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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रङ्गर अङ्गर करमद्दिका (करौंदे के सदृश ) दाख में भी और स्वर्थ है तथा रक्तपित्त, घर, श्वास, तृष्णा पर्वतोत्पन्न दाख के सहरा गुण हैं। और दाह का नाश करने वाली है । मा० द्राक्षा व०। मृद्धोका मधुर, स्निग्ध, शीतल, वृष्य और दाख मधुर, खट्टी, कपैली है और किसी क्षार अनुलोमक है तथा रक, त, श्वास, कास, के साथ पित्त, वात और कफ का नाश करती है, भ्रम, तृष्णा और ज्वर का नाश करने वाली है। उत्तम है तथा रुधिर रोग, दाह, शोष, मूर्छा, धन्वन्तरीय निघण्टु । ज्वर, श्वास (श्वसन) और खाँसी को दूर __ गोस्तनो-मधुर,शीतल, हृद्य और मदहर्षिणी करती है। जो दाख विपाक में कषैली व अम्ल है तथा दाह, मूच्छो, ज्यर, श्वास, तृषा और (कपायाम्ल ) होती है वह कफ में हित है। हल्लास को नाश करने वाली तथा शीतल और श्रत्रि० १७०। मनुष्यों को प्रिय है। द्राक्षा के विशेष गुणदाख मधुर, स्निग्ध, वीर्यवर्द्धक, शीतल, | दाना 'वालफल' कट, उष्ण, विषदोषजनक मलभेदक, बलकारक एवं वृष्य है तथा क्षतक्षीण, । और रऋपित्त को करने वाली है। 'मध्य' और वात और पित्त का नाश करती है। रसान्तर को प्राप्त अम्लरस युक्त रुचिकारक और रा०नि०।। अग्निजनक है । 'पक' और मधुर तथा श्रम्लरस दाख मधुर, खट्टी, शीतल, पित्तनिवारक, सहित तृष्णा और रऋपित्त को दूर करने वाली है। दाहनाशक, भृत्रदोषहारक रुचिकारक, वृष्य और "पक्क" अत्यन्त सूखी हुई श्रमजनित पीड़ा को तृप्तिकारक है। रा०नि० । शमन करने वाली, संतर्पण और पुष्टिदायक __ कच्ची दाख कटु, उष्ण, विशद, रक्तपित्तकारक शीतल तथा पित्त और रत के दोषों को शमन है। मध्यम अवस्था की दाख खट्टी, रुचिकारक • करती है। एवं मधुर, स्निग्धपाकी और अत्यन्त और अग्निवर्द्धक है। पक्की दाख, मधुर, खट्टी, | । रुचिकारक है । चतुप्य, श्वास, कास, श्रम तथा तृषानाशक और रवपित नाशक है। पक कर | वमन को शमन करने वाली, सूजन, तृष्णा और सूख गई हुई दाख मनाशक तृप्तिकारक और | ज्वर का नाश करने वाली है एवं श्राध्मान, दाह पुष्टिजनक है। तथा श्रम आदि को हरण करती और परम दाग्व धातुबद्धक, शोपनाशक,प्यास को हरने- तर्पण है। द्वाक्षा क्षीण वीर्य वाले को भी मदनवाली, बात को दूर करने वाली, वमन रोग- कला केलि में दत्त बनाती है। रा०नि०। नाशक, पचने में अम्ल, सुरस, मधुर, शीतवीर्य, __तृष्णा, दाह, जार, श्वास, रक्तपित्त, क्षत वा ज्वर और कफ को हरने वाली, मत्र और मल क्षय, वात, पित्त, उदावर्त, स्वरभेद, मदात्यय, को शोधने वाली है। मुँह का कड़वापन, मुखशोप और कास को दूर गोस्तनी दाख शीतल, हृदय को हितकारी, करती है । मदीका व्रहण, वृष्य, मधुर, स्निग्ध, वीर्यवर्द्धक, वातानुलोमक, स्निग्ध, और हर्पजनक और शीतल है। चरक फ० व० । है तथा श्रम, दाह, मुर्छा, श्वास, खाँसी, कफ, पित्त, घर, रुधिरविकार, तृषा, वात और हृदय द्राक्षा दस्तावर, स्वर्य, मधुर, स्निग्ध और शी. • की व्यथा को हरने वाली है। तल तथा रक्रपित्त, ज्वर, श्वास, तृष्णा, दाह और क्षय का नाश करने वाली है। सुश्रत । .. 'किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्द्धक, रुचिप्रद, ... द्राक्षा के वैद्यकीय व्यवहार खट्टा, रसाल है तथा श्वास, खाँसी, ज्वर, हृदय की पीड़ा, रक्रपित्त, क्षत क्षय, स्वरभेद, तृपा, ‘सुश्रुत-मूत्रावगंधज उदावत अर्थात् वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर मूत्रवेग के धारण से उदावर्त रोग होने पर द्राक्षा करता है। का क्वाथ प्रस्तुत कर पिलाना चाहिये। (उ० दाता रस में मधुर, स्निग्ध, शीतल, हृय । ५५ अ० ) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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