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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतहिनरश्मि श्रत्त -ले० । बेबग; बाइ बङ्ग-4०, काश०, हिं० । रितोप, तृप्त न होना । संतोष, मन न भरने गुवाइनी--स० ० । पहाड़ी चा, चूपा-उ० की अवस्था | वै. श०। प. स.। । अतेइच ateich-० अनोस ( Aconitum बिडङ्ग वर्ग Heterophyllum) ई० मे० मे० । (N. 0. Dyrsinaceae ) उत्पत्ति स्थान-यह एक छोठा तुप है । अतेज ateja-हि० वि० [सं०] (1) तेजरहित हिमालय, काश्मीर और साल्लरेन (लवण श्रेणी) से अंधकार युक, मंद, धुंधला । नेपाल तक। श्रतेजाः atejāh--सं० स्त्री० ( Shade, प्रभाव तथा उपयोग-इसका फल सराक Shadow ) छाया । रा०नि० २०२१। रेचक तथा विशेष कर कद्दाना निःसारक अतीय उदर atoya-udara-हि. संज्ञा पुं. माना जाता है । यह बेबङ्ग नाम से बिकता है “सर्वस्वतोयमरुण मशीफकम् नाति भारिकम् ।" और (Samara Ribes ) की प्रतिनिधि वा०नि० अ०१२ श्लो०११ । स्वरूप उपयोग में प्राता है । स्टयुबर्ट : लक्षण जलोदर को छोड़कर सब प्रकार के ___ इस क्षुप से एक प्रकार का निर्यास प्राप्त होता | उदर रोगों में उदर का वर्ण लाल, सूजन रहित है जो कप्टरज की एक उत्तम औषध है ( वैन- और गुरुता रहित होता है । नसों के जाल के फोर)। जलोदर एवं उदरशूल में यह को:-- समूह से झरोग्वे की तरह हो जाता है और मकारी प्रभाव करता है । ई० मे० मे०। सदा गुड़गुड़ गुड़गुड़ करता रहता है। वाय इसका लगातार प्रयोग मूत्र को अत्यन्त नाभि और अंत्र में विष्टब्धता उत्पन्न करके हृदय रजित करता है। ई० मे. प्लां। कटि, नाभि, गुदा और वंक्षण में वेदना करता अतुहिनरश्मि atuhina-lashmi-हिं० संज्ञा हुश्रा अपने रूप को दिखाकर नष्ट हो जाता है पुं० [सं०] the Sun सूर्य । तथा शब्द करता हुश्रा बाहर निकलता है। अतaatita-अ० तब्तू य ( एक पक्षी है)। इससे मल बद्धता और मुत्र की अल्पता हो __(A sort of bird.) लु० क० । जाती है। इसमें जठराग्नि अत्यन्त मन्द नहीं अतून atuna-घात । होती है, भोजन में इच्छा नहीं होती और मुख में अ.तृस aatasa विरसता उत्पन्न हो जाती है। उत्तास, मुअत्तिस् uttasa,-im laattis | अइमह, ataimah--अ०- (२०व०) तमाम -अ० सुत्कारक औषध, वह औषध जो छींक (ए०व०), आहार, भोजन, खाना । डाइट्स लाए । इसका (40 व.) अतसात है । इहा Diets.ई. । म० ज० । इन Irrbine-0। म० ज०।। असा atus a-हि. भोजपत्र । ( Betula | अत्कः atkab-सं० पु. अङ्ग, अवयव ( An Bhojapatra)ई.हैं. गा। __ organ) उणा० । अतृष्ण atrishna-हिं० वि० [सं०] तृष्णारहित। अन्कुमः atkumah-अ० अरामार्ग । (Achनिःस्पृह । कामना हीन, निलोभ । ___yranthes aspara, Linn.) अतृप्त atripta -हि. वि० [सं०] [ संज्ञा | अत्डी atdi-० पित्तल, पीतल ( Brass )। अतप्ति (1) जो तृप्त वा संतुष्ट न हो, जिसका अत्तः attah-मल. जलोका, जोंक, जलायुका । ___ मन न भरा हो। (२) भूखा । (Hirudo m3dicinalis). इं. मे०मे० । अतृप्तिः atriptih-सं० स्ना० । तृप्ति शू-प्रत atta-मल०, सिं० सीताफल, पात, शरोका ! अतृप्ति atripti-हिं० संज्ञा स्त्रो० न्यत्व, अप- Custard apple ( Anona squ. For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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