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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०६ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (५१९) सरेंठ, दही और धनिये के काथमें पकाया | वों के व्यंजनके शाली और साठी चावलों हुआ घी, समान भागमें मिलाया हुआ पानी का भात खानेको दे । मृत्तिका के गरम और औटाया हुआ दूध अथवा बहुत परि-ढेले से वुझाया हुआ ठंडा पानी पीना चामाणमें डाला हुआ सेंधानमक, घी, औरहिये । रात्रिके समय पानी में मुंग, खस, अनारदानेकी खटाई युक्त कुक्कुटादि विष्किर | पीपल और धनियां डालदे, और प्रातःकाल पक्षियों का मांसरस, अथवा सोंठ, दही, इस जलको छानकर पीवै । अथवा दाखका और अनार डालकर स्निग्ध भोजन | रस, ईखका रस, गिलोयका पानी अथवा अथवा नमक से युक्त ईषदुष्ण स्नेह विरेचन | दूध पान करावै । इन प्रयोगों के करने से वातज वमनरोग, अन्य प्रयोग। तथा विशेष करके वातजवमन संबंधी खांसी जम्यामपल्लवीशरिवट शृंगावरोहजः॥ और कफद्वारा हृदय का भारापन ये सब क्वाथः क्षौद्रयुतः पीतः शीतो वा विनियच्छति । दूर होजाते हैं। छर्दि ज्वरमतीसारं मूर्छा तृष्णां दुर्जयाम् ॥ पित्तज वमनका उपचार । _____ अर्थ-जामन और आमके पत्ते, खस, पित्तजायां विरेकार्थ द्राक्षेचस्वरसैत्रिवृत् ॥ | बटके अंकुर, और कोंपल इनका काथ कर सर्पिर्वा तैल्वकं योज्यं वृद्ध च श्लेष्मधामगम् के ठंडा करले फिर इसमें शहत मिला कर ऊर्ध्वमेव हरेत् पित्तं स्वादुतिक्तैर्विशुद्धिमान् | पिबेन्मथ यवागू वा लाजैः समधुशर्कराम्।। | पान करै तो वमन, ज्वर, अतिसार, मी मुद्जांगलजैरथाद्वयंजनैः शालिषष्टिकम् ॥ और दुर्जय तृषा ये सव शांत होजाते हैं। मृष्टलोष्टप्रभवं सुशतिं सलिलं पिवेत् । अन्य प्रयोग। मुद्रोशीरकणाधान्यैः सह पा संस्थित | धात्रीरसेन वा शीतं पिबेन्मुद्दलांबु बा। निशाम् ॥ १३ ॥ कोलमज्जसितालाजामक्षिकाविटकणाजनम्।। द्राक्षारस रसं वेक्षोर्गुडूच्यबुपयोऽपि वा। | लिह्यात्क्षौद्रेण पथ्यां वा द्राक्षां वाअर्थ-पित्तज वमनरोग में विरेचन के बदराणि वा। लिये दाख और ईखके रसके साथ निसोथ । अर्थ-मूंग की दालका पानी ठडा कर अथवा तैल्वक घृतका प्रयोग करना चाहिये। के आमले के रसके साथ पान करै, अथवा बेरका गूदा, खांड, खील, मक्खीकी बीट लागया हो तो मधुर और तिक्त रस द्वारा | और रसौत इन द्रव्यों को तथा हरड, दाख बमन कराकर ही निकाल देना चाहिये । | वा वेरों को शहत मिलाकर चाटै । जब रोगी बमन विरेचन द्वारा शुद्ध होगया कफज वमनका उपचार । हो तब उसको धानकी खीलों का पथ्य बा | कफजायां वमेनिंवकृष्णापीडितसर्षपैः ॥ यवागू मधु और शर्करा डालकर पान करा- | युक्तेन कोष्णतोयेन दुर्बल चोपवासयेत् । ना चाहिये । मूंग के यूष और जांगलजी-मथान्यवैी बहुशेश्छद्यन्नौषधभावितैः । आरग्वधादिनिहं शीतं क्षौद्रयुतं पिबेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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