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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७४२) अष्टाङ्गहृदयेपार्श्वरुग्वेष्टनैर्विद्याद्वायुना स्नेहमावृतम् ॥ स्निग्धाम्ललवणो ष्णस्तं रास्नापीतद्रुतैलिकैः॥३१॥ सौवीरकसुराकोलकुलत्थ यवसाधितैः ॥ निरूहैनिहरेत्सम्यक्समूत्रैः पञ्चमूलकैः ॥३२॥ ताभ्यामेव च तैलाभ्यां सायं भुक्तेऽनुवासयेत् ॥ अधिक वातमें शीतल अथवा अल्प वस्ति दियाजावे और पित्तकी अधिकतामें उष्णबस्ति दिया जावे और कफकी अधिकतामें कोमलबस्ति दियाजावे, और अत्यंत भोजनवालेको भारी बस्ति दीजावे और अल्प बलवालोंमें और विष्ठाके संचयमें दोनों मात्राओंकरके दी बस्ति ॥ २९ ॥ तिन वातआदिकरके आच्छादित हुई बस्ति अविभावसे नहीं प्राप्त होती है, स्तंभ जांघोंकी शिथिलता अफारा ज्वर शूल अंगमर्दन इन्होंकरके ॥ ३० ॥ पशलीशूल उद्वेष्टनके उपजनेसे वायुकरके आच्छा दित हुये स्नेह बस्तिको जाने पीछे स्निग्ध अम्ल लवण उष्ण बस्तियोंकरके तिस अनुवासनको निकासे और गोमूत्र और पंचमूलसे साधितकिये ॥ ३१ ॥ कांजी मदिरा बेर कुलथी यवकरके साधितकिये रायशण और हलदीके तेलसे संयुक्त निरूहोंकरके अच्छीतरह अनुवासनको निकासै ॥ ३२ ॥ और तिन्हीं दोनों तेलोंकरके सायंकालके भोजनके समय अनुवासित करावे ॥ तृड्दाहरागसम्मोहवैवर्ण्यतमकज्वरैः॥३३॥ विद्यात्पित्तावृतं स्वादुतिक्तैस्तं बस्तिभिर्हरेत् ॥ और तृषा दाह राग मोह विवर्णता तमक श्वास ज्वर इन्होंकरके ॥ ३३ पित्तसे आवृतहुई स्नेहबस्तिको जानना तिसको स्वादु और तिक्त बस्तियोंकरके निकास ॥ . तन्द्राशीतज्वरालस्यप्रसेकारुचिगौरवैः ॥ ३४॥ संमूछीग्लानिभिर्विद्याच्ष्मणा स्नेहमावृतम् ॥ कषायतिक्तकटुकैः सुरामूत्रोपसाधितैः ॥ ३५॥ फलतैलयुतैः साम्लैबस्तिभिस्तं विनिर्हरेत् ॥ और तंद्रा शीतज्वर आलस्य प्रसेक अरुची गौरव ॥ ३४ ॥ मूर्छा ग्लानि इन्होंकरके कफसे आवृतहुई स्नेह बस्तिको जानना पीछे कषाय तिक्त कटु मदिरा तथा गोमूत्रकरके साधित ॥३१॥ मैनफल और तिलोंके तेलसे संयुक्त और कांजीसे संयुक्त बस्तियोंकरके तिस स्नेहबस्तिको निकाले ।। छर्दिमूर्छारुचिग्लानिशूलनिद्राङ्गमर्दनैः ॥ ३६॥ आमलिङ्गैः सदाहस्तं विद्यादत्यशनावृतम् ॥ कटूनां लवणानां च काथैश्चूर्णैश्च पाचनम् ॥ ३७॥ मृदुविरेकः सर्वं च तत्रामविहितं हितम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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