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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतास २६० अतुल्जन यूनानीमतानुसार मात्रा में उपयोग करना चाहिए जो स्वयं मेरे प्रकृति-२ कक्षामें उष्ण और १ कक्षामें रूक्ष । अनुभव के अनुसार १ से २ डाम तक है : स्वाद-किञ्चित् बिका | हानिकारक-श्रामा- २॥ ड्राम तक यह सर्वथा निरापद सिद्ध होता शय के लिए । काबिज़ है । दर्पघ्न-सर्द व तर है । लघुतर मात्रा (२० से ४० ग्रेन) में यह वस्तुएँ । मात्रा शर्बत-प्राधा से १ माशा उत्तम वल्य है । परन्तु, इससे इसका परियायतक । मुख्य प्रभाव- श्लेप्मध्न और वायु. निवारक प्रभाव अत्यन्त न्यून होता है । ( मेटिलयकर्ता। रिया मेडिका अाफ़ मैडरास न खंड पृ० ४) गुण, कर्म, प्रयोग-अतीस कामोद्दीपक, आर. एन. चोपरा एम० ए० एम० ड' क्षुधावर्द्धक, ज्वर प्रतिरोधक, कफ तथा पित्तजन्य __पहाड़ो लोग इसको प्रभावशून्य रूपसे भली विकारों को नाश करनेवाला, अर्श, जलोदर प्रकार जानो हैं एवं इसे शाक रूप से खाने के तथा कफ वा पित्तजन्य वमन एवं अतीसार को काम में लाते हैं । देशी औषध में यह मा एवं दूर करता है। वायुको लय करता और श्लैहिमक तिक बल्य रूप से व्यवहृत है। इस देश में रोगों को लाभप्रद है । म० अ०। (निर्विषैल ) इसको परियायनिवारक, कामोद्दीपक, कपाय नव्यमत-अतीस, तिक, पाचक, वृष्य, बल- ___एवं बल्य रूप से व्यवहार में लाते हैं । कारक एवं ज्वरप्रनिषेवक है और घर तथा उग्र ( इंडिजिनस डग्स ऑफ इण्डिया ) प्रादाहिक-विकारादि-जन्य रोगावसान की द में कावकारााद-जन्य रागावसान का दाम अनीसार: atisarah-सं० ० संज्ञा दौर्बल्य दूर करने के लिए इसका व्यवहार होता पु०) देखो-अतिसार ( Diarrhoea ). है। कास, अजीर्ण और अग्निमांद्य में अतीस का | अतुकार्णी atukarni-सं० स्त्री. जमालगोटा उपयोग किया जाता है। इन सब रोगों के उप- | ( Croton polyandrum, Rorb. ). सर्ग रूपसे हुए अतिसार में इसे सुगन्ध, तिक एवं देखो-दन्ती। कषाय द्रव्यों यथा गुरुच, करंज और कुटज प्रादि के साथ एवं ज्वर प्रतिषेधक रूपसे मलेरिया ज्वरों | अतुतिन्लप atutinlap-मल. गृध्रणी, धूम्रपत्र, (विषम ज्वरों) में इसका योग किया गया पत्रबङ्ग-सं० । गुघाटी, किरमरा-हिं०, गु०, और इससे कुछ सफलता भी हुई; परन्तु क्वीनीन द०, बं० | Aristolochia Bractea ta की अपेक्षा यह अत्यन्त निम्नणीका सिद्ध हुना ले० । Birth-wort, worm-killer विडंग के साथ इसको सेवन करने से प्रांत्रस्थ -ई० । ई० मे० मे०। कृमियाँ निर्गत होती हैं। ( मेटीरिया मेडीका | अतुनेटी atuneti ता० सोल-बं० । Aschश्रॉफ इंडिया-२ य० खंड ३ पृ०) ___ynomene Aspara). पौकान,-पौक ब्यु मोहीदीन शरीफ़ -बर। प्रभाव-ज्वर प्रतिषेधक ( परियाय ज्वर | अतुलः atulah-सं० पु. ) (१ ) कफ नाशक ), ज्वरघ्न और बल्य । उपयोग--सवि अतुल atula हि संज्ञा पुं० । श्लेष्म। राम ज्वर तथा सामान्य स्वल्पविराम वा निरंतर (phlegm)। (२)तिल का वृक्ष; तिलीका पेड़ ज्वर, कई तरह के अजीण एवं नैर्बल्य में लाभ- ! -हिं० । तिलः (कः)न-सं० । ( Sesamum दायक है। ___orientale ) श.च. श्वेत अथवा साधारण प्रकारका प्रतीस अत्यंत प्रतजम atul jan-प० बेबल, कखुम, कोखूरी, लाभप्रद परियायनिवारक (Antiperiodic) गुगुल, बन्दारू-पं० । मर्सिनी अफ्ररिकेना एवं ज्वरघ्न है; किन्तु इसके सर्वोत्तम एवं ( Myrsine Africana, Linn.), निश्चित प्रभाव के लिए इसको पूर्ण औषधीय म० बाइफेरिया (M. Bifaria, Full) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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