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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिविषादिचूर्ण २४५ अतिसान्द्रः संग्रहणी, ज्वर, अरुचि और मन्दाग्नि का नाश श्रम की अधिकता । अधिक व्यायाम पथ्य नहीं होता है तथा यह धातुवर्द्धक है । वृ. नि. र०। है। इससे कास, अर, छर्दि, क्रान्ति ( थकान ), प्रतिविषादिचूर्णम् ti-visha li-churnam-सं. प्यास, क्षय, प्रतमक श्वास तथा रक्रपित्त प्रभृति क्लो० प्रतीस,त्रिकुटा, सैंधव, यवक्षार और हींगका रोग हो जाते हैं। भा० पू० १ मा० । वा. क्वाथ या चूर्ण गरम पानी के साथ लेने से प्राम- स० अ० १। युक्र संग्रहणी नष्ट होती है। अथवा पीपल, अतिशकुलो atishashkuli-सं० स्त्री. सोंड, पाडा, शारिवों, दोनों कटेली, चित्रक, इन्द्र- तिलकृत रोटिका । यव, पॉचो नमक और यवक्षार का चूर्ण बनाकर गुण-यह रू है और श्लेष्म, पित्त तथा रक दही, गरम पानी और सुरा प्राति के साथ सेवन की नाराकरने वाली भारी, विष्टम्भ( मलावरोध ) करने से अग्नि प्रदीप्त होती और कोगत करने वाली और चलु के लिए हितकाही नहीं है। वायु मिट जाती है । च० सं० चि० अ० १५। भा० पू० कृतान्नव०। अतिवीज: ativijah-सं० पु. बवू र (बबूल) अतिशारिवा atishariva-सं० स्त्री० अनन्तवृक्ष । ( Acacia Arabica, Wild.) मूल-हिं०, बं० । अनन्ता-सं० । (H:milवै० निघ । esmus indicus, R. Br)। र० मा० । अतिवृष्टिati-vrishti-हि. संज्ञा स्त्री० [सं०] देखा-शारिवा। पानी का बहुत बरसना जिससे खेती को हानि प्रतिशोत ati-shita-सं० (हिं०)श्री. अधिक पहुँचे। अत्यन्त वर्षा । डा, अत्यन्त जाड़ा। अतिवृहत्फलः ati-vrihat-phalah-सं० पु. अतिशुपर्णा atishuparni-सं० स्त्री. वन पनस । कटहल (Artocarpus integrifo. मूंग, मुद्गपर्णी । (Phaseolus triloblia, Lin) भा० पू० १ भा० ।। us, Ait.) अतिबृंहगा a ti-vrinhana-सं० त्रि. अत्यंत दूध, अतिशूकः ati-shikah सं० पु. यव-सं० । घी तथा सांसादि भतण द्वारा प्राप्त स्थूलता। जौ-हिं० । ( Barley)। प० मु०। अतिवृहित ati-vrithita-हिं० वि० [सं०] अतिशकजः ati-shuka jah-सं० पु. गेहूँ दृढ़ । पुष्ट । मज़बूत । न । गोधूम-सं०। (Wheat. ). अतियथा ativyathā-सं० . अतिवेदना, अतिशृतक्षारम् a ti-shrita.kshiram-सं० प्रतिपीड़ा, अतिशयित यन्त्रणा | की० अत्यन्त प्रौटाया हुश्रा दृध । यह अतिव्याप्ति ati-vyāpti-हिं. स्त्री० [सं०] | बहुत भारी होता है वा० सू०५ अ० । न्याय में एक लक्षण दोष। किसी लक्षण वा अतिशीषः ati-shoshah-सं. प. क्षयरोग कथन के अन्तर्गत लक्ष्य के अतिरिक्र अन्य (Pthisis.)। देखो-क्षयः। वस्तु के अाजाने का दोष । जहाँ लक्षण वा लिंग अतिसय्या ati-sayyā-सं० स्त्रो० अप्टिमधु लक्ष्य वालिंगी के सिवाय अन्य पदार्थों पर ___ लता, मुलेठो की वल्ली (Glycyrrhiza भी घट सके वहाँ अतिव्याप्ति दोष होता है। ___gla bra) वै० श०। अतिश्यात्ताननम् ati-vyattānanam-सं० अतिसर्जनमati-sarijanam-सं० ली. वेध, क्ली. मुंह फाड़ कर, मुँह खोलकर | सु० शा० । वेधना, छेदन | मे० नपञ्चकं। ८० श्लो० ८ । अतिसान्द्रः ati-sandrah-सं० पु. अतिव्यायामः ati vayamah-सं० पु.. लोबिया, बोड़ा-हिं० । राजमाष-सं० । (A व्यायामाधिक्य, अधिक व्यायाम करना अर्थात् kind of bean ( Dclichos Sine. कुश्ती व कसरत करना, किसी प्रकार के शारीरिक nsis. '. For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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