SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 863
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८००) अष्टाङ्गहृदयेपोथक्यः पिटिकाः श्वेताः सर्षपाभा घनाः कफात् ॥९॥ शोफोपदेहं हृत्कण्डूपिच्छलाश्रुसमन्विताः॥ और सफेद वर्णवाली सिरसमके आकार और घनरूप पिडिका कफसे उपजतीहै और पोथकीसंज्ञक कहातीहै॥ ९॥ और शोजा उपदेहमें होवे और खाजिहोवे और झाग तथा आंशुसे युक्त पोथिका होतीहैं॥ कफोत्कृिष्टं भवेद्वम॑ स्तम्भक्लेदोपदेहवत्॥१०॥ ग्रन्थिः पाण्डुररुक्पाकः कंडूमान्कठिनः कफात् ॥ और जो स्तंभक्लेद उपदेहसे युक्त होवे, वह कफोक्लिष्ट वर्त्म कहाताहै ॥ १० ॥ और कफसे जो ग्रंथि होजातीहै, पीलीहो, पीडा और पाकसे युक्तहो, खाजिसे युक्तहो, कठिनहो ॥ कोलमात्रः स लगणः किश्चिदल्पस्तस्तोऽपि वा ॥ ११ ॥ और त्रेरके प्रमाणसे कछुक अल्प होवे वह लगणरोग कहाताहै ॥ ११ ॥ रक्तारक्तेन पिटिकास्तत्तुल्यपिटिकाचिताः॥ उत्सङ्गाख्यास्तथोक्लिष्टं राजिमत्स्पर्शनाक्षमम् ॥ १२ ॥ और रक्तकरके लालवर्णवाली और लगणके तुल्य पिडिका होजातीहै वह उत्संगाख्य रोग कहाताहै और ऐसेही उत्संगरोगकी तरह उक्लिष्ट वर्मरोग होजाताहै, तिसमें पंक्तिहोचे और स्पर्श नहीं कियाजाताहै ।। १२ ॥ अर्थोऽधिमांसं वान्तः स्तब्धं स्निग्धं सदाहरुक् ॥ रक्तं रक्तेन तत्स्रावि छिन्नं छिन्नं च वर्द्धते ॥१३॥ और जो अधिकमांसवमके भीतर स्थित होजावे, वह अर्श नामवाला रोग कहाताहै, और स्तब्धरूप होवे स्निग्धहोवे रक्तसरीखा वर्णहो रुधिर झिरै और बारंबार छिन्नहोके फिर बढजाताहै वह अधिमांस कहाताहै ॥ १३ ॥ मध्ये वा वर्मनोऽन्ते वा कण्डूषा रुग्वती स्थिरा॥ मुद्गमात्रासृजा ताम्रा पिटिकांजननामिका ॥ १४ ॥ और वर्त्मके मध्यमें अथवा अंतमें खाजि और पीडासे युक्त स्थिररूप मूंगके समान तांबा सरीखे वर्णवाली रक्तसे उपजी हुई पिडिका अंजननामिका कहातीहै ॥ १४ ॥ दोषैवर्त्म बहिः शूनं यदन्तः सूक्ष्मखाचितम् ॥ सस्रावमन्तरुदकं बिसाभं बिसवम॑ तत् ॥ १५॥ और जो वर्त्म बाहिरसे सूजाहुआहो, और भीतरसे सूक्ष्म २ छिद्रोंसे युक्तहो, स्त्राव सहितहो, जिसके भीतर जलहो, बिस अर्थात् कमलकंदके समान आकृतिवालाहो, वह बिसवम रोग कहाताहै For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy