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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ओ३म् ॥ वाग्भट का परिचय | महात्मा तुलसीदासजी ने अपने सर्वमान्य रामायण ग्रंथ में लिखा है "पडा भूमि चह गहन अकाशा" बही दशा मेरी भी है, ऊपरः का शीर्षक देकर मुझे लज्जास्पद होना पडता है कि मैं वाग्भट का क्या परिचय दूंगा, मैं भी केवल अपने पूर्वजों के शब्दों का हेरफेर करके आपके साम्हने रखदूंगा । जब हमारे ऋषि महात्माओं की यही प्रणाली थी कि वे अपना परिचय किसी भांति में अपनी लेखनी से नहीं देते थे अपने होने का समय अपने पिता, पितामह, माता मतामही आदि का नाम लिखते ही न थे, अपने जन्मस्थान का परिचय देनाही नितान्त अनावश्यक समझते थे । इस दशा में उनका परिचय प्राप्त करना तीक्ष्ण कृपाण की धार पर पांव रखना है, इस सबका कारण यही प्रतीत होता है कि वे संसार को तुच्छ समझते थे, उनकी दृष्टि में प्रतिष्ठा शूकरी विष्ठा के समानथी, उन्हें बन वास में ही परमानन्द का आभास होताथा, तपश्चर्या ही संपूर्ण संसार का विभव था । इस दशा में चाग्भट के जन्म, काल आदि का परिचय देना महा कठिन ही नहीं किन्तु दुःसाध्य भी है । इतना अवश्य है कि वाग्भट के नामको भारतवर्ष के संपूर्ण विद्वान् चिकित्सक अच्छी तरह जानते हैं और उनकी बनाई हुई अष्टांगहृदय संहिताका पश्चिमीय भारत में अच्छी रीति से पठन पाठन होता है । वाग्भट के जन्म के विषय में अद्भुत अद्भुत किंवदन्तियां प्रचलित हैं "कोई इन्हें साक्षात धन्वन्तरि का अवतार मानते हैं, कोई: समुद्रमथन से उत्पन्न हुए रत्नों में से बताते हैं और कोई इनको कलियुग का महर्षिः गाते हैं "अत्रिः कृतयुगे चैव, द्वापरे सुश्रुतो मतः कलौवाग्भट नामाच, यह अत्रि संहिता में लिखा हुआ है । कोई कोई इन्हें गौत्तमबुध का अवतार कहते हैं और कोई यह कहते हैं कि यह एक बड़ा स्त्रैण ब्राह्मण था और किसी नीच जाति की स्त्री के प्रेम में फंसगया था । माधव, शार्ङ्गधर, चक्रदत्त और भावमिश्र वाग्भट को बडा प्रामाणिक मानते हैं और लोगों ने बहुधा अपने ग्रंथों में वाग्भट के वाक्य उद्धृत किये हैं, इससे यह जाना जाता है कि वाग्भट उक्त ग्रंथकारों से पहिले हुआ है कहते हैं कि माधव ऋक्संहिता के इन 2 For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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