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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपत्यम् ३७५ अपथ्य ज्वरो स्वनामाख्यात वातव्याधि रोग विशेष एक रोग जो अपत्यपथ: apatya-pathah-सं० स्त्रियों को गर्भपात तथा पुरुषों को विशेष रुधिर योनि ( Vagina)। हे० च०।। निकलने वा भारी चोट लगने से हो जाता है। अपत्यशत्रुः apatya-shatruh-सं० ०, इसमें बारबार मूच्र्छा पाती है और नेत्र फटते हिं० संज्ञा पु० जिसका शत्रु अपत्य वा संतान हैं तथा कंठ में कफ एकत्रित होकर घरघराहट हो । कर्कट, केंकड़ा । ( Crab) श०च० का शद करता है। नाट-अंडा देने के बाद केकड़ी का पेट फट लक्षा-वायु कुपित होकर मनुप्य की दृष्टि- जाता है और वह मर जाती है । (२) अपत्य शनि एवं संज्ञा को नष्ट कर देती. कण में घुरघुर का शत्रु । वह जो अपने अंडे बच्चे खाजाए। शब्द करती है और जब वायु हृदयको त्याग देती साँप । है तब सुख होता है और जब पकड़ लेती है तब अपत्यसिद्धिकृत् apa tya-siddhi-krit-सं० फिर बेहोशी हो जाती है । इस दारुण रोग को पु. ( Putra.jiva_Roxburghii) अपतानक कहते हैं। मा० नि० वा० व्या० । पुत्र जीव वृक्ष । देखो-पुत्रजीवः । वै० निघ। असाध्यता-गर्भ की उत्पत्ति से एवं रुधिरके बहुत निकलने से उत्पन्न हुआ और अपन apatra-हिं० वि० पत्र रहित. बिना पत्तों का। अभिघात से उत्पन्न हुश्रा "अपतानक" नहीं आरोग्य होता। श्रपत्रवल्लिका apatra-vallika-सं. स्त्री० महिषवल्ली, सोमलता विशेष | लघु सोमवल्ली चिकित्सा-अपतानक रोगसे पीड़ित मनुष्यों -म० । रा०नि०व०३। See--Mahisha. के नेत्रों में से यदि पानी बहता हो, कम्प नहीं valli होता हो और खाटपर न पड़ा हो तो इससे पहले अपना apatra-सं० स्त्री पुष्प वृक्ष विशेष । ही तत्काल चिकित्सा करनी चाहिए। दशमूल महाराष्ट्र में यह "नेवती" नाम से प्रसिद्ध है। डालकर पकाया हुश्रा पानी अपतानक रोगी के व०निघ०। लिए हित है । तेल की मालिश,स्वेद और तीक्ष्ण अपतृष्णा apatrishna-सं० स्त्री० व्यर्थ नस्य द्वारा स्त्रोतोंके शोधन के पश्चात् घी पिलाना लालच । हितकारक है। विशेष देखो-वात व्याधि। अपथम् a pathana-सं० क्ली. अपथ-हिं. अपत्यम् apatyam--सं० क्लो० संज्ञा पु० (१) योनि । ( Vagina) अपत्य apatya--हिं० संडा पु. श० र० । (२) कुमार्ग, बुरारास्ता । (A bad सन्तान,पुत्र वा कन्या । (Offspring,male road) or female ). श्रपथ्यम् apthyam--सं० त्रि० अपत्यकामा upatyakāma--हिं० वि० स्त्री० अपथ्य apathya-हि० वि० पुत्र की इच्छा रखने वाली । जो पथ्य न हो । स्वास्थ्य नाशक । ( Indigeअपत्यजीवः apatya-jivn h--सं० पु. stible, unwholesome )। ( Putranjiva Roxburghii ) ga __ सं० क्ली०, हिं० संज्ञा पुं० (१) व्यवहार जीव वृक्ष । जियापुता गाछ: बं०। रा० नि० जो स्वास्थ्य को हानिकर हो । रोग बढ़ाने वाला व० ६ । देखो--पुत्रजी (ओ) वः। पाहार विहार । अपत्यदा apa tyada-सं० स्त्री० पुत्रदालता, (२) अहितकर वस्तु । रोग बढ़ाने वाला भोजन । लक्ष्मणा । ( sec-putrada )। रा०नि० अपथ्य ज्वरः a.pathya-jvarah-सं० पु. व. ४। कुपथ्य से होने वाला ज्वर । अपथ्य और मद्य For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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