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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामार्ग ܪܲ9o अपामार्ग कहीं भी देखने में नहीं आता। उपरोल्लिखित कल्पित अर्थ के निर्देश द्वारा खोरी महोदय ने यह बुझाना चाहा है कि अपामार्गक्षार द्वारा रजक (धोबी) वस्त्र को परिष्कृत करता है । अमरकोष के टीकाकार भानुजी दीक्षित कृत "अपमाजन्त्यनेन" इस अर्थ द्वारा जहाँ खोरी महोदय के उद्देश्य की सिद्धि हो जाती है, वहाँ उन्होंने उक्त कल्पित अर्थ की रचना करने का क्रेश क्यों स्वीकार किया? वानस्पतिक-वर्णन-अपामार्ग एक प्रकार का फलपाकांत तुप है । यह वर्षा का प्रथम पानी पड़ते ही अंकुरित होता है, वर्षा में बढ़ता, शीत काल में पुष्प व फल से शोभित होता और ग्रीष्म ऋतु के सूर्य ताप द्वारा फल के परि. पक्व होने के साथ ही सूख जाता है। इसका क्षुप १॥ या २ फुट दीर्घ और कभी कभी इससे भी अधिक उच्च होता है। प्राघाटः, प्रत्यक पुष्पी, खरमञ्जरी, पंकिकराटकः, रक्रविन्दुः, अल्पपत्रकः, क्षवकः, किणिही, तथा व्रणहन्ता । अपाङ्, चिचिरि, ओपङ्, आपाङ् | -बं०। अत्कुमह - अ० । खारे-वाजगूनह , खारेवाज -फा० । पुष्कण्ड, फुटकण्डा, कुत्री-पं० । चिर्चिरी-विहा० । अगाड़ा, अघाड़ा-द० । नायुरिवि, शिरु-काडलाडी-ता० । उत्त-रेणि, अण्टिश, अपामार्गमु, प्रत्युक्-पुष्पि, दुच्चीणिके -ते०, तै० । कटलाटि, कडालाडि-मल०। उन्नाणि-गिडा, उत्तराणि, उत्तैरणि, उत्तरणे -कना० । उमाणिच-झाड, श्राघाड़ा, प्राधेड़ा (पांडर अघाड़ा-श्वेतापामार्ग)-मह० । अधेड़ो, झिजरवट्टो-गु० । गस्करल-हेब्बो-सिं० । किव-ला-मौ, कुने-ला-मौ-बर्मी० । सुफेद आँधीझाडो, आँधा-झाडा-मा० । अंधाहोजी -राज०। उत्तरणे--का० । उत्तरैणि--को । अघाड़ा, चिचिया--बम्ब० । ... तण्डुलीय वर्ग (V.O. Anuranlaceae) उत्पत्ति-स्थान-सर्वत्र भारतवर्ष तथा एशिया |' के वे भाग जो उष्ण कटिबन्ध पर स्थित हैं। संज्ञा-निर्णय-डिमक महोदय ( २ य खंड १३६ पृ०) "श्रध्वशल्य" शब्द का अर्थ "Roadside rice" अर्थात् पथिपार्श्वस्थ तण्डुल ( मार्ग के किनारे का चावल ) करते हैं। परन्तु शल्य शब्द का अर्थ तण्डुल नहीं, प्रत्युत शरीर में जिससे कुछ भी पीड़ा उत्पन्न हो उसको शल्य कहते हैं। डवण मिश्र लिखते हैं :'यत्किञ्चित् अवाधकरं शरोरे तत्सव मेव प्रवदन्ति शल्यम्' (सू० टी० म अ.)। अपामार्ग की मञ्जरी कर्कश होती है और उसका वस्त्र वा गात्र से स्पर्श होने से शप्रद होती है इस कारण उसको मार्ग का शल्य कहा गया है। खोरी महोदय (१म० खं०। ५०४ पृ०) अपामार्ग का यह अर्थ करते हैं,-अप या श्राब% जल+मार्ग=रजक, धोबी (Apa or ab water and márga a Washerman) 1 यह अर्थ अपूर्ण है। मार्ग शब्द का रजक अर्थ | काण्ड वा साधारण वृन्न सीधा, खड़ा, चिपटा, चौकौना (रक अपामार्ग की शाखाएँ रक वण की होती हैं ), धारीदार और लोमश होता है। पाश्विक शाखाएँ ( पार्श्व वृन्त, ) युग्म, परिविस्तृत; पत्र अति सूक्ष्म शुभ्रवण के रोम से श्रावृत्त, अण्डाकार, पत्र प्रान्त सामान्य, अधिक कोणीय, नोकीले आधार पर पतले (रकोपामार्ग के पत्र पर रनविन्दवत् दाग होते हैं ); पत्रवृन्त पत्ते की डंडी) लघु; दोनों प्रकार के अपामार्ग की मञ्जरियाँ दीर्घ, कर्कश ( इसी कारण इसका 'खरमञ्जरी' नाम पड़ा); पुष्प लघु, हरित वा लाल तथा बैंगनी मिले हुए रंग के जो मयूर कंवत् होते हैं। इसीलिए इसको मयूरक नाम से अभिहित किया गया है । बेक्ट्स कठोर तथा कण्टकाकीण होते हैं। फल के भीतर बीज होता है। यह आयताकार, धूसर वर्ण का, १ से १ इंच लंबा (बीज) होता है। तण्डुलवत् होने के कारण इसको अपामार्ग तण्डुल कहते हैं। इसका स्वाद तिक होता है। श्वेत, कृष्ण और रक्त भेद से अपामार्ग तीन For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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