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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ( २ ) प्रसिद्ध टीकाकार सायणाचार्य का भाई था और वह प्रायः नौसौ वर्ष हुए होंगे विजयानगर के किसी राजा का प्रधान मंत्री था । इससे यह जाना जाता है कि बाग्भट नौसौ वर्षसे पहिले किसी समय में हुआ था । इसने अपने ग्रंथ में कई स्थान पर जिन भगवान् के प्रयोगों का वर्णन किया है इससे जानने में आता है कि इसका जन्म बुद्धदेव के पीछे किसी समय में हुआथा | कोई २ कहते हैं कि वाग्भट वौद्धमताबलंबी था परंतु इसका निराकरण इस बात से होता है कि एक स्थल पर वाग्भट ने लिखा है " न चैत्यं गच्छेत्" अर्थात् बौद्धों के मंदिर में कदापि न जाना चाहिये । दूसरी बात यह है कि जो मंत्र इसमें लिखे गये हैं वे सब वैदिक हैं इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि बौद्धमत की अपेक्षा वह वैदिक धर्म में दृढ विश्वास रखता था । उसने स्वयं अपने जन्म का परिचय इस भांति दिया है कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिषाग्वरो वाग्भट इत्यभून्मे पितामहो नामधरोस्मियस्य । सुतो भवतु तस्य च सिंहगुप्तस्तस्याप्यहं सिंधुषु जातजन्मा || अर्थात मेरे पितामह का नाम वाग्भट था, मेरे पिता का नाम सिंहगुप्त था मैंने अपना नाम भी वाग्भट ही रक्खा और मेरा जन्म सिंधु देश में हुआथा । वाग्भटालंकार, कबिकल्पतरु और रसरत्नसमुच्चयादि ग्रंथ इसी के बनाये हुए हैं । उक्त बातों के सिवाय वाग्भट के विषय में और कोई बात जाननेमें नहीं आती है । श्रीकृष्णलाल * इति For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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