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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५६) मष्टाङ्गहृदयेतमक श्वास बवासीर भगंदर ॥ २७ ॥ हृद्रोग मूत्ररोग वीर्यकी दुर्गध अग्निदोष शोष गरोदर खाँसी प्रदर रक्तपित्त शोजा गुल्म गलेका रोग ।। २८ ।। प्रमेह वर्मरोग भ्रमको नाशते हैं और सब दोषोंको हरतेहैं और कल्याणकारी हैं | द्राक्षाप्रस्थं कणाप्रस्थं शर्करार्द्धतुलां तथा ॥२९॥ द्विपलं मधुकं शुण्ठीत्वक्क्षीरी च विचूर्णितम् ॥ धात्रीफलरसे द्रोणे तरिक्षस्वा लेहवत्यचेत् ॥३०॥ शीतान्मधुप्रस्थयुताल्लिह्यात्पाणितलं ततः॥ हलीमकं पाण्डुरोगं कामलाञ्च नियच्छति ॥ ३१॥ और ६४ तोले दाख ६४ तोले पीपल २०० तोले खांड ॥ २९ ॥ मुलहटी सूंठ वंशलोचन इन्होंका चूर्ण ८ तोले इन्होंको १०२४ तोले आमलाके फलोंके रसमें मिलाके लेहकी तरह पकावै ॥३०॥ शीतल होनेपै ६४ तोले शहद मिला एकतोले प्रमाणसे चाटे यह हलीमक पांडुरोग कामलाको दूर करता है ॥ ३१॥ कनीयः पञ्चमूलाम्बु शस्यते पानभोजने॥पाण्डूनां कामलार्ता नां मृद्वीकामलकाद्रसः॥३२॥ इति सामान्यतः प्रोक्तं पाण्डुरो भिषजितम्॥विकल्प्य योज्यं विदुषा पृथग्दोषवलं प्रति॥३३॥ पांडु और कामलासे पीडित हुये मनुष्योंको पीनेमें और भोजनमें लघुपंचमूलका पानी और मुनक्का तथा आमलेका रस श्रेष्ठ है ॥ ३२॥ ऐसे सामान्यसे पांडुरोगका औषध कहा और पृथक दोषका बलके प्रति वैद्यको विचारके औषध प्रयुक्त करना योग्य है ॥ ३३॥ स्नेहप्रायं पवनजे तिक्तशीतं तु पैत्तिक॥श्लेष्मिके कटुरूक्षोणं विमिश्रं सान्निपातिके ॥ ३४ ॥ वातसे उपजे पांडुरोगमें अत्यंत स्नेहसे संयुक्त औषध हित है, और पित्तसे उपजे पांडुरोगमें तिक्त और शीतल औषध हित है, और कफसे उपजे पांडुरोगमें कडुभा रूखा गरम औषध हित है, और सन्निपातके पांडुरोगमें मिलीहुई चिकित्सा हित है ॥ ३४ ॥ मृदं निर्यातयेत्कायात्तीक्ष्णैः संशोधनैः पुरः ॥ बलाधानानि सीषि शुद्धे कोष्ठे तु योजयेत् ॥ ३५॥ पहिले तीक्ष्णशोधनोंकरके शरीरसे मट्टीको निकालै और शुद्ध हुये कोष्टमें बलको करनेवाले घृतोंको योजित करै ॥ ३५॥ व्योषबिल्वद्विरजनीत्रिफलाद्विपुनर्नवम्॥ मुस्तान्ययोरजःपाठाविडङ्गं देवदारु च॥३६॥ वृश्चिकाली च भार्डी च सक्षीरैस्तैः शृतं घृतम्॥सर्वान्प्रशमयत्याशु विकारान्मृत्तिका कृतान्॥३७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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