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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइन अजवाइ ( 2 ) न सुरासानी (पुल टिस ) या प्रस्तर उपयोग में आता है। अजवायन के पत्ते का स्वरस, इस्पन्द (हेना) इसके बीजों को गरम कर दना में सीने को तथा और मालकाँगनी इनको समान भाग लेकर इससे विशूचिका, मूर्छा व बेहोशी में हाथ पाँव को तिगुना मीठा तेल मिलाकर पकाएँ । तैयार होने शुष्क सेक करते हैं। पर उतार लें और नासिका व क रोगों में इसका ___ अजवायन के बीज, पिप्पली, प्रड्स पत्र और व्यवहार करें। . (इलाजु० गु०) पोस्ते के ढोंढ़ इनका काथ कर श्राधे से । श्राउंस अजवाइनकाफूल ajavai a-ka-phula | की मात्रा में ग्राभ्यन्तर रूप से वर्तते हैं। अजगइन-का-प्लत ajavaina-ka-sataj __ श्लेष्मा के शुष्क हो जाने या चिपचिया हो हि० संज्ञा पु, थाइमोल ( Flowers of जाने के कारण जब कफस्त्राव कठिन हो जाता है, Ajoram Camphor ) । देखो-थाइउस समय इसके बीजों के चूर्ण में मक्खन माल व अजवाइन । फा० इ०। ई० मे० मे०। रू. फा० इं०। मिलाकर खिलाने से लान होता है। बनय नानी भी उत्तम है श्रोर अनेक कृषिः । अजवाइन-के-बू-का-पत्ता ajaraina-ke-bu. नाराक योगों का एक मुख्य अवयव है। ___ka-patti-द. सीता की पञ्जओगे। शिथिल-कंडक्षत में इसका श्रीन संकोचक , अजवाइ (य) न खुरासानो ajarai (ya) naग्रोवधियों के साथ उपयोग में श्राता है। ग्रोप- । ____khurasini-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० यवाधियों विशेषकर एरर ड तेल के अग्राह्य स्वाद : निका ] .खुरासानी अजवा (मा) यन। .खुराको छिपाने के लिए एवं उनकी वामक प्रवृत्ति व सानी अज्वान-द० । नदकारिणी, तुरुष्का, तिब्रा, ऐंठन युक्र वेदना को रोकने के लिए इसका उप यवानी, यावनी, मादक, मदकारक, दीन्य, श्याम, योग किया जाता है। कुबेराख्य, पारसीक यवा (मा) नी, खोरासानी __ आभ्यासिक माइकता तथा पागलपन में यह यमानी-सं० । खुराशानी योयान, खुरासानी अजोवान-पं० । हाइयो साइमस नाइनम् लाभदायक है। अपने चरपरे तथापि मनोहर स्वाद और Hyoscyamus Nigrum, Linn. (Seeds of-), हाइयो साइमस (Hyo. पानाशयिक उत्ताप बिवद्धन के कारण मादक seyamus ), हा० रेटिक्युलेरिस (H. Re. द्वव पान की इच्छा से व्यथित व्यक्रियों का इसे ticularis), हा० रेटिक्युलेटस (H. Re. व्यवहार में लाने की अाधुनिक काल में बहुत ticulatus, Lin".)-ले. । हेन्बेन (सीड्स) शिफारिश की जाती है । यद्यपि इससे नशा नहीं Henbane ( Seeds)-ई । जस्कीएमिन्पैदा होती, तो भी निर्यलता दूर करने के लिए वायर Jusquiame-lioire-फ्रां० । अफ़ियह सामान्य उनक औषधों की एक उत्तम यूम Aliyum - जर० । खराशानि-योमम् प्रतिनिधि है- बुड): श्रापका कथन है कि यह -ता० । खुरासानि-वामम्, खुरिञ्जिवामम् । बहुत से बुद्धिमान व्यकियों को मद्यपान के खुरासानी-यमनी, खुरसान वालो-ते०, तै०। अभ्यास की किकरता से मुकि दिलाने के लिए खुरासानि बोमा, खुरासानि-वादक्कि-कना। उत्तम कारण सिद्ध हुई है। किरमाणि श्रीवा, खोरासाणी-नि-पोवा, सुरअजवायन ( बीज लगने से प्रथम ) के पौधे वंदाचे-फूल -मह० । खुरासानि-प्राजमो, खुराके कोमल पत्त कृमिघ्न प्रभाव हेतु व्यवहार में सानि-अज़वान, खुरसाणा-अज़मा, करमाणीपाते हैं । कृमि में इसके पत्र का स्वरस दिया छहारी-गु० । बजरभंग, इस्किरास-काश० । जाता है। काटफिट-० । ब.लबञ्ज, बञ्ज, सीकरान, विषैले कीटाणुओं के काटने पर दंश स्थान पर खदाउरंजाल-अ०। बंक, बंग, बंगदीवाना-फान इसके पत्तों को कुचल कर लगाते हैं। अज़मालूस-सिरि० । वानवात-तु. । अफ्रीकन, For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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