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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनार www.kobatirth.org नहीं गिरने देता और पैतिक वमन, अतिसार तथा दोनों प्रकार की खुजली को लाभप्रद है । ३०२ अनार फल स्त्र अनार दामि व दाड़िमफल वल्कल, के फल का खिलका, नि ( ना ) सपाल | पोस्त श्रनार - फु | क्ररुरु म्मान - श्र० । पॉमेग्रेनेट पील Pomegranate peel, पा० रिंड Pomegranate rind-इं० । वर्णन - अनार के फलकी छाल के विपम, न्यूनाचिक नतोदर टुकड़े होते हैं जिनमें कतिपय दंष्ट्राकार नलिकामय पुष्पवाह्य कोष लगे होते हैं जिसके भीतर अब तक परागकेशर तथा गर्भकेशर प्रावृध १ १ होते हैं । यह से ई० मोटा सरलतापूर्वक टूट २० जाने वाला ( टूटते समय जिससे कॉर्कवत् धीमा शब्द हो ) होता है। इसका बाह्य पृष्ठ अधिक खरदरा एवं पीत धूसर वा किंचित् रक्रवर्णं का होता है। भीतर से यह न्यूनाधिक धूसर वा पीत वर्ण का, मधुमक्षिका गृहवत् और वीजखातयुक्र होता है। इसमें कोई गंध नहीं होती; अपितु यह तीव्र कषाय स्वादयुक्त होता है । लक्षण - क्राभायुक्त पीतवर्ण । स्वाद विका प्रकृति - मीठे की सर्द तर और खट्टे की प्रथम कक्षा में शीतल तथा रुक्ष । हानिकर्ता शीत प्रकृति को । दर्पन - श्रार्द्रक । प्रतिनिधि- जरेवर्द ( गुलाब का केशर ) । शर्बत की मात्रा -१ से २ तोला । प्रधान गुण- अर्श के लिए उपयोगी है गुण, कर्म, प्रयोग - (१) गरमी की सूजन को लाभ करता और मसूदों को शक्ति प्रदान करता है । ( २ ) अनार के सूखे छिलकों को पीसकर छिड़कने से काँचका निकलना बन्द हो जाता है । ( ३ ) अनार के फल को पीसकर गोला बना पुटपाक की विधि से पकाकर रस निचोड़ कर मधु मिला पीने से सब तरह के दस्त बन्द होते हैं । ( ४ ) अनार के फल का छिलका पुराने अतिसार तथा श्रामातीसारको मिटाता है । ( ५ ) पाँच तोले अनार के छिलके को सवार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनार दूध में श्रौटा १५ छटाँक र छान दिन भर में ३-४ बार पिलाने से श्रामातिसार मिटता है । (६) खट्टे अनार के २ तोले छिलके और दो तोले शहतूत को थौटा छान के पिलाने से पेट के कीड़े मरते हैं । ( ७ ) इसके छिलके की योनि में धूनी देने से मरा हुआ बच्चा बाहर निकल आता है । (८) इसके छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीस कर लेप करने से सूजन बिखरती है । ( ३ ) अनार के छिलके और लौंगका काढ़ा पिलानेसे पुराना ग्रामातिसार मिटता है। इस काम के लिए अनार के छिलके और इसकी जड़ की ताजी छाल लेनी चाहिए । नव्यमत पक अनार का रस प्रिय तथा उवर जन्य उत्ताप एवं तृष्णा आदि को शमन करने वाला है। ज्वर रोगी के सिवा यह हर एक रोगी और नीरोगी को लाभदायक है। मस्तिष्क, हृदय और यकृत को अत्यन्त यखवान बनाता एवं शुद्ध रुधिर उत्पन्न करता है। अनार के दाने निकाल कर मज़बूत और भरभरे कपड़े में से निचोड़ कर केवल उसका रस पिलाएँ । अत्यन्त मद्यपान जन्य यकृदोष में तीन तीन घंटे बाद अनार का रस निकाल कर पिलाते रहें । कामला रोगी को प्रातः सायं ६-७ तोला अनार का रस और ६ माशे ज़रिश्क मिलाकर सेवन कराएँ । वमन एवं उफ्रेश विकार में खट्टे अनार का रस गुणदायक है । विसूचिका रोगी के लिए खट्टे अनार का रस एक उत्तम औषध है। रस न प्राप्त होने पर ब या शर्बत का सेवन कराना चाहिए । छोटे बच्चों को प्रति दिन प्रातः सायं एक-दो तोले एक समय अनार का पानी पिलाते रहें । ४० दिन तक ऐसा करने से जिस्म की रंगत सुर्ख निकल आती है । अनार दाने का ताजा रस उदर शूल प्रशामक है । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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