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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतसा २३३ अतसा कुष्ठतैलाभ्यां युक्तयाचोपनाहयेत्” (चरक .. सू० १४ प्र०) "तिलातसी सर्षप कल्केस्तनु वस्त्रावनद्धः स्वेदयेत्” (सुश्रुत चि० ३२ अ०) निघण्टु ग्रंथों में अतसी तैल के गुण इस प्रकार लिखे हैं-अलसी का सैल वात नाशक, मधुर और बलासकारक है। (धन्वन्तरीय निघण्टु) नोट-शेष देखो-अतसी तैल। अतस्यादि क्वाथ-अलसी के फूल, मजीठ बड़ के अंकुर, कुश आदि पंच तृण । सबको समान भाग लेकर यथाविधि क्वाथ बनाकर पीने और पथ्य में मूंग का यूप (और भात) खाने से रक्रपित्त का नाश होता है। वृ०नि० पीसकर अनुलेप करने से शोथजन्य शिरोशूल एवं मास्तिष्कीय क्रूबा (दद्रु) तथा शिरोबण के लिए उपयोगी हैं । इसबगोल के साथ सन्धिशूल को लाभ करते हैं । इसका लुआब, नेत्र में टपकाने से अभिष्यन्द तथा नेत्र की लालिमा को दूर करता है । इसका लऊक (अवलेह) श्लेष्मज कास को गुणदायक है और तीन दिरम (३॥ मा० ) पीना वक्षःस्थल को शुद्ध करता है तथा यकृत शोथ और प्रान्तरावयवों के शोथ का लयकर्ता है। भूनी हुई अलसी सङ्कोचक (काबिज़) है और २१ मा० दैनिक सेवन करने से प्रान्त्रवेदना को लाभप्रद है तथा मूत्र, स्वेद, दुग्ध एवं आर्तव की प्रवर्तक है। प्रकृति को मुदुकर्ता और वृक्त एवं वस्तीस्थ क्षत को लाभप्रद है । १ तो० पानी में क्वथित कर पीना वृक्काश्मरी के निकालने में शतशोऽनुभूत है। मधु के साथ पीहा शोथ के लिए लाभप्रद और काली मरिच • और मधु के साथ कामोद्दीपक और शुक्र को गाढ़ा करता है। यूनानी मतानुसार प्रकृति-२ कक्षा में शीतल व रूक्ष । किसी किसी ने २ कक्षा में उष्ण और ३ कक्षा में रुक्ष लिखा है। हानिकर्ता-दृष्टि शकि, पाचन तथा मुष्क को। दर्पघ्न-धनियाँ, सिकाबीन और मधु । प्रतिनिधि-मेथी । शर्बत की मात्रा-१०॥ मा०। प्रधान कर्म-कास, वृक्क एवं वस्त्यश्मरी को लाभदायक है तथा मूत्रकारक एवं स्तन्यजनक है। गुण, कर्म, प्रयोग-इसका कपड़ा पहिनना । उत्ताप को दूर करता तथा स्वेद को शुष्क करता और कंडू एवं कठिन शोथ को लाभप्रद है।। परन्तु, उष्ण प्रकृति वालों को एवं ग्रीष्म ऋतु में पहिनना चाहिए। इसमें जूएँ कम पड़ती हैं। इसके पत्र एवं छाल मस्तिष्क के अवरोधों की उद्घाटक और जुकाम को बहाने वाली है । इसकी छाल को जलाकर छिड़कना रुधिरस्थापक है तथा क्षतों को भर लाता है। इसके पुष्प हृद्य एवं हृदय वलदायक है । बीज लयकर्ता, प्रण को स्वच्छकर्ता ( जाली) और प्रकृति को मदु करने वाले ( मुलरियन तब्य ) हैं । ठंडे पानी में नव्य मतानुसारएलोपैथिक मेटिरिया मेडिका ऑफिशल प्रिपेयरेशा ( Official preparatious ) लाइनाइ सेमिना-(Lihi Semina) -ले० । लिन्डीस (Linseed)-इं० । अतसी बीज, तीसी का बीज । प्रभाव-अरेबिन (Arabin) के समान लुभाबी पदार्थ की विद्यमानता के कारण यह स्निग्धता एवं मृदुताजनक है। ___ लाइनाइ सेमिना कंट्य ज़ा-( Lini semina contusa). लाइनम् कण्ट्युज़म् ( Linum contusum )-ले०। क्रश्ड लिन्सीड (Crushed linseed )-इं० । कुट्टित ( कण्डित ) अतसी, कूटी हुई अलसी । अल सी--को कूट कर उसका मोटा चूर्ण तैयार करलें। यह ताज़ा तैयार किया हुश्रा होना चाहिए। यह कैटाप्लाज्मा लाइनाई (अतसी की पुल्टिस) बनाने में काम आता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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