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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९०१) पित्तप्रधानैर्वातायैः शंखे शोफः सशोणितैः॥ तीव्रदाहरुजारागप्रलापज्वरतृभ्रमाः ॥ १६ ॥ तिक्तास्यः पीतवदनः क्षिप्रकारी सशंखकः ॥ त्रिरात्राज्जीवितं हन्ति सिध्यत्यप्याशु साधितः ॥ १७ ॥ पित्तकी अधिकतावाले और रक्तसे मिले हुये ऐसे वातआदि दोषोंसे कनपटीमें शोजा और तीव्र दाह पीडा राग प्रलाप ज्वर तृषा भ्रम उपजतेहैं॥१६॥कडुआमुखवाला और पीलामुखवाला मनुष्य होजाताहै,यह शंखकरोग तीनरात्रिमें जीवको हरताहै,और तत्काल साधितकिया सिद्धभी होसकताहै।॥१७॥ पित्तानुबद्धः शंखाक्षिभ्रूललाटेषु मारुतः॥रुजंसस्यन्दनां कु. Oदनुसूर्योदयोदयाम् ॥१८॥ आमध्याह्न विवर्धिष्णुः क्षुद्वतः सा विशेषतः ॥ अव्यवस्थितशीतोष्णसुखा शाम्यत्यतः परम् ॥ १९॥ सूर्यावर्त्तः स पित्तसे अनुबद्धहुआ वायु कनपटी नेत्र भृकुटी मस्तकमें चमकनेसे संयुक्त और सूर्योदयके संग उदयहोनेवाली पीडाको करताहै ॥ १८ ॥ और भूखवाले मनुष्यके विशेष कर पीडा होतीहै और मध्याह्नसमयतक बढती रहतीहै और कदाचित् शीतपदार्थ कदाचित् गरम पदार्थसे सुख करती है और मध्याह्नसे उपरांत आपही शांत होजातीहै ॥ १९ ॥ यह सूर्यावर्त रोग कहाहै इत्युक्ता दशरोगाः शिरोगताः॥ ऐसे शिरके दश रोग कहेहे ॥ शिरस्येवञ्च वक्ष्यन्ते कपाले व्याधयो नव ॥ २० ॥ और कपालमें नव ९ रोगोंको वर्णन करेंगे ॥ २० ॥ कपाले पवने दुष्टे गर्भस्थस्यापि जायते ॥ सवर्णो नीरुजः शोफस्तं विद्यादुपशीर्षकम् ॥ २१ ॥ गर्भमें स्थित हुयेके कपालमें जो वायु दुष्ट होताहै तब शरीरके समान वर्णवाला और पीडासे रहित शोजा उपजताहै तिसको उपशीर्षकरोग जानो ॥ २१ ॥ यथादोषोदयं ब्रूयात्पिटिकार्बुदविद्रधीन् ॥ फुनसी अर्बुद विद्रधि इन्होंको यथायोग्य दोषके अनुसार कहै ॥ __ कपाले क्लेदबहुलाः पित्तासृक्छेष्मजन्तुभिः॥ २२॥ . कंगुसिद्धार्थकनिभाः पिटिकाः स्युररूषिकाः॥ और कपालमें बहुतसे क्लेदवाली और पित्त रक्त कफ कीडोंसे उपजी ॥ २२ ॥ कांगनी और सरसोंके दानेके सदृश फुनसियां अरूषिका कहातीहै ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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