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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अष्टाङ्गहृदये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८४८) सूंठ त्रिफला नींब वांसा लोध इन्होंके कछुक गरमकिये रसका आश्चोतन हित है और मिलेहुये औषधों करके आश्चोतन सन्निपातके अभिष्यंदमें हितहै ॥ १७ ॥ सर्पिः पुराणं पवने पित्ते शर्करयान्वितम् ॥ व्योषसिद्धं कफे पीत्वा यवक्षारावचूर्णितम् ॥ १८ ॥ स्रावयेद्रुधिरं भूयस्ततः स्निग्धं विरेचयेत् ॥ वायु पुराना घृत हित है, और पित्तमें खांडसे संयुक्त किया घृत हित है, और कफमें सूंठ मिरच पीपलमें सिद्धकिया और जवाखारसे चूर्णितकिया घृतका पानकर ॥ १८ ॥ रक्तको निकासै, पीछे स्निग्धहुये को जुलाब देवै ॥ आनूपवेसवारेण शिरोवदनलेपनम् ॥ १९ ॥ उष्णेन शूले दाहे तु पयः सर्पिर्युतैर्हिमैः ॥ और अनूपदेशमें उपजे जवि के गरम किये मांससे शिर और मुखका लेपकरै ॥ १९ ॥ शूल और दाह उपजे तो दूध और घृत से संयुक्त किये और शीतल ऐसें द्रव्योंसे लेप करना योग्य है | तिमिरप्रतिषेधञ्च वीक्ष्य युंज्याद्यथायथम् ॥ २० ॥ अयमेव विधिः सर्वो मन्थादिस्वपि शष्यते ॥ और तिमिररोगकी चिकित्साको देखकर यथायोग्य औषधको प्रयुक्तकरै ॥ २० ॥ यही संपूर्ण विधि अधिमंथ आदिमें भी श्रेष्ठ ॥ अशान्तौ सर्वथा मन्थे भ्रुवोरुपरि दाहयेत् ॥ २१ ॥ रूप्यं रूक्षेण गोदना लिम्पेन्नीलत्वमागते ॥ शुष्के तु मस्तुना वर्तिर्वाताख्यामयनाशिनी ॥ २२॥ और मंथमें सब प्रकारकरके शांति नहीं होवे तो खुकुटियों के ऊपर दग्धकरै ॥ २१ ॥ रूखे दहीसे चांदीको लीपै, जब नीलेपनेको प्राप्त होजावे. और सूखजावे तब दहीका मस्तुकरके बत्ती बनावै यह बत्ती वातसे उपजे नेत्ररोगको नाशती है ॥ २२ ॥ सुमनः कोरका शंखत्रिफला मधुकं बला ॥ पित्तरक्तापहा वर्तिः पिष्टा दिव्येन वारिणा ॥ २३ ॥ चमेली की कली शंख त्रिफला मुलहटी खरैहटी इन्होंको दिव्य अर्थात् आकाशके पानी में पीस बनाई बत्ती पित्त और रक्त के नेत्ररोगों को हरती है ॥ २३॥ सैन्धवं त्रिफला व्योषं शंखनाभिः समुद्रजः ॥ फेनः शैलेयकं सर्जो वर्तिः श्लेष्माक्षिरोगनुत् ॥ २४ ॥ सेंधानमक हर बहेडा आँवला सूंठ मिरच पीपल शंखकी नाभि समुद्रझाग शिलाजीत राल इन्होंकी बनाई बत्ती कफ के नेत्ररोगको नाशती है ॥ २४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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