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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अङ्ग र ग्रङ्गर अगर पुष्प में दो कोपीय डिम्बाशय होता है। अस्फटिकवत् शर्करा, अॉक्ज़ेलेट प्रॉफ लाइम तथा और प्रति डिम्बाशय में दो-दो डिम्ब होते हैं। एमोनिया और फॉस्फेट व सल्फेट श्रॉफ़ लाइम ये डंठल युक्त, स्थूल, गृदादार, गोल था अण्डा विद्यमान होते हैं। कार ( झड़बेरी के सदृश ) फल रूप में विकास प्रयोगांश-फल (पक्व या अपक), कुछ पाते हैं । कोष भिन्न हो जाता है तथा उनमें से शुष्क फल [ किशमिश मोगका प्रभार) तथा कुछ बीज साधारणतया नष्ट हो जाते हैं। चूँ कि पत्र। फल डंठल से और डंठल शाखा से नहीं जुड़े ___ मात्रा-शर्बत, प्राधे से एक फ्लुइड श्राउन्स रहते, इस कारण परिपक्वावस्था में थे झड़ते नहीं, . (२४ घण्टे में ५-६ बार)। किशमिश या किन्तु उन पौदे में ही लगे रहते हैं ( पर यह मुनक्का | तो० से २॥ तो० तक (दिन रातमें शर्त है कि सूर्यताप काफी हो) और धीरे धीरे ३-४ बार )। . सूख जाते हैं । उक्त शुष्क फल को सूर्यताप द्वारा . औषध-निर्माण-द्राक्षा सुरा (Vinum), पका हुआ किशमिश कहते हैं। फल इसके छोटे, । द्राक्षारिष्ट, द्राक्षासव, द्राक्षाचुक्र या अगरी ब, गोल और लम्बे कई श्राकार के होते हैं। सिर्का ( vinegar of grapis) प्रभति। कोई नीम के फल की तरह लम्बे और कई मकोय प्रतिनिधि-यूरोपीय औषध, इमली और की तरह गोल होते हैं। नीबू की तेज़ाब ( अगर के लिए ), पालूबुखारा __ रासायनिक संगटन-फल के ग्दे में अंग्ररी और शीरखित (किशमिश के लिए) मो०२०। शकर (द्राक्षीज) तथा क्रीम श्रॉफ रा र गम्भारी फल | .. सि. यो. स्व. चि० ( Cream of tartal') वर्तमान विप्पल्यादि, वा० सू० १५ श्र० परूषकादि, होता है । इसमें निर्यास तथा सेव की च० द० चा० ज्व० चि) पिप्पयादि, वा० तेजाब भी विद्यमान होती है । बीज में एक ज्य. चि. द्राक्षादि। प्रकार का स्थायी तेल होता है । (एट-)। . द्राक्षा के गुणधर्म व उपयोग बीज तथा फलत्वक में ५-६ प्रतिशत कपायाम्ल श्रायुर्वेद को दृष्टि सेः(टैनिक एसिट ) पाया जाता है। फार्माको । पका अंगर-दस्तावर, शीतल, नेत्रों को डॉ जे० कोनिक तथा सीक्रञ्च के विचार से | हितकारी, पुष्टिकारक, भारी, पाक तथा रसमें काली दाख में जल २३. १८, अल्ब्युमिनस पदार्थ | . मधुर, स्वर को उजन करने वाला, कपैला, मल २. ७१, बसा ०.६६, दादोज (ग्रेप शूगर) तथा मूत्र की प्रवृत्ति करने वाला, को में वायु१५.६२,अन्य अनत्रजनीय पदार्थ १४.१२,काष्टोज | कारक, वृष्य ( वीर्य को बढ़ानेवाला), कफ १.१४, तथा भरून १.३६ प्रतिशत विद्यमान होती तथा रुचि को उत्पन्न करता है और पा, हैं। शुष्कद्रव्य में उन्होंने नत्रजन ०.५६ और ज्वर, श्वास, कास, वातरक, कामना शर्करा ७२.४३ प्रतिशत पाया। डॉक्टर इ०मैक मूत्रकृच्छ, रक्तपित्त, मोह, दाह, शोप तथा मदाऔर के० पोटलो के परीक्षणानुसार किशमिश त्यय रोग को नष्ट करता है। गोस्तनी ( गाय में जल २०.४, द्राक्षशरा ३०.२ लिब्युलोज़ के स्तन के सदृश) अर्थात् कालीदाख वीर्यवर्धक ३६.४, पेक्टिन १८६, फ्री एसिड्स १.७६,सेब (वृष्य ) भारी और कफ तथा पित्त को नष्ट की तेजाब ०.३८, अखि ३.२८, अनघुल पदार्थ करने वाली है। कच्चा अंगर हीन गुण वाला ५.० तथा भस्म २.०३ होती है। डॉक्टर एम. तथा भारो है । खट्टा अंगूर रक्रपित्त को करने सी. न्युयार के परीक्षानुसार अगर पत्र में चाला है। बीज रहित अथवा छोटे बीजों वाली इमली की तेज़ाब (टार्टरिक एसिड ) वाइटार्टेट | (किशमिश) गोस्तनी दाख के सदृश गुणों वाली ऑफ पोटाश, वर्सेटीन, क्वर्सिट्रीन, कपायिन, है । पर्वतमें उत्पन्न हुई (पर्वतीय) दाख हलकी, श्वेतसार, सेव की तेजाब, निर्यास, इनोसीट, | अम्ल और कफ तथा रक्रपित्त को करने वाली है। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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