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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ८४७ ) सहजनाके पत्तोंके रसमें शहद मिला प्रयुक्तकरै, तो वात पित्त कफ सन्निपात इन्होंसे उपजी अनेक प्रकारकी पीडा दूर होती है ॥ ९ ॥ तरुणमुरुवृकपत्रं मूलं च विभिद्य सिद्धमाजे क्षीरे ॥ वाताभिष्यन्दरुजं सद्यो विनिहन्ति सतुपिण्डिका चोष्णा ॥१०॥ अरंडके ताजे पत्ते और जडको भेदितकर बकरीके दूधमें पकावै यह वाताभिष्यंदकी पीडाको तत्काल नाशता है, अथवा दोष आदिके वरासे युक्तकरी उष्णरूप सत्तुओं की पिंडी पीडाको हरती है १ ० आश्चोत्तनं मारुतजे काथो बिल्वादिभिर्हतः॥ कोष्णः सहैरण्ड जटावृहतीमधुशियुभिः ॥ ११ ॥ ह्रीवेरवशाङ्गेष्टोदुम्बरत्वक्षु साधितम् ॥ साम्भसा पयसाजेन शूलाश्चोतनंमुत्तमम् ॥ १२ ॥ मञ्जिष्टारजनीलाक्षाद्राक्षाद्विमधुकोत्पलैः ॥ काथः सशर्करः शीतः सेचनं रक्तपित्तजित् ॥ १३ ॥ वातके अभिष्यंद में बिल्वादिगणके औषध भरंडकी जड वडी कटेहली मीठा सहजना इन्हों करके बनाये काथसे कछुक गरम गरम आश्चोतनकरै ॥ ११ ॥ नेत्रवाला तगर करंजवली गूलर इन्होंकी त्वचाओंमें और पानी में तथा बकरीके दूध में पकाया आश्चोतन शूल में हित है ॥ १२ ॥ मँजीठ हलदी लाख मुलहटी महुआ कमल इन्होंकरके बनाया हुआ और खांडसे संयुक्त शीतल क्वाथकरके सेचन रक्तपित्तको जीतता है ॥ १३ ॥ कसेरुयष्ट्याह्वरजस्तान्तवे शिथिलं स्थितम् ॥ अप्सु दिव्यासु निहितं हितं स्यन्देऽत्रपित्तजे ॥ १४॥ कसेरू और मुलहटीके चूर्णको वस्त्रमें घाल शिथिलतरहसे स्थितकर और दिव्य पानी में स्थापितर यह रक्तपित्त के अभिष्यंद में हितहै ॥ १४ ॥ पुण्ड्रयष्टीनिशामूतीलता स्तन्ये सशर्करे | छागदुग्धेऽथवा दाहरुयागाश्रुनिवर्तनी ॥ १५ ॥ श्वेतकमल मुलहटी हदली इन्होंकी पोटली बना खांडसे संयुक्त किये नारीके दूधमें अथवा बकरीके दूध में भिगोने यह दाह शूल राग आंशू इन्होंको निवृत्त करती है ॥ १५ ॥ श्वेतरोधं समधुकं घृतभृष्टं सुचूर्णितम् ॥ वस्त्रस्थं स्तन्यमृदितं पित्तरक्ताभिघातजित् ॥ For Private and Personal Use Only १६ ॥ घृतमें भुना हुआ और वस्त्रमें स्थित और नारीके दूधकरके मर्दित और वस्त्र में स्थित ऐसा श्वत लोका चूर्ण पित्त रक्त अभिघातको जीतता है ॥ १६ ॥ नागत्रिफलानिम्बवासारोधरसं कफे ॥ कोष्णमाश्चोतनं मिश्रैर्भेषजैः सान्निपातिके ॥ १७ ॥
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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