SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस प्रकार डॉक्टरी में किसी किसी ओषधि-सत्व का नाम उस उस ओषधि के मूल नाम के सम्बन्ध से रक्खा गया है, उसी प्रकार अोपधि-सत्वों के आयुर्वेदीय तथा तिब्बी संज्ञा-निर्माण में भी उसी खूबी को ध्यान में रख कर किया गया है। ५-विरोधी सिद्धान्त-इस ग्रंथ में प्राचीन चिकित्सा-शास्त्र अर्थात् आयुर्वेदीय तथा युनानी और अर्वाचीन चिकि सा शास्त्र अर्थात् डॉक्टरी के लगभग समग्र विरोधी सिद्धान्तों पर तर्कयुक्त वैज्ञानिक एवं न्यायसंगत मा प्रदान किया गया है और उनको अत्यन्त अनुसन्धान पूर्वक एवं विस्तार से लिखा गया है। पासा है इसले वैद्य, हकीम तथा डाक्टरों के पारस्परिक विरोध का बहुतांश में निराकरण होगा, और ३ परसर एक दूसरे की प्रतिष्ठा और प्रेम भाजन बनेंगे। हमने उन समस्त विरोधी सिद्धान्तों को यथाशक्य अत्यन्त गवेषणा के साथ लिखा है। ६-इतिहास - इसमें ब्रह्मा एवं धन्वन्तरि भगवान् से लेकर आज पर्यन्त प्रायः सभी प्रमुख आयुर्वेदीय, चीनी, बाबिली, मिश्री, युनानी, अरबी और यूरूपीय चिकित्सकों को खोजपूर्ण जीवनी लिखी है । ७-विभिन्न भाषाओं का कैटलॉग-भिन्न भिन्न भाषा के शब्दों को नागरी लिपि द्वारा शुद्ध रूप में प्रगट काने के लिए एक वृहन कैटलाग तैयार किया गया था, किन्तु टाइप के अभाव के कारण उसे यथेष्ट रूप में प्रकाशित न किया जा सका | उसका एक छोटा सा अंश जिसमें तीन भाषा के टाइपों का संक्षिप्त परिचय है, "वर्ण-वोधिनी तालिका" नाम से इस पुस्तक के साथ लगाया गया है। उपय' संक्षिप्त परिचय मात्र का अवलोकन कर पाठकों को वर्तमान ग्रंथ की विशालता का अनुभव तो अवश्य ही हो गया होगा। अब प्रश्न होता है कि इतने भावों से परिपूर्ण ऐसे विशद ग्रंथ का "अायुर्वेदीय कोष" जैसा लघु नाम क्यों रक्खा गया? उत्तर में केवल इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि आयुर्वेद शब्द का जो संकुचित अर्थ आज कल प्रायः लोग लेते हैं, उतने संकुचित अर्थों में उक्त शब्द का प्रयोग किया जाना हमें अभीष्ट नहीं। हम तो इसे उसी ब्यापक अर्थ में प्रयुक्त करना उचित समझते हैं, जिसमें हमारे ऋषि पुरुषों एवं श्रायुर्वेदिक पंडितों ने आज से कई सहत्र वर्ष पूरा किया है । अतु, सुवुन महाराज इसकी निरुकि इस प्रकार लिखते हैं:श्रायुरस्मिन् विद्यते, अनेन वा श्रायुर्विन्दतोत्यायुर्वेद इति । अथवा (सु० सू०१०) आयुर्हिता हितं व्याधेः निदानं शमनं तथा । विद्यते यत्र विद्वद्भिः स श्रायुर्वेद उच्यते ॥ अथवा हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिता हितम् । मानञ्च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते ॥ च० सू० ॥ अत्र श्राप हो बताएं कि श्रायु संरक्षणार्थ एवं स्वास्थ्य सम्पादनार्थ कौन सा ऐसा विषय है-फिर चाहे वह प्र युदी य, यस्तो तय ड का हो क्यों न हो-जिसका समावेश अायुर्वेद शब्द के अन्तरगत नहीं होता । प्राय: संरक्षण एवं प्रकृत-साम्य-सम्पादन के प्रायः सभी व्यापक प्राकृतिक नियमों का समावेश प्रायवैद के अन्तर्गत हो सकता है । इसी बात को ध्यान में रख कर इसके अंगरेजी नाम (An Encyclopedical Ayurvedic dictionary ) को कल्पना हुई है। __ अब पाठकों को यह भली प्रकार ज्ञात हो गया होगा कि यह कितना भाव गर्मित शब्द है । यही कारण है कि अनेक अन्य बड़े अाडम्बरपूर्ण शब्दों के होते हुए भी इसीको क्यों पसन्द किया? इतनी विशेषताओं के होते हुए भी इसमें प्रकाशन सम्बन्यो एवं अन्य बहुशः त्रुटियां भी रह गई हैं, जो हमको स्वयं असह्य हो रही हैं। परंतु वर्तमान परिस्थिति में उनका निवारण करना हमारी शकिसे बाहर था। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy