याभूक कहते हैं। __ धान्याभूक करण विधि अभक को चूर्णकर धान (चौथाई भाग) मिला दें और कम्बल में ढीला बांध कर तीन रात तक कॉजी में रखे । फिर इसे जोर से मलें । इस प्रकार मलकर पानी में डुबाकर फिर मलें, फिर डुबाएँ । इस प्रकार रगड़ने से अभक मुलायम होकर शीघ्र टूटता रहता है और उसके छोटे छोटे | कण होकर कम्बल से निकल कर उस पानी में . नीचे बैठते रहते हैं। इस तरह अभक को पानी में बारीक रूप से निकाल लें। जल के स्थिर हो जाने पर नितार दें और नीचे बैठे रेत सम कोमल धान्याभूक को मारण के काम में लाएँ। अभक को कोमल करने की विधिअभूक के पत्रों को अलग अलग करके एक पात्र में रखें। इसके ऊपर से कुकरौंधे का इतना रस भरें कि वह डूब जाय और ४-५ दिन तक धरा रहने दें । तदन्तर उसके एक मोटी थैली में भर कर उसमें कौंड़ियां डालें और थैली का मुंह बांध खूब रगड़ कर धोएँ। अभूक रेशमवत् स्वच्छ एवं मुलायम हो जायगा। उपयुक्र समग्र क्रियाओं के हो जाने के बाद इसकी भस्म प्रस्तुत करें। श्याम अभ्रक भस्म विधि १-धान्याभ्रक किए हुए श्यामाभ्रक को कुकरौंधे के रस में थोड़ी सजी अथवा सुहागा मिलाकर साने, फिर टिकिया बनाकर शराब में धरें और कपरौटी कर गजपुट की अग्नि दें। एक बार में ही अभ्रक भस्म होगी। इसी प्रकार १० या १६ बार करने से निश्चद्र गेरुए रंगका अभ्रक भस्म प्रस्तुत होगा । ३० पुट या १०० पुट देने पर उत्तम प्रकार की भस्म निर्मित होगी । गुण वृद्धि के लिए १६ पुट भाक के दूध की, धत्र के पत्तों के रस की, थूहर के दूध की, भांग के काढे की, पीपल दड़ के अंतर छाल के काढ़े की, त्रिफले के काढ़े की, पीपल या बड़ के अंतर छाल के काढ़ेको, बकरे के खून की, गोखरू आदि की दें। और क्रमश: १६-१६ बार पुटित करके टिकिवा बना शराव में कपरौटी युक्त कर गज पुट में फूंकते जाएँ १००० पुट देकर सहस्र पुटी कर ले या ५०० पुटी बनाएँ। यह प्रग्येक रोग में अचूक सिद्ध होगी। २-शुद्ध अभ्रक को कसौंदी के रस में स्वरल करके संपुट में रखकर गज पुट की अग्नि दें। शीतल होने पर निकाल कर पुनः कसौदी के रस में खरल कर टिकिया बनाकर उन विधि से दस अग्नि दें तो उत्तम भस्म बन जाती। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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