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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८७२) अष्टाङ्गहृदयेकफके प्रतिश्यायमें लंघन और सफेद शरसोंसे शिरका लेप अथवा जवाखारसे संयुक्तकिये घृतका पान करके वमन करना ये सब हितहैं ॥ १३ ॥ सेंधानमक सूंठ मिरच पीपल वायविडंग कूडाकी छाल जीरा इन्होंको बकरीके मूत्रमें पीस नस्य लेना हितहै ॥ कटुतीक्ष्णैघृतैर्नस्यैः कवलैः सर्वजं जयेत् ॥१४॥ और कड्डुवे तथा तीक्ष्णरूप घृत नस्य ग्रास इन्होंकरके सन्निपातके प्रतिश्यायको जीते ॥१४॥ यक्ष्मकृमिक्रम कुर्वन्पाययेदुष्टपीनसे ॥ राजरोग और कृमिरोगको हरनेवाले औषधको दुष्ट पीनसमें पान करावै ।। व्योषोरुबूककृमिजिदारुमाद्रीगदे गुदम् ॥१५॥ वार्ताकबीजं त्रिवृता सिद्धार्थः पूतिमत्स्यकः॥ अग्निमन्थस्य पुष्पाणि पीलुशिग्रुफलानि च ॥ १६ ॥ अश्वविडसमूत्राभ्यां बस्तिमत्रेण चैकतः ॥ क्षौमगर्भा कृतां वर्ति धूमं घ्राणास्यतःपिवेत्॥१७॥ और सूंठ मिरच पीपल अरंड वायविडंग देवदार काला अतीश कूट हिंगणवेट वार्ताकुसंज्ञक ॥ १५ ॥ कटहलीके बीज निशोत सफेदसरसों पूतिकरंजुआ मछली अरनीके फूल पीलुफल सहोजनाके फल ॥ १६ ॥ घोडाकी लीदका रस और मूत्र हाथीका मूत्र इन्होंको मिला रेशमी वस्त्रकी बनाई बत्तीको इन सबोंके कल्कसे लेपितकर अग्निसे जलाय नासिकासे अथवा मुखसे पीवै !॥ १७ ॥ क्षवथौ पुटपाकाख्ये तीक्ष्णैः प्रधमनं हितम् ॥ छींक रोगों और पाकरोगमें तीक्ष्ण औषधोंकरके प्रधमन करना योग्य है ।। शुण्ठी कुष्ठकणावेल्लद्राक्षाकल्ककषायवत् ॥१८॥ साधितं तैलमाज्यं वा नस्यं क्षवपुटप्रणुत् ॥ और सूंठ पीपल वायविडंग दाख इन्होंके कल्क और काथसे ॥ १८ ॥ साधित किया तेल अथवा घृत नस्य करके शवरोगको और पुटरोगको नाशताहै ॥ नासाशोषे बलातैलं पानादौ भोजनं रसैः॥ १९॥ स्निग्धो धूमस्तथा स्वेदो नासानाहेऽप्ययं विधिः॥ ___ और नासाशोषमें पान और नभ्य आदिमें बलाका तेल हितहै और मां के रसोंके संग भोजन ॥ १९ स्निग्ध धूवा तथा स्निग्ध स्वेद ये सब हितहैं और नासानाहरोगमेंभी यही विधिहै ।। पाके दीप्तौ च पित्तन्ने तीक्ष्णं नस्यादिससतौ ॥ २०॥ __ और नासापाकमें तथा दीप्तिरोगमें पित्तको नाशनेवाला औषध हितहै नासालावमें तीक्ष्णरूप नस्य आदि हितहैं ॥ २० ॥ कफपीनसवत्पूतिनासापीनसयोः क्रिया॥ पूतिनासा और अपीनसमें कफकी पीनसकी तरह चिकित्सा करनी योग्यहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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