SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ छ ] किसी महान भाव का हमारे साथ मत भेद हो तो वे उसे हमें सूचित करने की अवश्य दया करें जिसमें उस पर हम लोग पुनः विचार कर अपना अन्तिम मत स्थिर कर सकें। इस प्रकार गवेपणा-सिद्ध परामर्श एवम् सहयोगिता द्वारा भेषज निणय में एक सर्वमान्य विश्वासनीय निणय सम्पादित हो सकेगा जिससे अायुर्वेद के पुनरुद्धार में काफ़ी सहायता मिलेगी और वैद्यों एवम् आयुर्वेदीय शास्त्रों के पारस्परिक विरोध सर्वथा के लिए मिट जाएँगे। प्रत्येक प्रांत के वैद्य वन्धुश्रो से हमारी कर वद्ध सविनय प्रार्थना है कि वे इस विषय में हमारी निष्कपट एवम् द्वेश शून्य भाव से सहायता करें । इसके लिए हम उनके सदैव आभारी रहेंगे । उन विषयों' के नाम से ही इसमें स्थान दिया जाएगा ।) इसके अतिरिक्त इसमें समग्र श्रायुर्वेदीय तथा अत्युपयोगी यूनानी योगों का वर्णन है और ब्रिटिश फार्माकोपिया ( अंग्रेजी सम्मत-योगशास्त्र ), ब्रिटिश फार्माकोपिया के परिशिष्ट भाग तथा एक्स्ट्रा फार्माकापिया को समस्त मिश्रित अमिश्रित औषधों के विस्तृत वर्णन के सिवा इसमें भारत, यूर तथा अमरीका के समस्त प्रशस्त एवम् उपयोगी पेटेण्ट श्रोषधों को भी वर्णन है। ३-प्रायुर्वेद में आए हुए सभी रोगों का यूनानी तथा एलोपैथिक रोगों से मिलान कर उनके ठीक अरबी फारसी तथा अंग्रेज़ो प्रभति के पर्याय दिए गए हैं। पुनः इसमें प्रणाली त्रय के अनुसार निदान, पूर्वरूप, रूप, उनका अन्य व्याधियों से तुलना एवं भेद, साध्यासाध्यता, शास्त्रीय एवं अनुभून चिकित्सा, मिश्रित व अमिश्रित औषध, पथ्यापथ्य इत्यादि चिकित्सा विषयक सभी ज्ञातव्य श्रावश्यक बातों का प्रामाणिक विशद वर्णन है। ___ इसके अतिरिक जिन व्याधियों का वर्णन आयुर्वेद में नहीं है अथवा सूत्र रूप में है, उसका भी सविस्तार वर्णन किया गया है अधीन आयुर्वेद में न पार हुए और यूनानो तथा डॉक्टरी ग्रंथों में वर्णित प्रायः सभी श्रावश्यक रोगों का वर्णन पाठको के लाभार्थ कर दिया गया है। अस्तु इसके रहते हुए किसी भी युनानी एव' डॉक्टरी चिकित्सा ग्रंथ की आवश्यकता ही नहीं रह जातो और इस विचार से इसे रोग-विज्ञान एवम् चिकित्सा शास्त्र कहना यथार्थ होगा। ___ इसमें सहस्रों आयुर्वेदीय युनानी तथा डोक्टरी के हर विषय के पारिभाषिक शब्द और समान व्याधियों के पारस्परिक भेदों ( लक्षण भेद, अवस्था भेद, स्थान भेद, नामभेद, दोप भेद एवम् समय भेद आदि) की भो व्याख्या की गई है। __ उपयुक्त व्याधि भेद के अतिरिक्त कतिपय रोग के सम्बन्ध में यदि अमुक विद्वानों में मत भेद है तो उसका भी विवेचन किया है। इसी प्रकार जिस व्याधि वा परिभाषा के सम्बन्ध में प्राचीन, अर्वाचीन चिकित्सकों में मत भेद है उसको भी स्पष्ट कर दिया गया है। ___अखिल रोगों के आयुर्वेदीय, युनानी तथा डाक्टरी संज्ञानों एवम् अायुर्वेद विषयक शेष अन्य परिभाषाओं और कतिपय प्रणाली त्रय के सिद्धान्तों का ऐक्य स्थापित करना अत्यावश्यक एवं अत्यंत कठिन कार्य है। पयोगिता एवं साथ ही कठिनाइयों का अनुमान करसकता है । हम चिरकाल एवं वर्षों के कठिन उद्योग एवं अध्यवसाययुक्त अध्ययन व अनुशीलन तथा अनुसंधान के पश्चात् इस कार्य को सुचारू रूप से सम्मादित करपाए हैं। अस्तु कई सहल आयर्वेदीय, युनानी तथा डॉक्टरी परिभाषाओं का परस्पर यथार्थ ऐक्य स्थापित हो गया है । सर्व प्रथम तो विभिन्न व्याधि विषयक संज्ञाओं का ही ऐक्य स्थापन करना दुःसाध्य है। किन्तु हमने प्रत्येक रोग के विभिन्न भेदापभेद का मा एक्य दिया है। ४-कतिपय नव्य डॉक्टरी या अमरीकीय औषधि एवं परिभाषा के लिए जो नवीन अायुर्वेदीय, अरबी, फारसी तथा उर्दू संज्ञाएँ स्थिर की गई हैं, वे सब फिलोला जी (शब्द रचना ) के नियमों पर अवलबित हैं। अस्तु प्रत्येक नवीन संज्ञा की रचना करते हुए मूल संज्ञा का विशेष ध्यान रखा गया है जो समग्र साहित्यिक भाषाओं में प्रचलित है। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy