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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८७०) भष्टाङ्गहृदयेअर्थोऽर्बुदानि विभजेदोषलिङ्गैर्यथायथम् ॥ सर्वेषु कृच्छ्राच्छ्रसनं पीनसः प्रततं क्षवः॥ २६॥ . सानुनासिकवादित्वं पृतिनासः शिरोव्यथा ॥ दोषोंके लक्षणोंकरके यथायोग्य अर्श और अर्बुदका विभागकरै और सब प्रकारके अर्श और अर्बुदोंमें कष्टसे उग्रश्वासका लेना और जुखाम और निरंतर छींक ॥ २६ ॥ और नासिकासे बोलना और दुर्गंधितरूप नासिकाका होना और शिरमें पीडा होतीहै ।। अष्टादशानामित्येषां यापयेद्दष्टपीनसम् ॥ २७॥ और अठारह प्रकारनासारोगोंके मध्यमें दुष्टपीनसको याप्य करे ॥२७ ।। इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया मुत्तरस्थाने एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥ विशोऽध्यायः। अथातो नासारोगप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर नासारोगप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। सर्वेषु पीनसेष्वादौ निवातागारगो भवेत्॥स्नेहनस्वेदवमनधूम गण्डषधारणम् ॥१॥ वासो गुरूष्णं शिरसःसुधनं परिवेष्टनम् ॥ लध्वम्ललवणं स्निग्धमुष्णं भोजनमद्रवम् ॥२॥धन्वमांसगुडक्षीरचणकत्रिकटूत्कटम्॥यवगोधूमभूयिष्ठं दधिदाडिमसाधितम् ॥३॥ बालमूलकजो यूषः कुलत्थोत्थश्च पूजितः ॥ कवोष्णं दशमूलाम्बु जीर्णां वा वारुणी पिबेत् ॥४॥ जि चोरकतर्कारीवचाजाज्युपकुञ्चिकाः ।। सब प्रकारके पीनसोंमें प्रथम वातसे रहित स्थानमें वासकरे और स्नेहन स्वेद वमन धूवां गंडूष इन्होंको धारै ॥ १ ॥ भारी और गरम वस्त्रसे शिरको सुंदर घनरूप परिवेष्टनकर और हलका खट्टा सलोना चिकना गरम द्रवपनेसे रहित ॥ २॥ और जांगलदेशका मांस गुड दूध चना झूठ मिरच पीपलसे उत्कट जव और गोधूमके बहुतपनेसे संयुक्त दही और अनारमें साधितकिये भोजनको सेवै ॥३॥ और कच्चीमूलीका यूष और कुलथीका यूष पूजितहै और कछुक गरमकिया पानी दशमूलका पानी अथवा जीर्णहुई वारुणी मदिराको पावै॥४॥गठोंना अरनी वच जीरा पीपलको सूंघ।। व्योषतालीसचविकातिन्तिडीकाम्लवेतसम् ॥५॥ साग्न्यजाजीद्विपलिकात्वगेलापचपादिकम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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