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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनार . ३०४ अनार दाडिम मूल त्वक् . अनार को जड़ की छाल, अनार को छाल -हिं० । ग्रेनेटाई कॉर्टेक्स ( Granati Cortex)-ले. । पॉमेग्रेनेट पार्क (Pomegranate bark) । शुरुम्मान अ. पोस्त अनार-का०। नोट-इसकी तिब्बी, वैचक संज्ञाओं से यहाँ दाडिम फलत्यक् (जिसे हिन्दी में नस. पाली कहते हैं ) नहीं समझना चाहिए; प्रत्युत यह दादिम वृत के कांड तथा दादिम की जद की छाले हैं। यानस्पतिक वर्णन-इसके छोटे छोटे धनुपाकार अर्थात् मुड़े हुए या नलीदार टुकड़े होते हैं जिनको लम्बाई २ से ४ इंच तक सौर चौड़ाई /- प्राध इंच से १ इंच तक होती है। छाल का बाहरी पठ खुरदरा धूसराभ पीतवर्ण का और भीतरी पृष्ठ सचिक्कण पीतवर्ण का होता है । यह सरलतापूर्वक टूट जाता है। यह गंधरहित तथा स्वाद में कषाय किंचित तिक होता है। रासायनिक संगठन-इसमें पैलीटिएरीन या प्युनीसीन (अनारीन ) नाम का एक द्रव क्षारीय सत्व होता है। देखो-अनारवृक्ष वणेनान्तरगत रासायनिक संगठन । संयोग-विरुद्ध-ऐलकेलोज़ (क्षारीय औषधे ), मेटैलिक साल्टस ( धातुज लवणे), लाइम वाटर ( चूने का पानी, चूर्णोदक ) और जेलेटीन ( सरेश)। प्रभाव-संकोचक तथा प्राकृमिहर । औषध-निर्माण-(१) दाडिम त्वक् क्वाथ, अनार की छाल का काढ़ा-हि: । हिकॉक्टम् ग्रेनेटाई कॉर्टेक्स (Decoctum Gra nati Cortex)-ले०। डिकांक्शन श्रॉफ पामेग्रेनेट बार्क (Decoction of Pomepremate Bark)-इं० । मत बूख क्रश स्मान-अ०। जोशाँदहे पोस्त अनार-फा०। निर्माण-विधि-पामीग्रेनेट बार्क (अनार की छाल )का १० नं. का चूण ४ाउंस, परिश्रत वारि के साथ १० मिनट तक क्यथित कर छान ले और इसमें इतना और परिश्रुत जल मिलाएँ कि प्रस्तुत क्वाथ पूरा एक पाउंट हो जाए। मात्रा- श्राधा से २ फ्लुइड ग्राउंस(१४२ से ५६८ क्युबिक सेंटीमीटर )। (२) चूर्ण किया हुअा मूलत्वक् २ से ३ दाम कृमिघ्न रूप से। (३) इसी का क्वाथ ( २० में १ )। मात्रा--३ से ६ फ्लु० पाउंस । (४) मूल त्वक् का तरल सस्व, मात्रा--- चोथाई से २ फ्लु० डाम । प्रभाव तथा उपयोग ' आयुर्वेदीय मत से-(चरक रक्रार्श में दाडिम त्वक् ) अनार वृक्ष की छाल के काढ़ा में सोंठ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से अर्श रोगी का ' रकस्राव विनष्ट होता है। (चि०६०)। चक्रदन-(१) सरक्त अतिसार में दाडिम त्वक्-कुटज और अनार वृक्ष की छाल इन दोनों का क्वाथ प्रस्तुत कर मधु के साथ सेवन करने से दुर्निवार्य रक्रातिसार में भी शीघ्र विजय प्राप्त होता है। ( अतिसार चि०)। (२) उपदंश में दादिम वृक्ष त्वक् (अनार वृक्ष की छाल) के चूर्ण द्वारा उपदंश के क्षत को अव. चूर्णन करने से व्रणरोपण होता है । ( उपदंशचि०)। भावप्रकाश-इसकी जड़ कृमिहर है। यूनानी एवं नव्यमत - अनार वृक्षकी छाल विशेषतः उसकी जड़ की छाल कद्दाना ( Tapeworm) के लिए अत्युत्तम कृमिघ्न श्रौषध है। इसको अधिक मात्रा में देने से वमन एवं रेचन पाने लगते हैं। इसके उपयोग की सर्वोत्तम विधि निम्न है__ इसकी जड़ की छाल ५ तो०, जल २ सेर । इसका क्वाथ करें, जब एक सेर पानी शेष रहे उतार कर छान लें। इसमें से ५ तो० प्रातः काल खाली पेट सेवन करें (बालक को १ से २ फ़्लु० डा० ) ऐसी ऐसी ४ मात्राएँ प्रतिश्राध श्राध घण्टा पश्चात् देनेके बाद एक मात्रा एरंड तेल का देकर प्रांतों को साफ कर दें। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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