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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अपामार्ग प्रकार का होता है । ये सब गुण में भी भिन्न भिन्न होते है । ( रा० नि० ) अपामार्ग के प्रभाव तथा प्रयोग । आयुर्वेद की दृष्टि से - रासायनिक संगठन - बीज में अधिक परिमाण में क्षारीय भस्म होती है जिसमें पोटास वर्तमान होता है । (मेटिरिया मेडिका श्रॉफ इंडिया - श्रार० एन० खोरी, २. ५०४ ) । प्रयोगांश-तुप ( पञ्चांग ) अर्थात् शाखा, पत्र, मूल, तथा बीज | औषध निर्माण - ( १ ) पत्त े का स्वरस, मात्रा - १ तो० । ( २ ) क्वाथ तथा शीत कषाय, मात्रा - १ छ० से २ छ० । ( ३ ) मूल, मात्रा४ मा० से ६ मा० तक | ( ४ ) बीज चूर्ण, मात्रा - ४ आने से ६ थाने तक ( वजन में ) । (५) क्षार । ( ६ ) मूल चूर्ण । ( ७ ) मूल कल्क | ( ८ ) औषधीय तैल | इतिहास - शुक्र यजुर्वेद के अनुसार वृत्र एवं अन्य दैत्यों को मार डालने के बाद नमुचि द्वारा पराजित हुश्रा और उसे किसी सान्द्र वा द्रव पदार्थ से तथा न दिन में और न रात में ही कभी न मारने का वचन देकर उससे संधि कर ली । परन्तु इन्द्र ने कुछ फेन एकत्रित किए जो न द्रव है और न सांद्र और नमुचि को प्रातः सूर्योदय और रात्रिके मध्यकाल में मार डाला | उस दैत्य के सिर से अपामार्ग का छुप उत्पन्न हुआ जिसकी सहायता से इन्द्र सम्पूर्ण दैत्यों के वध करने में समर्थ हुआ । अब यह पौधा अपने प्रबल जादूमय प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है कि बिच्छू एवं सर्प को वातग्रस्त ( स्तब्ध ) कर यह उनके विरुद्ध उनसे हमारी रक्षा करता है । नरकचतुर्दशी वा दिवाली के त्यौहार के पहिले दिन की सुबह को अत्यन्त तड़के स्नान के समय इसको शरीर के चारों ओर घुमाते हैं । श्रथर्वेद में भी अपामार्ग का विस्तृत वर्णन श्राया है । ( देखो - श्रथर्व० । सू० १७/ ८। का० ४ । ) ४०२ अपामार्ग स्वाद में तिल और कटु, उष्ण वीर्य, कफ नाशक, ग्राही तथा वामक है और Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामार्ग बवासीर, खुजली, उदररोग, श्रम तथा रक्र का हरण करने वाला है । "रक्रापामार्ग शीतल, कटुक, कफ वात नाशक, वामक तथा संग्राही है और व्रण, खुजली और विष को नष्ट करने वाला है । धन्वन्तरीय निघंटु । रा० नि० ० ४ | सर अर्थात् विरेचक और तीच्ण है । वा० सू० १५० शिरोविरेचन । "पृश्निपर्णी त्वपामार्गः ।" च० द० सन्निपात ज्व० चि० । अपामार्ग दस्तावर, तीच्ण, दीपक, कड़वा, चरपरा, पाचक और रोचक है तथा वमन, कफ, मेद के रोग, वायु, हृद्रोग, अफरा, बवासीर, खुजली, शूल, उदर रोग और अपची रोग को नष्ट करता है । रक्तापामार्ग वातकारक, विष्टंभी कफवद्ध के, शीतल और रूक्ष है । यह पूर्वोक्र अपामार्ग की अपेक्षा गुण में न्यून है । अपामार्ग के फल ( चावल ) खाने से जीर्ण नहीं होते अर्थात् पचते नहीं हैं, पाक में चरपरे, मधुर विष्टंभी, वातकर्ता, रूखे श्रीर रक्तपित्त को दूर करने वाले हैं । भा० पू० १ भा० । अपामार्ग अग्नि के समान तीक्ष्ण, क्लेदन और परम स्रंसन है । राजवल्लभः । अपामार्ग के पत्र रकपित्त नाशक हैं । मद० व० १ । श्वेत अपामार्ग स्वादमें तिक्र, ग्राहक, दस्तावर, किंचित् कटु, कांतिकारक, पाचक तथा श्रग्नि प्रदीपक है और वमन में एवं नस्य के लिए श्रेष्ठ है । कफ, कडू । खुजली ), उदर रोग और अत्यन्त बुरे प्रकार के रक्त रोगों, मेद रोगों, उदर रोगों तथा वात, सिध्म, अपची, द्गु, वमन और श्राम रोगों को नष्ट करनेवाला है। रक्तापामार्ग किंचित् चरपरा तथा शीतल है और मन्यावष्टंभ ( मन्यास्तम्भ, गर्दन का जकड़ जाना ), वमन, वात एवं विष्टंभकारक और रूक्ष है तथा व्रण, विष, वात, कफ और खुजली का नाश करता है 1 अपामार्ग का बीज ( चावल ) पाकमें दुर्जर है। अर्थात् यह पचता नहीं है, रस में मधुर, शीतल, For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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