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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९००) अष्टाङ्गहृदये- शिरोऽभितापे पित्तोत्थे शिरोधूमायनं ज्वरः ॥ स्वेदोऽक्षिदहनं मूर्छा निशि शीतैश्च मार्दवम् ॥९॥ और आधे शिरमें होनेसे अर्धावभेदक कहाताहै ॥ ७॥ पंद्रह दिनमें तथा एक महीनेमें कोपको प्राप्त होवे और आपही शांत होजावे और अत्यंत बढके नेत्र और कानको विनासै ॥ ८ ॥ पित्तसे उपजे शिरोभितापमें धूमको निकासनेवाला शिर होजाताहै, और वर पसीना नेत्रोंमें दाह मूर्छा और रात्रिमें शीतल पदार्थसे कोमलता ये होतेहैं ॥९॥ अरुचिः कफजे मूों गुरुस्तिमितशीतता॥ शिरानिस्पन्दतालस्यं रुग्मन्दायधिका निशि ॥१०॥ तन्द्राशूनाक्षिकूटत्वं कर्णकण्डूयनं वमिः॥ कफके शिरोभितापमें अरुचि और शिरका भारीपन और गीलापन और शीतलपना और नाडियोंका कुछेक फुरना आलस्य और दिनमें मंद पीडा, और रात्रिमें अधिक पीडाः ॥ १० ॥ और तंद्रा आंखोंपै शोजा और कुटिलपना और कानमें खाज और छदि उपजतेहैं । रक्तात्पित्ताधिकरुजःऔर रक्तसे उपजे शिरोभितापमें पित्तके शिरोभितापसे अधिकपीडा होतीहै ।। सर्वैः स्यात्सर्वलक्षणः॥११॥ और सब दोषोंसे सब लक्षणोंवाला शिरोभिताप उपजताहै ॥ ११ ॥ सङ्कीर्णैर्भोजनमनिवेदिते रुधिरामिषे॥ कोपिते सन्निपाते च जायन्ते मूर्ध्नि जन्तवः॥१२॥ शिरसस्ते पिबन्तोऽस्र घोराःकुर्वन्ति वेदनाः॥चित्तविभ्रंशजननीज़रः कासो बलक्षयः॥१३॥ रौक्ष्यशोफव्यधच्छेददाहस्फुटनपूतिताः॥कपाले तालुशिरसोः कण्डूः शोषः प्रमीलकः ॥ १४ ॥ ताम्राच्छसिंघाणकता कर्णनादश्चजन्तुजे॥ और संकीर्णरूव भोजनोंसे क्लेदितहुये शिरमें और क्लेदित हुये रुधिर और मांसमें और कुपितहुये सन्निपातमें शिरमें कीडे उपजतेहैं ॥ १२ ॥ वे कीडे शिरके रक्तको पातहुये घोररूप और चित्तको नष्ट करनेवाली पीडाओंको करतेहैं और खांसी बलका नाश ॥ १३ ॥ रूखापन शोजा वेध छेद दाह हडफुट दुर्गंधपना और कपालमें तालुमें और शिरमें खाज और शोप और प्रमीलक होतेहैं ॥ १४ ॥ और तांबेके समान रंगवाला और पतला ऐसा नासिकाका मैल होजाताहै और कीडोंसे उपजे इस शिरोभितापमें कानमें शब्द होताहै ॥ वातोल्बणा शिरःकम्पं तत्संज्ञं कुर्वते मलाः ॥१५॥ और बातकी अधिकतावाले दोष शिरः कंपरोगको करतेहैं, इसमें शिर कांपता रहताहै ॥ १५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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