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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८९६) अष्टाङ्गहृदयेस्फटिकशुभ्रसुरभिकर्पूरकुडवं च तत्रावपेत्ततः ॥ कारयेद्गुटिकाः सदा चैता धार्या मुखे तद्दापहाः॥९५ ॥ खेरसार ८०० तोले खैरकी छाल ४०० तोले इन्होंको ४०९६ तोले पानीमें पकानै, जब चौथाई भाग शेषरहै तब कपडेमें छानि फिर पकाके करराकरै ॥ ९१ ॥ पीछे एक एक तोले प्रमाणसे सूक्ष्म पिसेहुये खस नेत्रवाला लालचंदन गेरू चंदन लालचंदन, लोध, पौंडा, मुलहटी, लाख, दोनों रसोत ।। ९२ ।। धायके फूल कायफल हलदी दारुहलदी हरडै बहेडा आँवला दालचीनी इलायची तेजपात नागकेसर कालाअगर नागरमोथा मजीठ बडके अंकुर वालछड जवांशा ॥९३ ॥ कमल ऐलुआ लज्जावन्ती इन्होंको मिलावै और शीतल होने पृथक् चार चार तोले जावित्री जायफल लौंग कंकोल ॥ ९४ ॥ और गिलौरी पत्थरकी तरह सफेद और सुगंधित ऐसा १६ तोले कपूर तहां मिलाके गोलियां बनावे सब कालमें मुखमें धारणकरने योग्य ये गोलियां मुखके रोगोंको नाशती हैं ॥ ९५॥ क्वाथौषधव्यत्यययोजनेन तैलं पचेत्कल्पनयाऽनयैव ॥ सर्वास्यरोगोद्धतये तदाहुदन्तस्थिरत्वे त्विदमेव मुख्यम् ॥१६॥ क्वाथ और औषधके विपरीत योजनाकरके इसी कल्पनाकरके तेलको पकावै सब मुखके रोगोंको दूर करनेके अर्थ और दांतोंकी स्थिरताके अर्थ यही तेल मुख्यहै ॥ ९६ ॥ खदिरेणैता गुटिकास्तैलमिदं वारिमेदसाप्रथितम् ॥ अनुशीलयन्प्रतिदिनं स्वस्थोऽपि दृढद्विजो भवति॥९७॥ खैरकरके बनाई हुई ये गोली तथा खैरकरके बनाहुआ यह तेल इन्होंको नित्यप्रति सेवनेवाला मनुष्य स्वस्थ और दृढ दांतोंवाला होजाताहै ॥ ९७ ॥ क्षुद्रागुडूचीसुमनःप्रवालदार्वीयवासत्रिफलाकषायः॥ क्षौद्रेण युक्तः कवलग्रहोऽयं सर्वामयान्वक्रगतानिहन्ति॥९८॥ कटेहली गिलोय चमेली के अंकुर दारुहलदी जवांसा त्रिफला इन्होंका शहतसे संयुक्त किया काथ मुखमें धारणकिया जावे तो मुखके सब रोगोंको नाशताहै ॥९८ ॥ पाठादारूत्वकुष्ठमुस्तासमङ्गा तिक्तापीताङ्गारोध्रतेजोत्तीनाम् ॥ चूर्णः सक्षौद्रो दन्तमासार्तिकण्डूपाकस्रावाणं नाशनो घर्षणेन ॥ ९९ ॥ पाठा दारुहलदी दालचीनी कूठ नागरमोथा मजीठ कुटकी पीलालोध साधारणलोध मालकांगनी इन्होंके चूर्णमें शहदमिला घिसनेसे दांतोंके मसूढोंमें शूल और खाज पाक स्रावको नाशताहै॥९९|| गृहधूमतायपाठाव्योषक्षाराग्ययोवरातेजोकैः ॥ मुखदन्तगलविकारे सक्षौद्रः कालको विधार्यश्चूर्णः ॥१०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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