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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८४१). कल्कित किये और घृतसे संयुक्त किये दूब जब गेरू अनंतमूलको मुखके लेपके अर्थ प्रयुक्तकर पीडा और रागकी शांतिके अर्थ यह उत्तमहै ॥ २४ ॥ ससर्षपास्तिलास्तद्वन्मातुलुङ्गरसाप्लुताः॥ पयस्यासारिवानन्तामञ्जिष्टामधुयष्टिभिः॥ २५॥ आजक्षीरयुतर्लेपः सुखोष्णः शर्मकृत्परम् ॥ विजोरेके रससे संयुक्तकिये सरसों और तिल पूर्वोक्त गुणोंको करतेहैं और दूधी अनंतमूल धमांसा मँजीठ मुलहटी ॥ २५ ॥ इन्होंमें बकरीका दूध मिला अल्पगरम करके किया लेप अतिशयकरके सुखको करताहै ।। रोधसैन्धवमृद्वीकामधुकैश्छागलं पयः॥ २६ ॥ शृतमाश्चोतनं योज्यं रुजारागविनाशनम् ॥ ___ और लोध सेंधानमक मुनक्का दाख मुलहटी इन्होंकरके बकरीके दूधको ॥ २६ ॥ पकावै, यह आश्चोतन युक्त करना योग्यहै पीडा और रागको नाशताहै । मधुकोत्पलकुष्ठैर्वा द्राक्षालाक्षासितान्वितैः॥ २७ ॥ वातनसिद्धे पयसि शृतं सर्पिश्चतुर्गुणे ॥ पद्मकादिप्रतीवापं सर्वकर्मसु शस्यते ॥२८॥ अथवा मुलहटी कमल कूठ दाख लाख मिसरी इन्होंकरके पकाया वृत पीडा और रागको नाशताहै ॥ २७ ॥ वातको नाशनेवाले औषधोंमें सिद्ध किये चौगुने दूधमें पद्मकादिगणके औषधोंका कल्क मिलावे, तिसमें पकाया घृत सब कोंमें श्रेष्ठहै ॥ २८॥ शिरां तथानुपशमे स्निग्धस्विन्नस्य मोक्षयेत् ॥ मन्थोक्ताञ्च क्रियां कुर्याद्वयधे रूढेऽञ्जनं मृदु ॥२९॥ जो ऐसे करनेमें शांति नहीं होवे तो स्निग्ध और स्विन्नकिये मनुष्यकी शिराको छुटावै अथवा मंथमें कहीहुई चिकित्साको करै और वेधपै अंकुर आजावे जब कोमल अंजन हितहै ॥ २९ ॥ आढकीमूलमारचहारतालरसांजनैः॥ विद्धेऽक्षिण सगुडा वतिर्योज्या दिव्याम्बुपषिता ॥३०॥ तुरीधान्य सहोजना मिरच हरताल रसोत इन्होंको दिव्यपानासे पीस और गुडसे संयुक्तकर बनाई बत्ती वेधितहुये नेत्रमें युक्त करनी हितहै ॥ ३०॥ जातीशिरीषधवमेषविषाणपुष्पवैडूर्यमौक्तिकफलं पयसा सुपिष्टम् ॥आजेन ताम्रममुना प्रतनु प्रदिग्धं सप्ताहतः पुनरिदं पयसैव पिष्टम् ॥ ३१॥ पिण्डांजन हितमनातपशुष्कमक्षिण विद्धे प्रसादजननं बलकृच्च दृष्टेः॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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