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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनीसून अनीसून ३२५ (२) अर्क अनीसून-२० तो. अनीसून को जौकुट करके १ सेर जलमें भिगो दें। चौबीस घंटे पश्चात् यथाविधि अर्क खीचें । मात्रा व सेवन-विधि-२ से ४ तो० तक दिनमें २ या तीन बार सेवन करें । गुण-बालकों के लिए विशेष कर लाभप्रद है। भामाशय, यकृत तथा श्रांत्र के वायुजन्य रोगों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। (३) अनीसून का मिश्रित तैल- अनीसून १ तो०, अकरकरा , तो०, शिगूफा इजू खिर १ तो०, दारचीनी १ तो०, उद सलीब ६ मा० और कुचिला ३ मा०। निर्माण-विधि-सम्पर्ण द्रव्यों को १० तो० तिल तैलमें जला कर साफ़ करने और यथाविधि मालिश करें। गुण-पक्षाघात, शैथिल्य, अवसन्नता एवं श्रावयविक विकार के लिए लाभदायक है। (४) अनीसून का मिश्रित चूर्ण-अनीसून ५ तो०, अजवायन ५ तो०, सोपा २ तो०, । काला नमक २ तो०, और नौसादर ४ मा०।। निर्माण-विधि-सब औषधियों को कूट छानकर चूर्ण बनाएँ। मात्रा व सेवन-विधि-इसमें से ३ मा० चूर्ण दिन में २ बार सेवन करें। गुण-प्रामाशय, यकृत, प्रांत्र और जरायु के वायुजन्य वेदनाओं में लाभप्रद है। मूत्र लाता एवं प्रार्तव की प्रवृत्ति करता है। (५) शर्बत अनीसून (मिश्रित)-अनीसून ३५ मा०, असन्तीन १७॥ मा०, तुम करप्स १०॥ मा०, तज ७ मा०, गुलाब ३५ मा० और बालछड़ २४॥ मा० । निर्माण-विधि-सबको अधकुट करके १ सेर पानी में कथित करें। जब आधा रह जाए, मल छानकर तीनपाव मिश्री मिलाकर शर्बत की चाशनी करें । शीतल होने पर ७ मा० मस्तगी, रूमी बारीक पीस कर ऊपर छिड़क कर सेवन करें। मात्रा-१॥ तो० से २ तो० तक । गुण-आमाशय नैवल्य में लाभप्रद है। प्रामाशय, आध्मान एवं शूल को दूर करता है। प्लीहा एवं यकृत के रोध का उद्घाटक है तथा पेशाब जारी कराता है। ___ एलोपैथिक चिकित्सा में यह निम्न रूपों में ' प्रयुक्त होता है। ऑफिशल योग (Official preparations.) (१) एनिसाई फ्रकटस (Anisi Fructus) -ले०। एनिस फ्रट ( Anise Fruit) -इं० । अनीसून के बीज । (२) एक्का एनिसाई ( Aqua anisi) -ले । एनिस वाटर ( Anise water) -ई० । अर्क अनीसून, अर्क बादियान रूमी । निर्माण-विधि-एनिसयूट ( अनीसून के वीज ) १ पौंड, पानी २ गेलन, अनीसून को कुचल कर और पानी में भिगोकर एक गैलन (८ पाइंट ) अर्क खीचें । मात्रा-श्राधा से २ इड पाउस =(१४.२ से १६.८ सी० सी०) एक बर्ष के बालक को १ से २ ड्राम। (३) ऑलियम् एनिसाई (Oleum anisi)-ले । आइल ऑफ़ एनिस (Oil of anise )-इं०। अनीसून तैल-हिं। जैत अनीसून-अ० । रोग़न अनीसून-फा०। यह एक उड़नशील तैल है जो एनिस फूट (अनीसून) से अथवा स्टार एनिस (अनीसून नज्मी, बादियान खताई ) से प्रस्तुत किया जाता है। (यह दोनों प्रॉफिशल हैं)। लक्षण -यह एक वर्ण रहित वा किञ्चित् पील वर्ण का तैल है जिसका स्वाद एवम् गंध अनी. सून के समान होती है। श्रापेक्षिक गुरुत्व ६७७ से १E३तक | १००० से १५०० शतांशके ताप पर इसके रवे बँध जाते रासायनिक संगठन -इसमें (1) ७५ प्रतिशत एमीथोल ( अनीसून सत्व ), (२) एनिसिक एल्डिहाइड और ( ३ ) मीथिल केविकोल होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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