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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइ (स ) न ख रासानी अजवाइ (य) न व रासानी अनियून-यु० । अक्तफीत, इस्कीरास बरव० । व्यापारिक आयात निर्यात हो रहा है। विदेशों कीर्धक-देल्मी०। की उत्तम चीजों का अपनाना और अपनी चीजें सोलेनेसाई अर्थात् धुस्तु (तू) र वा विदेश में भेजना भारतीय अपना ध्येय बनाते रहे धत्तर वर्ग हैं। इसी प्रकार बहुत सी श्रोषधियाँ जिनको (3.0. Solunacea. ) हमारे पूर्वाचार्यों ने रोगियों पर लाभदायक पाया उत्पत्ति-स्थान-उत्तरी भारतवर्ष, ( काश्मीर, उनको मँगाते थे। खुरासानी अजवायन भी उन्हीं गढ़वाल) पश्चिमी हिमालय के शीतोष्ण प्रदेश । ओषधियों में से एक है। समस्त हिमवती पर्वत-श्रेणियों में ८००० से . प्राचीन यूनानी चिकित्सकों ने तीनों प्रकार के ११००० फीट की ऊँचाई पर यह वन की तरह बञ्ज (पारसीक यमानी) का वर्णन किया है। उपजता है। बलूचिस्तान, (ईरान) खुरासान, परन्तु उनमें श्वेत प्रकार को ही औषध तुल्य उपमिश्र, एशिया कूचक और साइबेरिया के अतिरिक य.ग में लाते थे । डायोसकोराइडीस सहारनपुर के सरकारी वनस्पत्योद्यान में भी बोया ( Dioscorides) ने भी इसकी प्रशंसा की जाता है। यूरुष, (पुर्तगाल और यूनान से ! है, एवं वह इसीके उपयोग करने की शिफ़ारिश चारधे और फिनलैण्ड तक ) अमेरिका आदि। करते हैं। इस सम्बन्ध में इस्लामी चिकित्सक नाम विवरण-इसका लेटिन नाम हायो- भी अबतक उन्हीं के अनुयायी हैं।। साइमस यूनानी श्रॉस कुप्रामास ( Huos. लेटिन लेखक हायोसाइमस को अल्तम kuaimos ) से लातानीकृत शब्द है जो एक (Altercum ) तथा हर्वासिम्फोनिएका यौगिक है (हुआस-शूक +कुनामासम्बाकला, (Herba Symphonica.) बोलते हैं। लोबिया)। अस्तु उन शब्द का अर्थ शूकर । प्लाइनी के कथनानुसार अल्तकर्म अरबी शब्द है। लोबिया हुआ | चूँ कि इसके पत्त लोबिया पत्रके सम्भवतः यह अत्तिर्याक का अपभ्रंश है जो मूल . सदृश होते हैं एवं इसे सूअर बहुत रुचिपूर्वक में फारसी शब्द है और जिसका अर्थ विपध्न है। खाता है इसलिए यूनानियों ने इसका यह नाम . मुसलमान लेखक इसे बन कहते हैं जो फारसी रक्खा । बंग का प्रारबीय अपभ्रंश है। इनके कथनानुसार नाट-महजनुल्अद्विया तथा मुहीताज़म यह यूनानियों का अनियून, सिरियन लोगों का में जो इसका यूनानी नाम अफ़ोकून लिखा है वह अजमालुस, मूर लोगों का कत्नीत या इस्कीरास शुद्ध अफ़्यून है । कोई-कोई प्राचीन इस्लामी है। वे पुनः कहते हैं कि देल्मी भाषा में इसे हकीम इसको यूनानियों का अफ़्यून न्याल करते कीर्चक कहते हैं। रहे। अस्तु, इसीके वर्णन में लिखा है कि कभी टिप्पणी- त्रुल बञ्ज अवैज़ ( तुरुमबङ्क इसके पत्तों तथा शाखाओं का उसारह. अफ्रोम सफ़ेद ) जो खुरासान से भारतवर्ष में अधिक की प्रतिनिधि स्वरूप उपयोग में प्राता है। माता है, भारतीय चिकित्सकों ने अजवायन के अनयून यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ | समान समझ उसका नाम खुरासानी या पारसीक निद्राजनक है। यमानी रख दिया जो अब उद' भाषा एवं तिब इतिहास-यद्यपि उक्र बूटी हिमालय परत में अजवायन खुरासानी के नाम से प्रसिद्ध है । तथा उत्तरी भारतवर्ष व इसके अन्य भागों में भी परन्तु इस बात को भली भाँति स्मरण रखना अधिकता से उत्पन्न होती है, तथापि सम्भवतः चाहिए कि ब अल बञ्ज (अजवायन खोरासानी) प्राचीन श्रायुर्वेदिक चिकित्सकों को इसका ज्ञान और नानखाह (अजवायन ) गुण धर्म के विचार न था। पारसीक तथा खोरासानी यमानी आदि से सर्वथा दो भिन्न ओषधियाँ हैं। श्रस्तु, पारनाम इसका विदेशी होना सिद्ध करते हैं। सीक यमानी को कदापि यमानी ( अजवायन) अाज ही नहीं प्राचीन काल से ही भारत में का भेद न ख्याल करना चाहिए । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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