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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिसार अतिसार २५२ प्रयोज्यं नतु संग्राहि पूर्वमामातिसारिणि । __ वा० चि० ६अ। क्योंकि पहली दशा में धारक औषध द्वारा मलनिरोध करने पर पेट फूलना, ग्रहणो, बवासीर और शोथ प्रति उत्पन्न हो सकते हैं। परंतु दस्त होजानेपर भी यदि दोषोंकी प्रबलता रहे वा रोगी शिशु, वृद्ध अथवा दुर्बल हो तो पहिले ही से धारक औषध का प्रयोग करना चाहिए । ___ यदि रोगी शूल श्रानाह और प्रसेक से पीड़ित हो तो उसे वमन कराना हित है। और यदि दोष अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होगए हों तथा विदग्ध अर्थात् पक्कापक श्राहारने मिलकर अतिसार उत्पन्न करते हों तो उन सब उत्श जनक अर्थात् अतिसार को उत्पन्न करने में समुद्यत और बिना यत्न ही चलने में प्रवृत्त हुए दोषों में पाचनादि किसी प्रोपध का प्रयोग न करके केवल पथ्य अर्थात हितकारी प्राहार का ही सेवन कराना उपयोगी पर यदि मलावरोध के कारण छोड़ा थोड़ा मल निकलने से उदर में अफरा, भारीपन, शूल तथा स्तिमिता उत्पन्न हो अथवा उदर में कोई क्षोभक द्रव्य या अजीर्ण या सड़ा गला श्राहार हो तो सर्व प्रथम किसी सामान्य मदभेदक औषध को देकर पेट को साफ़ करना चाहिए। फिर दस्तों को रोकने के लिए धारक औषध का व्यवहार करना उचित है। पकातिसार श्राम के पके हुए होने को दशा में प्रथम बार बार मृदु धारक और बाद को बलवान धारक श्रौषध व्यवहार करनी त्ताहिए। अत्यन्त निर्बलता की हालत में उत्तेजक औषध यथा सुरा (ब्रांडी) जल में मिलाकर देना लाभदायक होता है। अब स्वानुभूत बहुशः योगों में से यहाँ कतिपय ऐसे योगों का उल्लेख किया जाता है जो अतिसार की प्रत्येक अवस्था की चिकित्सा में अत्युपयोगी सिद्ध हो चुके हैं और सहस्रों बार परीक्षा की कसौटी पर आ चुके हैं। मात्रा रोगी, रोग तथा अवस्था आदि के अनुसार न्यूनाधिक हो सकती है। इनको कोः शुद्धि पश्चात् ही देना चाहिए, योग निम्न हैं : (१) अवयय-सफेद राल, अतीस, मोचरस, दालचीनी, छोटी इलायची के बीज, कपूर, अजवायन और सफेद जीरा | निर्माण-विधिइन सबको समभाग लेकर चर्ण करें फिर खट्टे अनार के रस में भली भाँति १२ घंटे तक खरल करके चना प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। श्रनुपान-जल, पकं सौंफ और अर्क पुदीना। (२ ) अवयव-वटांकुर, अहिफेन शुद्ध, हींग घी में भुनी हुई, जीरा भुना, शंख भस्म, सुहागा भस्म और पोदीना । निर्माण-विधिइन सबका चूर्ण समान भाग लेकर कड़ा की छाल के रस की सात भावना देकर एक रत्ती प्रमाण की गोलियाँ प्रस्तुत करें। सेवन-विधि-खष्टे अनार के रस के साथ श्रावश्यकतानुसार १ या २ वटिका दिन में २-३ बार दें। (३) अवयव-भङ्ग, छोटी इलायची, सफेद जीरा, जायफल, कपर, अनारदाना तुशं और कौड़ी की भस्म । निर्माण-विधि-इनको समान भाग लेकर बारीक चूर्ण कर रखें। सेवन-विधि व मात्रा-३ रत्ती से १ माशा तक उक चूर्ण को अर्क पुदीना के साथ सेवन कराएँ। (४) मेथी भुनी, जीरा भुना, रूमी मस्तगी, कपूर, इन्द्रयव, जामुनकी गुटली और ग्राम की गाली । इन सबको समभाग लेकर बारीक चण करें श्रीर जितना यह चूर्ण हो उतनी ही मात्रा में शद्ध भाँग का चूण मिलाकर कागदार बोतल में सुरक्षित रखें। मात्रा-बच्चों को ग्राधी रत्ती से १ रत्ती। पूर्ण बयस्क मात्रा-२ रत्ती से १ माराा तक । श्रनुपान-अकं पुदीना और अर्क सौंफ । शूलयुक्त अतिसार मेंसत अजवायन, सत पोदीना, जौहर नौसादर, For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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