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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रधिमुक्तकः श्रमिष्यन्द रोग का एक अंश कफज और रक्तज भेद से चार www.kobatirth.org २७८ यह बातज, पित्तज प्रकार का होता । इन सम्पूर्ण रोगों में तीव्र वेदना होती है । यही इनका मुख्य लक्षण हैं । श्रभिष्यन्द ( चोक उठना, नेत्रशूल ) रोग की उपेक्षा करने से फलतः श्रधिमन्थ नामक रोग उत्पन्न होता है । लक्षण - अभिष्यन्द रोगों के बढ़ने पर उपाय श्रीर पथ्य नहीं करने वाले मनुष्यों के नेत्र में पीड़ा करने वाले उतने ही प्रकार के अधिमन्थ रोग उत्पन्न हो जाते हैं । जिस रोग में ऐसी • पीड़ा होती हुई प्रतीत हो मानो नेत्र ग्रत्यन्त उखाड़े या बींधे जाते हों और यात्रा शिर मथा सा जाता हो तो उसे अधिमन्थ जानना चाहिए। श्रधिमन्थ वातादि दोषों के लक्षण से युक्त चार ही प्रकारका होता है । श्लैष्मिक श्रधिमन्थ सप्त रात्रि में तथा रकज, वातज क्रमशः ५ व ६ रात्रियों में और मिथ्या आचार से पैत्तिक तत्काल दृष्टि का नाश कर देता है । चिकित्सा - सभी प्रकार के अधिन्थ रोग में सर्वधा ललाटस्थ शिराका वेधन करें अर्थात् सद करें । इसकी शांति की दशा में भौंहों को प्रदाहित करे। सु० उ० ६ श्र० । अधिमुक्तक: adhi-muktakah-सं० पु ं० माधवी लता । वै० निघः । See-madhavílatá. श्रधिमुक्तिका adhi-muktiká-सं० स्त्री० सीपी, मोती की सीपी - हिं० मुक्रागृहम्, शुक्ति -सं० | Oyster shell ( Ostrea Edulis ) बैं० निघ० । अधिमासक: adhimánsakah सं० पु० ( Inflammation of the tonsils ) कफ जन्य दन्तवेष्टज रोग विशेष । एक रोग जिसमें कफ के विकार से नीचे की दाद में विशेष पीड़ा और सूजन होकर मुँह से लार गिरती है । लक्षण - यदि हनु ( डाढ़ ) की पिछली तरफ के दन्त ( मूल ) में घोर पीड़ायुक्क भारी सूजन हो और मुँह से लालास्राव हो तो उसे “अधिमां अधिश्रयणी सक" कहते हैं । यह कफ के प्रकोप से होता | भा० म० ख० ४ भा० मु० रो० चि० । मा०नि० । सु० नि० १६ श्र० । अधिमासम् adhi-mansam - सं० की ० पु० नेत्र रोग विशेष । मा० ने० से० । देखो - नेत्र (वि) मांसामं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धमांसा adhi-mánsármma-सं०पु० (Fleshy excrescence on the eye, cancer of the eye ) । दृष्टि शुक्रगत रोग विशेष। यह "मांसवृद्धि " नाम से प्रसिद्ध है । इसके लक्षण - नेत्र के श्वेत भाग जो फैला हुआ यकृत सदृश अर्थात् ईपन् नीललोहित वर्ण का मोटा मांस दिखाई देता है उसे "धमांसा" कहते हैं । मा० नि० । अधिरूढ़ा adhi-rúrha - सं० स्त्री० प्रौढ़ा, दृष्टा र्त्तवा, ३० वर्ष से ( ऊपर ) १५ वर्ष पर्यन्त की अवस्था वाली स्त्री | See - Proudha. अधिराहण adhirohana - हिं० संत्रा पु० [ सं० ] चढ़ना । सवार होना | ऊपर उठना । श्रधिरोहिणी adhi-rohini-सं० ( हिं० संज्ञा ) स्त्री० ( Stair case, a ladder) सीढ़ी । निसेनी | जीना । बाँस का बनाया हुग्रा चढ़नेका मार्ग। इसके पर्याय - निःश्रेणी । श्र० टी० । fa:fa: (). अधिवास adhivasa - हिं० संज्ञा पु० [सं० ] [वि० अधिवासित ] ( १ ) निवास स्थल । रहने की जगह । ( २ ) महासुगन्ध । खुशबू | ( ३ ) उबटन | अधिवासन adhivasana - हिं० संज्ञा पुं० ( १ ) सुगंधित करना । ( २ ) रहना | अधिवृक्क adhivrikka - हिं० पु० ( Supra renals ) उपवृक । अधिवेत्ता adhivetta - हिं० संज्ञा पुं० [सं० ] पहिली स्त्री के रहते दूसरा विवाह करना । अधिवेदन adhivedana - हिं० संज्ञा पु ं० : [सं०] एक स्त्री के रहते दूसरा विवाह करना । अधिश्रयणी adhishrayaní-सं० स्त्री० चुलि | - हिं० संज्ञा स्त्री० [सं०] सीढ़ी | निसेनी । निःश्रेणी | ज़ीना ! For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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