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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभ्रकम् अभ्रकम् सूत्र रक [ स्फ (ऊ उ)२] ३ (शै ऊ३)२ है । यह पत्राक र कहरवी वर्ण का होता है। (४) भूराभ्रक-(Lepidomelane.) यह अत्रक भारतवर्ष में बहुत पाया जाता है । यह वर्ण में श्यामता लिए, भूरा होता है । प्रायः बाजार में यही अभ्रक मिलता है। इसके पांच पांच सात सात इंच तक बड़े पत्र देखे जाते हैं। इसका संकेत सूत्र--(उ पां) २ लो ३ ( लो स्फ) ४ (शै ऊ ४) (५) श्याम अभ्रक-( Biotite. ) इसके दो भेद हैं। एक बृहद् पत्र युक्र, दूसरा सूक्ष्म पत्र युक्र । सूक्ष्म पत्र युक्र श्याम अभ्रकको हमारे यहां वज्र कहते हैं। इस वृहद् पत्र युक्र अभ्रक का संकेत सूत्र( उ पां) ( कां लो ) २ स्फ २ (शै ऊ ४) ३ दूश्रा श्याम अभ्रक-जो छोटे पत्र का होता है और जिसकी रचना प्रायः डलीके आकार की होती है । इसकी और प्रथम की रासायनिक बनावट में भी अन्तर है । संकेत सूत्र - ( उपां) २ ( कां लो) २ का ३ स्फ (शै ऊ३) इममें उप्मजन की १ मात्रा कम है, किसी में दो कम होती है । जिसमें ऊष्मजन कम होता है वह अभ्रक अग्नि पर रखने से नहीं फूलता। जिसमें अधिक होता है वह फूलता है । जो अभ्रक नहीं फूलता उसको वज्र संज्ञक कहते हैं और रस शास्त्रों में इसी को श्रेष्ठ माना है । भस्म के लिए इसी को ब्यवहार में लाना चाहिए। कहा भी हैतथा_ कृष्ण वर्णाभं कोटि कोटि गुणाधिकम् । स्निग्धं पृथु दलं वर्ण संयुक्त भारतोधिकम् ॥ सुख निर्मोच पत्रंच तदभ्रं शस्तमीरितम् । । अर्थात्-कृष्णाभ्रक अर्थात् वज्र करोड़ों गुण युक्र है । ( इसके लक्षण ) जो चिकना, मोटे दल को, सुन्दर वर्ण युक्र और बहुत भारी हो और | जिसके पत्र सहज में अलग हो जाएँ, वह अभ्रक श्रेष्ठ है। टिप्पणी-- इस समय वैद्य तीन प्रकार के | अभ्रक भस्म के लिए काममें लाते हैं । श्वेत, भूरा और काला ( यूनानी हमीम इनमें से श्वेत और श्याम दो ही का उपयोग करते हैं)। तीनों अ. म्रकों में से श्वेत और भूरे ये दोनों शास्त्र परीक्षा में नहीं उतरते। काले अभ्रक में से कोई कोई ही इस परीक्षा में ठीक उतरता है। ___ ज्ञात रहे कि दर्दुर, नाग और पिनाक नामधारी अभ्रकों में प्रयोग करने पर उपयुक कोई शास्त्रीय दुर्गुण दिखाई नहीं देता | रही गुण की बात, प्रत्येक प्रकार के अभ्रक एक सा गुण नहीं कर सकते, क्योंकि ग्राप ऊपर देख चुके हैं कि सबके यौगिक भिन्न भिन्न हैं। जब सबों की रसायनिक रचना में श्रन्तर है तो जब उनकी भस्में बनेगी, उनको रसायनिक रचना भी एक दूसरे से भिन्न होगी। ऐसी दशा में गुणों में अन्तर पाना स्यभाविक वात हैं । पर इस कथन में कोई महत्व नहीं कि पिनाक, दर, नाग नामक अ. भ्रक अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। अभ्रक शोधन विधि . छोटेकण का श्याम अभ्रक प्राय: बालू रेत आदिसे मिश्रित होता है । अतएव भस्म बनाने से पूर्व इसकी शुद्धि प्रावश्यकीय है। अन्यथा इससे नाना प्रकार के रोगों के होने की अत्यधिक सम्भावना रहती है । यथासत्वार्थ सेवनाथं च योजयेच्छोधिताभ्रकम् । अन्यथात्व गुणं कृत्वाविकरोत्येव निश्चितम् ॥ अर्थ-सस्त्र के वास्ते या सेवन के वास्ते शोधित अभ्रक लेना चाहिए । अन्यथा अवगुण कर निश्चय विकारों को उत्पन्न करता है। अशोधित अभ्रक की भस्म निम्न दोषों को करती है। पीडां विधत्ते विविधांनराणां कुक्षयं पांडु गर्द चशोफम् । हृत्पार्श्व पीडांच करोत्यशुद्धमनहि तद्वद गुरुवति हृन्स्यात् ॥ अर्थ-यह (अशुद्ध अभ्रक ) मनुष्यों को ' अनेक प्रकार की हीड़ा, कोढ़, क्षय, पांडु सूजन और हृदय एवं पार्श्वशूल आदि रोगों को करता तथा मारी है और जठराधिन को मन्द करने वाला है। अतः अभूक शोधन की कतिपय सरल एवं उत्तम विधियों का यहां उल्लेख किया जाता है For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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