SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनारी २१. अनार anate.)-लेका पाँमेग्रेनेट Pomegranate.. -ई। अनार-द०। ग्रेनेडियर कल्टिव Gre- | nadier Cultive.-फ्रांक | ग्रेनेट बॉम Granat baum.-जर० । अनार, डलिम्, दाडिम, दाड़मी, दाड़म-बं० । रुम्मान्, राना - । अनार, नार-फा० | रुम्माना-सिरि० । कूतीनूस-यु० । दालिम्ब-तु० । मादलैप-पज़म्, माडले-ता। दानिम्म पण्डु, दाडिम-पण्डु, दालिम्ब-पगड-ते। मातलम--पजम-मल। दालिम्बे-कायि-कना० । दालिम्ब, डालिम्ब -मह । डारम, दाम-गु० । देलुङ् या देख्नुस् -सिं । सले-सि या तली-सी-बर० । दालिम्, दामिमा-उड़ि। दाखिम्-मासा । अनार, दादिम-उ०प० सू०। पं० तथा परतु-देखोमनार वृक्ष । अनार, धालिम, धारिम्ब, डाढ- | सिंध। धौम-काश० । वालिम्ब-को। दाडम -मारवादी । मादल-द्राविडी । दालम्बि-कर्मा। उत्पत्तिस्थान-अनार । वानस्पतिक वर्णन-अनार का फल गोलाकार किचित् चपटा, अस्पष्टतः षटपार्श्व, सामान्य । मागरंग के आकार का प्रायः वृहत्तर होता है | जिसके सिरे पर स्थल, नलिकाकार, ५-६ दंष्ट्राकार सपलयुक पुष्प वाह्य कोष लगा होता है। फल त्वक् सचिकण, कठोर एवं चर्मवत् होता है जो फल के परिपक्व होने पर धूसर पीतवर्ण का प्रायः सूक्ष्म रकरञ्जित होता है । फल की लम्बाई की रुख छः झिल्लीदार परदे होते हैं जो अक्षपर मिलते और फल के ऊर्ध्व एव यहत्तर भाग को बराबर कोषों में विभाजित करते हैं। उनके नीचे भग्यवस्थित गावदुमो चौड़ाई की एव पड़ा हुआ एक परदा होताहै जो नीचे के लघुर र प्राधे भागको उससे (ऊर्ध्व भाग से ) भिन्न करता है। यह ४ या ५ असमान कोषों में विभक्त होता है। प्रत्येक कोष स्थूल, स्पावत् अमरा से संलग्न बहुसंख्यक दानों से पूर्ण होता है जो ऊवं कोषों में पाय, किन्तु अधः कोषों में केन्द्रीय प्रतीत होते हैं। दाने लगभग प्राध इंच लम्बे प्रायताकार मा गावदुमी, बहुपार्श्व तथा एक पतले पारदर्शक | कोष से श्रावृत्त और अम्ल, मधुर तथा स्वाद्वम्ल रक्र रसमय गूदे से प्रावरित लम्बे कोणाकार बीजयुक्त होते हैं। मोट--(१) धन्वन्तरीय निघण्टुकार और सुश्रुताचार्य ने रस के विचार से इसे दो प्रकार का लिखा है अर्थात् (१) मधुर और (२) अम्ल | "द्विविधं तच्च विज्ञेयं मधुरम्चाम्लमेव च ।" (ध नि०, सु० ४६ अ०) ‘परन्तु, यूनानी निघण्टुकार तथा भावमिश्र इसे तीन प्रकार का लिखते हैं, यथा-"तत्फलं त्रिविधं स्वादु स्वाद्वम्ल केवलाम्लकम् ।" अर्थात् (क) स्वादु, मधुर-हिं० । अनार शीरी-फा०। रूम्मान हुलुम्व (हलो)-अ.। स्वीट sweet -९०। (ख) अम्त, खट्टा-हिं० । अनार तुर्श-फा०। सम्मान हामिज -०। सावर sour-इं.। (ग) स्वाद्वान्ल, मधुराम्ल, खटमीठा-हिं०। अनार मैनोश-फा० । हम्मान मुज-अ०। (२) खट्टे अनार के वृक्ष में खट्टे ही अनार लगते हैं और मी में मोहे लगते हैं। अषाद से .... भादों तक फल पकते हैं, परन्तु देश के हर भाग में ऋतु के अनुसार अलग अलग मौसम में फल पकते हैं। खट्टा अनार गुण में मीठे से बलवानतर होता है । यद्यपि इसकी प्रत्येक चीज़ अपने गुण में दूसरी चीज़ के बराबर होती है, तो भी कुछ कमी-बेशी ज़रूर है, जैसे, गूदा में पत्तों की अपेक्षा अधिक प्रभाव है और इससे अधिकतर पभाव निसपाल में है । फूल में कली से कम असर होता है। इसकी जड़ की छाल में सबसे अधिक प्रभाव है। __ इसके अतिरिक्त अनार के दो और भेद हैं. यथा (१) गुलनार का पेड़ (नर अनार )। Punica Granatum, Linn. ( Male variety of.)। इसका पुष्प जिसको गुलनार कहते हैं, औषध के काम आता है। देखो-गुलनार । इसमें फल नहीं लगते ।। (२) अनार जंगली-यह अनारका जंगली भेद है। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy