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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतसी २३२ अतसी फल्कोजर तथा हेनबरो अपने फार्माकोपिया (पृ.८६)में पाश्चात्य अतसी तुप के इतिहास का सारोल्लेख करते हैं और २३ वीं शताब्दि बो० सी० (मसीहसे पूर्व ) में इसके उपयोगका पता देते हैं। दोसकरोदूस और प्लाइनीने लिनम् नाम से इसका वर्णन किया है । गैलेस्की (१७६७) ने चित्रकारों के उदरशूल ( Painter's colic) तथा अन्य प्रान्त्रीय प्रारूप विकारों में इसके तेल के उपयोग की बड़ी प्रशंसा की है। अतसी के प्रभाव तथा प्रयोग आयुर्वेद अतसी मधुर, बलकारक, कफवातवद्धक, कुछ कुछ पित्त की नाश करमे वाली और कुछ तथा वात की जीतने वाली है। रा०नि० व. १६ । धन्व०नि०। अतसी मधुर, तिक, स्निग्ध तथा भारी और पाक में कटु है, उष्ण, दृष्टि को हानिकर एवं शुक्र, वात, कफ तथा पित्त की नाशक है। धन्व०नि०। अतसी दृष्टि के लिए हानिकारक, शुक्र को नष्ट करने वाली, स्निग्ध तथा भारी और बातरक्र को जीतने वाली है। मद०व०१०।। अतसी उष्ण, तिक, वातघ्नी, कफ पित्तजनक और स्वादुम्ल ( मधुराम्ल) है। राजवल्लभः । । अतसी मधुर, तिक, स्निग्ध, भारी, पाक में कट, उष्ण, दृष्टि को हानिकारक, शुक्र तथा वातनाशक और कफ एवं पित्त को नष्ट करने वाली है । भाव० । पाक में कटु, तिक तथा कफ वात और व्रण को नाश करने वाली है । पृष्ठशूल, सूजन, पित्त, शुक्र ओर दृष्टि का नाश करने वाली है । वृ० नि०र०। अतसी तैल मधुर, पिच्छूिल, वातनाशक, मदगंधि तथा कपाय है और कफ एवं कास को हरण करती है । रा०नि० व०१५ । प्राग्नेय, स्निग्ध, उष्ण तथा कफपित्तनाशक पाक में कट, चक्षु को अहितकर, बल्य, वात नाशक तथा गुरु है, मलकारक, रस में मधुर, ग्राही, त्वग्दोष एवं हृद्रोग को नष्ट करने वाली और वात प्रशमनार्थ वस्ति, पान, अभ्यङ्ग, नस्य और कण पूरण रूप से तथा अनुपान रूप से भी प्रयोजनीय है। भा० पू० तेल० व०। अतसी तैल उष्णवीर्य और कटुपाकी है। (राजवल्लभः)। अतसी पत्र तीसी का पत्ता खाँसी तथा कफ वात और श्वास तथा हृद्रोग नाश करने वाला है | वृ० नि०र०। वैद्यक में अतसी का उपयोग चरक-(१) फोड़ा पकाने के लिए, अलसी को जल में पीसकर उसमें किञ्चित जव का सत्तू योजित करें और अम्लदधि के साथ इसका फोड़ा पर प्रलेप करें। इससे फोड़ा पक जाएगा । (चि० १३ १०)। ( २ ) वातप्रधान व्रण में जो दाह और वेदनान्वित हो तिल और अलसी को भूनकर गोदुग्ध के साथ निर्वापित करें। शीतल होनेपर इसको उसी दुग्ध के साथ पीस कर फोड़ा पर प्रलेप करें। (चि. १३ १०) (३) पक्क शोथ प्रभेदन हेतु अतसी"x x उमाथ गुग्गुल: xx" अलसी का प्रलेप करने से फोड़ा फट जाता है। (चि०१३ अ०)। सुश्रुत-(.) वाताधिक वातरक्त में वेदना प्रशमनार्थ अलसी को दुग्ध में पीस कर प्रलेप करें। (चि० २६१०)। (२) प्रमेह में अतसी तैल प्रमेह रोगी को सेवन कराना चाहिए, जैसे"कुसुम्भ सर्षपातसी x x स्नेहाः प्रमेहषु" (चि० ३१ अ०) मात्रा-आधा से १ तो० । वक्तव्य चरक और सुश्रुत में उपनाह स्वेद (जिसे अंगरेजी में पुल्टिस कहते हैं। ) के उपादान स्वरूप अतसी व्यवहृत हुई है- "उमया For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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