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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगिन, ना अगिरेटम्-कार्डिफोलियम् obtained from the seeds of एक और पौधा है जो धान के खेतों में उत्पन्न jargee soiled custor oil plant) होता है । देखो अगया। रू.फा० इ०। .. (३) एक हद ६ से १० फुट लम्बा पौधा जो अगिन, ना agina, nā हिं० सझा त्रो० हिमालय अासाम 'ब्रह्मा में मिलता है। इसके [सं०अग्नि ] [क्रि०अगियाना ] (1) श्राग ।। पत्ते और ::लों में जहरीले रोएँ होते हैं जिनके (२) गौरैया ना यया के श्राकार की एक छोटी शरीर में धंसने से पीड़ा होती है। इसी से इसे चिड़िया जिसका रंग नटला होता है। इसकी चौपाए नहीं छूने । नेपाल श्रादि देशों में पहाड़ी बोलो बहुत प्यारी होती है । लोग इसे काड़े से लोग इसकी छाल से शे निकाल कर गरा ढके हुए पिंजरे में रखते हैं। यह हर जगह पाई नानक मोटा कपड़ा बनाते हैं। जाती है। (A binda sort of Jark ) (४) जल धनियां । । . (३) एक प्रकार को बाप जिसमें नीबू की सी (५) पक्षी विशेष । A bird (alala मीठी हक रहती है। इसका तेल बनता है। ____aggiya) अगिया घास । नीली चाय । यज्ञ कुश। . (६) घोड़ों और बैलों का एक रोग । संज्ञा स्त्री० [सं० अंगारिका ] ईख के ऊपर (७.) एक रोग जिसमें पैर में पीले पीले छाले. का पतला नीरस भाग ! अगोरी। . .. पड़ जाते हैं । .. अगिन-चास ngina-ghasa-अगिया घास अगिया बैताल ngiyi.bnitāla-हिं० संज्ञा रोहिप । भूदण (Andropogon Schee- पु. ( स०, अग्नि, प्रा० अग्नि+बैताल ):. manthus, E.in.) (Ignis fatuus,Will-o'-the-wisp) अगिन याव agina-bivu हिं० पु०, (१) . दलदल में या तराई में इधर उधर घूमते हुए अश्व (the farey in horse ) रोग फ.स्फरस (स्फर ) के श जो दर से जलते विशेष (२) मनुप्य में फोड़ा कुन्सी निकलने लुक के समान जान पड़ते हैं। ये कभी कभी की बीमारी (An eruptive discussin कबरिस्तानों में भी *धेरी रातमें दिखाई देते हैं। mon.)। सहाबा । अगिन-बूटा ngin-boti द०, वम्ब. दाद अगियाना agiyana-हिं० वि० अ० [सं० मारी,जंगली मेंहदी-हिं० । ( Amm.hin अग्नि ] जल उठना । गरमाना | जलन वा दाह , baccifera, Linu.) ई० मे० मे०1 . युक्त होना ।। अगिनालागडी agini-ligadi-चन्दा० फला- : अगिरः agirah-सं० पु. चित्रक का पेड़ गिनी इरिनपली-हिं० । ( Manisuis (Plumbago Zlanicum, Ling. ). Uranularis, Lin.) इं०म०म०। जटा०। ... अगिया agiya- हिंशा० स्त्री० [स. अग्नि : अगिम् अक्वेटिकम् ageratum aquati प्रा० अग्गि ] (1) क ! कारकी घास जिसमें cum, Rorb.-ले० बड़ी किश्ती । इं० हैं. नीबूकी सी सुगन्धि निकलती है और जिससे तेल , गा० । बनता है। यह दवाओं में भी पड़ती है। अगिया : अगिरेटम्-कॉनिज़ाइडोज़ agoratun conyघाम । रोहिप टूण | नौली चाय । यज्ञ कुश । zoides, Linr. देखो-अगिरेटम्-कॉर्डिफोलियम् (Andropogon Scha-nanthus, अगिरेटम्-कॉर्डिफोलियम् agentum carLim.). . . ... • difolium, R०.८.)-ले) उचण्टी-बं० । (२) एक खर वा घास जिसमें पीले फूल लगते : प्रोसड़ी-बम्ब० । सहदेवी भेट । फो० इ०२ हैं और जो खेतों में उत्पन्न होकर कोदों और मा० । ई मेला | पश्चिम भारत में होने ज्वार के पौधों को जला देती है। इसी नोम का वाली एक वनौषधि है । गुग्ग-कृमि नाशक है। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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