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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६५ अन्धुलः अन्धुल andhulah - सं० पु० अन्धुल andhula - हि० संज्ञा पुं० शिरीष वृक्ष, सिरिस का पेड़ ( Albizzia lebbeck.)। श० ० । अन्धेरा,-रीं andherá, ri - हिं० पु०, स्त्री० अंधियारा | ( Darkness). श्रन्नम् annam-सं० क्ली० अन्न anna - हिं• संज्ञा पु ं० ( १ ) Grain, Corn शस्य, अनाज, नाज, धान्य | दाना, ग़ल्ला । ( २ ) ( Food material ) खाद्य पदार्थ, व्रीहि एवं यत्र आदि खाद्य द्रव्य मात्र | चर्य, चोष्य, लेह्य और पेय भेद से यह चार प्रकार का होता है | किसी किसी ने निष्पेय, निः चर्व्वण, चोप्य और श्रखाद्य इन चार और भेदों को मिलाकर इसको ८ प्रकार का लिखा है। I राजनिघण्टुकार भी चयं श्रादि भेद से अन्न को ८ प्रकारका लिखते हैं । रा० नि० व० २० । ( ३ ) पकाया हुआ ( अन्न) । भक्त । भात | संस्कृत पर्याय - भक्त, अन्धः, भिस्मा (टी), श्र, कसिपुः, जीवातुः (ज), क्रूरं (रा), जीवनकं (हे ), कूरं श्रपूष्टिकं जीवंति, प्रसादनं ( शब्द र० ) । इसको पाँच गुने जल में पकाना चाहिए । अन्न पंच गुण में सिद्ध करणीय है । च० द० ज्वर० चि० । प० प्र० २ ख० । स्विन तण्डुल | पक्कचावल (Boiled rice ) । गथासतुष (भूसीयु ) अनाज को धान्य और तुषरहित पक्क को श्रन्न कहते हैं, खेत में जो है। उसको शस्य और तुषरहित को कच्चा कहा है । वशिष्ठ । जिस प्रकार जलदान ( जल की मात्रा) के अनुसार अन्न के चार भेद होते हैं । उसी प्रकार भक्त, वि. लेपी, यवागू और पेया भेद से भक्त चार प्रकार का होता है। प्रयोग रत्नाकरः । अन्न के गुण अग्निकारक, पथ्य, तर्पण, मूत्रल, और हलका | बिना धोया हुआ और बिना माँड निकाला हुश्रा श्रन्न - शीतल, भारी, वृष्य और कफजनक है । भली प्रकार धोया हुआ श्रन्न -- उष्ण, विशद और गुणकारक है । भूजिया चावल का भात - रुचिकारक, सुगंधि, कफन और हलका है । अत्यन्त गीला Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir অन ग्लानिकारक और तण्डुलान्वित दुर्जर हाता | मद० ० ११ । ६ । अम्लधान्य में पकाया हुश्रा भक्त लघु, श्रग्निप्रदीपक और रुचिकारक । वै० निवः । मथित युक्त भक्त-स्वादु शीतल, रुचिकारक, अग्निदीपक, पाचक एवं पुष्टिकर है तथा ग्रहणी, अर्श और शूल नाशक है । रात्रि में खाया हुआ श्रन्न - रुचिकारक, तृप्तिजनक, दीपन और अर्श का नाश करने वाला है। मुद्द्रयूष युक्त अन्न- कफज्वर, और शर्करा मिला हुत्रा ज्वर में हित है । लाज भक्त - लघु, शीतल, श्रग्निजनक, मधुर वृष्य, निद्राकारक, रुचिजनक और व्रणशो धक 1 यवान ( यत्र ) - भारी, मधुर, वृष्य तथा स्निग्ध है और गुल्म, ज्वर, कण्ठरोग, कास और प्रमेह नाशक है । खेचरान्न ( खिचड़ी) - तर्पण, भारी, ॠष्य और धातुवर्धक है । यौगन्धरान ( यावनालान्न श्रर्थात् ज्वार का भात) - भारी, घन तथा कास और श्वास की प्रवृत्ति करने वाला है । कोद्रवान ( कोदों का भात ) - रुचिकारक, मधुर, मेहनाशक और मूत्र विकार नाशक तथा तृषनाशक है और वमन, कफ, वात एवं दाह नाशक है । श्यामाकान्न ( सावाँ का भात ) - रुचिकर, लघु, रूत्र, दीपन, बल्य एवं वातकारक है और प्रमेह, गलरोग तथा मूत्रकृच्छ नाशक है । नोवारान्न - रुचिप्रद, लघु, दीपन, गुरु तथा वातकारक है । और यकृत, प्लीहा, श्वास एवं व्रणनाशक 1 कुलत्थान ( कुलथी ) – मधुर, रुक्ष, उष्ण, लघु, पाक में कटु तथा दीपन है और कफ, वात, कृमि रोग और श्वासनाशक है । माषान्न ( उड़द ) – दुर्जर (कठिनतापूर्वक पचने वाला ), भारी, मांस वर्द्धक और वृष्य तथा वातनाशक है । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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